मानव सभ्यता के विकास के प्रारंभिक चरण में ध्वनि प्रदूषण गंभीर समस्या नहीं थी, परंतु मानव सभ्यता ज्यो-ज्यों विकसित होती गयी और आधुनिक उपकरणों से लैस होती गयी, त्यों-त्यों ध्वनि प्रदूषण की समस्या विकराल व गंभीर होती चली गयी। यह ध्वनि प्रदूषण मानव जीवन को तनावपूर्ण बनाने में अहम भूमिका निभाता है। तेज आवाज न केवल हमारी श्रवण शक्ति को प्रभावित करती है, बल्कि यह रक्तचाप, ह्रदय रोग, सिर दर्द, अनिद्रा एवं मानसिक रोगों को भी जन्म देती है।
ध्वनि प्रदूषण के अलावा वायु, प्रकाश, कूड़ा, प्लास्टिक, मिट्टी, रेडियोधर्मी, थर्मल ह्रदय तथा जल प्रदूषण भी मानव जीवन की सेहत के लिये गंभीर समस्या बनते जा रहे हैं। बीते दिनों उज्जैन शहर से मात्र 10 किलोमीटर दूर ताजपुर ग्राम के तेज आवाज में बज रहे डीजे के सामने नाचते वक्त इंगोरिया निवासी 28 वर्षीय युवक के ह्रदय की धडक़न असामान्य हो जाने से मृत्यु हो गयी। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि डीजे के तेज शोर के कारण ही उस युवक की ह्रदय की धडक़न असामान्य हुयी है। खैर, नवयुवक की मृत्यु के दर्द को तो उसका परिवार ही अनुभूति करेगा पर यह असामयिक मौत हमारे जीवन के लिये खतरा बन रहे ध्वनि प्रदूषण, विशेषकर भारत के कानून को धता बता रहे तेज आवाज में बज रहे डीजे से सचेत रहने का संदेश दे गयी है।
डीजे मिक्सर एक प्रकार का ऑडियो मिक्सिंग कंसोल सिस्टम होता है जो एक ही समय में चार प्रकार के मोबाइल या अन्य संगीत यंत्र से जोड़ा जा सकता है। इसमे यह व्यवस्था रहती है कि बज रहे गाने पर दूसरा गाना अतिक्रमण कर सकता है साथ ही अलग गाना कौन सा आना है इसका भी निर्देश दिया जा सकता है। यह डीजे 1000 डेसीबल (ध्वनि मापक इकाई) तक ध्वनि उत्पन्न कर सकते हैं। इस डीजे का जन्म 1970 के लगभग हुआ था इसने हिप हॉप संगीत की अफ्रीका-अमेरिकी शैली के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।
इसी के कारण डिस्को संगीत को महत्व मिला। एक साधारण इंसान 60 डेसीबल तक ध्वनि शोर सहन कर सकता है, 30 डेसीबल ध्वनि फुसफुसाहट में लगती है। मोटर सायकलों 95 डेसीबल का शोर किया जाता है। नींद में खलल के लिये तो 45 डेसीबल की ध्वनि ही पर्याप्त है, 120 डेसीबल से ऊपर का संगीत हमारी याददाश्त पर बुरे प्रभाव के साथ ही हमारे कानों के 16 हजार सेल्सों को भी नुकसान पहुँचाते हैं। किसी भी प्रकार की अनुपयोगी ध्वनि जिससे मानव और जीव जंतुओं को परेशानी होती है वह ध्वनि प्रदूषण कहलाती है।
आजकल होने वाली शादियों में प्राय: डीजे का ही उपयोग होता है आधुनिकता के साथ दबे पांव बैण्ड-बाजे वालों की जगह डीजे ने प्रवेश कर लिया मेरे देश की सबसे बड़ी कमजोरी जागरूकता की कमी है। जब पश्चिमी देशों में इन सब चीजों के नुकसान को देखते हुए प्रतिबंध लगा दिये गये हैं तब हमारे भारत में इनका प्रचलन जोर पकड़ रहा है।
शादी-ब्याह के समारोह में जब यह डीजे 200-250 डेसीबल का संगीत उत्पन्न करते हैं तो घरों के काँच बजने लगते हैं, बर्तन हिलने लगते हैं ऐसी स्थिति में यह हमारे ह्रदय पर क्या प्रभाव डालते होंगे यह सोचने वाली बात है विशेषकर छोटे शिशुओं एवं बच्चों की सेहत पर इसका कितना बुरा असर होता होगा यह विचारणीय प्रश्न है। डीजे के शोर से न केवल आप बहरे हो सकते हैं बल्कि याददाश्त एवं एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन, अवसाद जैसी बीमारियों के अलावा नपुंसकता और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों की भी चपेट में आ सकते हैं।
पर वाह रे मेरे देश के नागरिकों इन डीजे के शोर से मात्र 5 से 10 प्रतिशत लोगों को ही तकलीफ है बाकी लोगों को कोई लेना-देना नहीं है। ऐसा नहीं है कि हमारी न्यायपालिका ने इस पर संज्ञान नहीं लिया? उच्चतम न्यायालय ने रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 75 डेसीबल से अधिक का शोर (ध्वनि के स्त्रोत से एक मीटर दूरी तक) गैर कानूनी घोषित किया है। इन नियमों का उल्लंघन करने वाले दोषियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 290 और 291 के अलावा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत एक लाख रुपये का जुर्माना अथवा 5 साल तक की जेल या फिर दोनों सजा एक साथ हो सकती है। इसके साथ ही आरटीओ के अंतर्गत भी डीजे गाडिय़ों पर कार्यवाही किये जाने का प्रावधान है।
अगर कोई भी व्यक्ति अपनी गाड़ी का मूलस्वरूप बदलाकर डीजे वाहन में परिवर्तित करता है तो आरटीओ उस पर कार्यवाही करने के लिये स्वतंत्र है। इस तरह की कार्यवाही राजस्थान के बिकानेर शहर में देखने को मिली है जहाँ 7 डीजे गाडिय़ों को आरटीओ ने जब्त कर जुर्माना वसूला है।
जरूरत है ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिये जागरूकता की। अदालतों और न्यायालय के आदेशों को लागू करना व पालन करवाना प्रशासन का काम है और इसके लिये पुलिस में शिकायत की जानी चाहिये। जिस नवयुवक की मौत हुयी उस समय डीजे 145 डेसीबल से ज्यादा ध्वनि का संगीत बजा रहा था।
दैनिक अग्निपथ जनहित में जिले के संवेदनशील मुखिया आशीष सिंह से अनुरोध करता है कि वह जिले के डीजे संचालकों की बैठक लेकर उन्हें समझाइश दे और कोई डीजे संचालक नहीं मानता है तो उस पर कड़ी कार्यवाही करें। शायद मध्यप्रदेश में प्रदूषण निवारण मंडल नामक कोई शासकीय उपक्रम भी है पर हम उससे कोई अपेक्षा नहीं रखते हैं क्योंकि वह चादर तान कर सो रहा है गाहे-बगाहे ग्रेसिम एवं अन्य उद्योगों पर प्रदूषण फैलाने का आरोप सिद्ध होने पर 2-4 हजार का जुर्माना लगाकर अपने कत्र्तव्यों की इतिश्री कर लेता है।