पिछले कई माहों से मेरा भारत अजीबोगरीब स्थिति से गुजर रहा है, शायद कुछ पक रहा है? कभी फिल्म कश्मीर फाइल्स के नाम से, कभी काशी के नाम पर, कभी नुपुर शर्मा को लेकर देश में एक तनावपूर्ण माहौल है। कभी मन में विचार आता है कि देश के राजनैतिक दल आने वाली भारत की पीढिय़ों को किस तरह का हिंदुस्तान देकर जाना चाहते हैं।
आजादी के 75 वर्षों में सत्ता की चाशनी का मजा लेने वालों ने लुटे-लुटाये हिंदुस्तान की कोई चिंता फ्रिक नहीं की। वर्षों तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहने वाला देश आजाद तो हुआ पर जाते-जाते गोरे अंग्रेज हिंदुस्तान के भविष्य की तस्वीर बिगाडऩे की योजना बना कर गये। ताज्जुब वाली बात तो यह है कि गोरे अंग्रेजों के जाने के बाद भी हिंदुस्तान के सिंहासन पर बैठे काले (भारतीय) भी अंग्रेजों की ‘फूट डालो राज करो’ की नीति से कोई सबक नहीं ले पाये।
भारत के विभाजन की साजिश अंग्रेजों ने एक ही दिन में ही नहीं रच दी थी इसके लिये उन्होंने काफी लंबे समय पहले ही हिंदु-मुस्लिमों के बीच नफरत के बीज बो दिये थे और पक जाने पर जाते-जाते अपनी मंशानुसार भारत के दो टुकड़े कर गये। सत्ता की चाह में हिंदु-मुस्लिमों ने घर का बंटवारा कर लिया, भाई-भाई से जुदा हो गया। मानवता तार-तार हुयी, इंसान शैतान बन गये जिन्होंने विभाजन की त्रासदी से भारत-माता को खंडित किया।
सारी दुनिया को प्रेम और शांति का पाठ पढ़ाने वाला भारत और उसमें निवास करने वाले भारतीय यह भूल गये कि अल्लाह ईश्वर, जीजस, वाहे गुरु सब एक ही है। सभी की मंजिल सुखद मृत्यु या मोक्ष है जिसके सिर्फ रास्ते ही अलग है। पांच तत्वों से बना यह मानव शरीर जिसे ‘भगवान’कह सकते हैं। भ-भूमि, ग- गगन, व-वायु, अ-अग्नि और न- नीर (पानी) से बना है। फिर वह चाहे मुस्लिम हो या हिंदु सभी में यह पाँचों तत्व ही रहते थे।
प्रकृति ने सबको समान बनाया है, सभी में एक जैसा खून है। खून का रंग पंजाबी, मुसलमान, हिंदु, ईसाई का एक जैसा ही है बनाने वाले के यहाँ कोई भेदभाव नहीं है, उसने तो हवा, पानी, पेड़-पौधों सभी के लिये एक जैसे ही बनाये हैं, यह तो इंसानी फितरत है कि उसने प्रकृति से भी शिक्षा ना लेकर अपनी-अपनी सत्ता स्थापित है। बीते 75 वर्षों में हम हिंदु-मुस्लिम के साथ ऊँच-नीच, अमीर-गरीब, सवर्ण-हरिजन, अगड़ा-पिछड़ा, भाषा के नाम पर क्षेत्रीयता, जल बंटवारे, सीमाओं के विवाद आदि अनेक कारणों से कई भागों में बंट गये हैं और अधिक बंटते जा रहे हैं।
कोई भी राजनैतिक दल समस्याओं की जड़ में जाकर उसे खत्म करना नहीं चाहता अपने राजनैतिक स्वार्थों के कारण वह और अधिक टुकड़ों में देश को बांट रहे हैं। जलियावाला बाग में हुए नरसंहार में आदेश देने वाला तो जनरल डायर था पर गोली चलाकर लाशों के ढेर लगाने वाले सैनिक अंग्रेज नहीं थे वह सैनिक भारतीय ही थी जिन्होंने अपने ही भाइयों की जान ली। वहीं काम अब देश के राजनेता कर रहे हैं भारतीय को आपस में लड़ाकर।
‘सारे जहां से अच्दा हिंदुस्तां हमारा’ की रचना करने वाले शायद ‘अल्लामा इकबाल’ की आत्मा भी देश की यह दुर्दशा देकखर रो रही होगी। शायद भारतीय होने के कारण हम सब का भी यह दायित्व बनता है कि हम अतीत के विशाल सागर में से जिसकी तलहटी में अमृत और विष दोनों मौजूद है उसमें से सकारात्मक सोच के साथ राष्ट्र और समाज के हित में अमृत निकाल कर ही लाये और वितरित करें। प्रेम रूपी अमृत ही देश के चैन और शांति में सहायक हो सकता है।
मैं व्यक्तिगत तौर पर उम्मीद करता हूं कि इलेक्ट्रानिक मीडिया और सोश्यल मीडिया प्लेटफार्म से कि शाम होते ही स्टुडियों में बैठाकर अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में ‘दंगल’ न करवाये इससे ना तो कोई देश का भला होगा और ना ही मानवता का करना ही है तो देश की एकता अखंडता कैसे मजबूत हो, देश कैसे प्रगति करे, देश को हम सब मिलकर कैसे आगे बढ़ाएँं, मानवता कैसे मजबूत हो इस पर चर्चा कराएं। नहीं तो सोशल मीडिया के दुष्परिणाम यह देश उदयपुर, अमरावती की घटनाओं के रूप में देख चुका है।