पौने तीन करोड़ रुपए खर्च किए थे सौंदर्यीकरण पर-फर्शियाँ भी उखाड़ ले गए लोग
उज्जैन, अग्निपथ । राणौजी की छतरी पर शासन ने 2 करोड़ 64 लाख रुपए खर्च किए और नतीजा कुछ नहीं निकला। देखरेख के अभाव में यह कुछ समय में फिर से बदहाली की स्थिति में आ गई है। यहाँ से लोग फर्शियाँ और अन्य सामान उखाड़ कर ले जा चुके हैं और इसकी हालत अब दयनीय हो गई है।
सिंहस्थ 2016 में राज्य शासन ने 5 करोड़ श्रद्धालुओं के आगमन को देखते हुए शहर में निर्माण और सौंदर्यीकरण के कार्य कराए थे। इसके लिए शासन ने 5 हजार करोड़ रुपए की राशि मंजूर की थी। शहर में 11 प्रमुख स्थानों और चौराहों पर सुंदर रोटरियाँ बनाई गई थी। इन रोटरियों को डिवाइडरों के साथ सुंदरता देने के लिए राजस्थान से लाल पत्थर मंगवाए गए थे। रोटरियों के निर्माण और सौंदर्यीकरण पर संबंधित विभागों ने 14 करोड़ रुपए खर्च किए थे। उसी दौरान रामघाट के समीप स्थित प्राचीन सिंधिया कालीन राणौजी की छत्री की ऐतिहासिक इमारत का भी जीर्णोद्धार कराया गया था। इसके लिए 2 करोड़ 64 लाख के करीब राशि का बजट शासन ने मंजूर किया था और साल 2015 से ही इसके सौंदर्यीकरण का काम शुरू कर दिया गया था।
राणौजी की छत्री के मुख्य प्रवेश भाग की प्रथम तथा द्वितीय तल पर टूट चुके पत्थरों से बने प्राचीन कंगूरे, पत्थर की नक्काशीदार गैलरियाँ और यहाँ बने शिखरों के जीर्णोद्धार का काम बारिकी से शुरु किया गया था। इसके लिए पत्थरों पर नक्काशी का काम करने वाले राजस्थान सहित विभिन्न प्रांतों से कारीगरों को बुलाया गया था और पुरानी पद्धति के अनुसार ही नए सिरे से यहाँ लाल पत्थरों को लगाया गया था और छत्री के मुख्य भाग से लेकर अंदर परिसर तक में पूर्व से मौजूद टूट चुके स्थानों को फिर से लाल पत्थरों का उपयोग कर बनवाया गया था।
यह काम लगभग 18 महीने चला था और सिंहस्थ के दौरान पूरा राणौजी की छत्री का परिसर बेहद सुंदर नजर आने लगा था। परिसर में भी अन्य छतरियाँ और उनके गुंबदों की टूट फूट को नए लाल पत्थरों से दुरुस्त किया गया था। पेड़ पौधों के लिए बनी क्यारियों के आसपास भी लाल पत्थरों की मुंडेर बनाई गई थी। इसके अलावा परिसर में भी पहले जहाँ प्राचीन पत्थर लगे थे और जो टूट फूट गए थे, उन्हें भी बदला गया ।
मुख्य द्वार से ऊपर की ओर जाने वाली पत्थरों से निर्मित प्राचीन सीढिय़ों को भी नए सिरे से संधारित किया गया था और यहाँ पर भी कई सीढिय़ों के पत्थरों को बदलकर जहाँ काले पत्थर लगे थे वहाँ काले और जहाँ लाल पत्थरों का उपयोग हुआ था। वहाँ लाल पत्थर लगवाए गए थे। इसके बाद राणौजी की छत्री का प्राचीन वैभव पिछले सिंहस्थ में फिर से लौट आया था, लेकिन इसके बाद से लगातार इसकी अनदेखी होती रही और अब समय पर सुधार और संधारण नहीं होने के कारण यहाँ सौंदर्यीकरण के लिए लगाए गए पत्थर, फर्शियाँ, रैलिंग से लेकर परिसर में लगे पत्थर भी दरकते जा रहे हैं। कुछ पत्थर तो यहाँ से टूटने के बाद गायब भी हो गए हैं।
शिकायत के बाद भी कोई देखने वाला नहीं
शिकायत के बाद भी असर नहीं राणौजी की छत्री पर किए गए सौंदर्यीकरण और विकास के बाद फिर से इसकी दुर्दशा को लेकर जब यहाँ के तीर्थ पुरोहितों और पंडों से चर्चा की तो उनका कहना था कि सिंहस्थ में करोड़ों खर्च कर घाटों से लेकर राणौजी की छत्री तक का सौंदर्यीकरण किया गया, परंतु इनकी विभागों द्वारा फिर सही तरीके से देख रेख और सुरक्षा नहीं की गई। इसी का नतीजा है कि कई बार रामघाट और आसपास घाटों पर लगे लाल पत्थर टूटते रहते हैं। कई बार शिकायत की जाती है फिर भी सुधार नहीं होता ।
राणौजी की छत्री को लेकर भी कई बार शिकायतें की गई। यहाँ रात में असामाजिक तत्व भी सक्रिय रहते हैं। संभवत इसी के चलते सौंदर्यीकरण का कार्य टिक नहीं पाया। पंडे पुजारियों का कहना है कि हर साल बारिश के बाद शिप्रा के घाटों के कई पत्थर क्षतिग्रस्त हो जाते हैं तथा टूट फूट भी होती है। सिंहस्थ में हुए सौंदर्यीकरण के कार्यों का समय समय पर संधारण होते रहना चाहिए।