उज्जैन, अग्निपथ। नगर निगम से बाहर निकाले गए 15 संविदा कर्मचारियों को कोर्ट से स्थगन मिल गया है। कोर्ट के फैसले की प्रति नगर निगम पहुंचने के बाद इन्हें नौकरी पर रखा जाएगा या नहीं, इस पर आयुक्त फैसला लेंगे। इन संविदा कर्मचारियों को पिछले 7 महीने से वेतन भी नहीं मिला है।
नगर निगम आयुक्त ने शासन के एक आदेश का हवाला देते हुए नगरनिगम के अलग-अलग विभागों में काम करने वाले 15 कंप्यूटर ऑपरेटर्स को पिछले दिनों नौकरी से बाहर कर दिया था। सभी कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर पदस्थ थे। शासन के जिस आदेश का संविदा कंप्यूटर ऑपरेटर को पद से हटाने के लिए इस्तेमाल किया गया, उसे ही संविदा कर्मचारियों ने कोर्ट में चेलेंज किया है।
संविदा कर्मचारियों के वकील विस्मित पनौत और प्रणिति शर्मा ने उच्च न्यायालय इंदौर खंडपीठ में पक्ष रखा कि नगर निगम ने शासन के आदेश की अपने स्तर पर मनमानी व्याख्या कर संविदा कर्मचारियों को पद से निकाला है। जबकि उक्त आदेश नगर निगम के संविदा कर्मचारियों पर लागू ही नहीं होता। वकीलों ने कोर्ट में पक्ष रखा कि राज्यशासन के सामान्य प्रशासन विभाग ने 5 जून 2018 को स्पष्ट आदेश जारी किया हुआ है कि संविदाकर्मियों को बिना युक्तियुक्त आधार व कारणों के सेवा से पृथक नहीं किया जाएगा। साथ ही संविदाकर्मियों को जब तक नियमित नहीं कर दिया जाता तब तक उन्हें हर साल जनवरी में वेतनवृद्धी दी जाए।
सामान्य प्रशासन का आदेश और नगरीय प्रशासन का आदेश दोनों भिन्न है। कोर्ट के समक्ष यह भी पक्ष रखा गया कि नगर निगम ने संविदा कर्मचारियों को नवंबर 2021 से वेतन भी नहीं दिया है। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने नगर निगम उज्जैन के सेवा समाप्ति आदेश पर रोक लगा दी है।