सुनवाई के दौरान पलटे नाबालिग और परिजन, कोर्ट ने चिकित्सक और डिएनए रिपोर्ट को आधार माना
धार, अग्निपथ। नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में कोर्ट ने एक युवक को 20 साल कारावार की सजा दी है। खास बात यह है कि पीडि़ता और उसके परिजनों के बयान से पलटने के बावजूद पॉक्सो एक्ट के विशेष न्यायाधीश पंकजसिंह माहेश्वी ने मेडिकल सबूतों के अधार पर युवक को दोषी मानते हुए सजा दी है।
अभियोजन मीडिया सेल प्रभारी अर्चना डांगी ने बताया कि 1 जनवरी 2019 को नाबालिग लडक़ी अपनी आंटी के घर जाने का बोलकर घर से गई थी। देर रात तक घर नहीं लौटी तो परिजनों ने पुलिस को सूचना देने के साथ नाबालिग की तलाश शुरु की। जिसके बाद 8 जनवरी को नाबालिग लडकी दस्तेयाब हुई। जहां पर पीडि़ता ने आरोपी युवराज पिता पदमसिंह (21) द्वारा बहला-फुसलाकर ले जाने और दुष्कर्म करने की बात बयानों में बताई थी। जिसके आधार पर पुलिस ने मेडिकल करवाने के साथ ही आरोपी के खिलाफ कार्रवाई शुरु की गई। पॉक्सो अधिनियम 2012 के अन्तर्गत कार्यवाही कर आरोपी को गिरफ्तार किया गया।
संपूर्ण अनुसंधान कर चालान न्यायालय में पेश किया गया। न्यायालय के समक्ष सुनवाई के दौरान पीडि़ता एवं उसके माता-पिता थाने में पुलिस के समक्ष दिए बयानों से पलट गए थे। ऐसे में अभिभाषक ने चिकित्सकक, विवेचक के कथनों के माध्यम से पीडि़ता की आयु एवं डीएनए रिपोर्ट पेश की, जिसके आधार पर ही कोर्ट ने प्रकरण को प्रमाणित मानते हुए 20 साल की सजा सुनाई है। प्रकरण में अभियोजन की ओर से पैरवी विशेष लोक अभियोजक आरती अग्रवाल के द्वारा की गई।
आरोपी से उदारता बरतना न्यायोचित नहीं- कोर्ट
निर्णय के दौरान कोर्ट ने अपने फैसले में दुष्कर्म को लेकर उल्लेख करते हुए कहा कि आरोपी के द्वारा अवयस्कर 18 वर्ष से कम उम्र की बालिका के साथ घिनौना कृत्य किया है। समाज में बच्चियों एवं महिलाओं के साथ इस प्रकार के अपराध में काफी बढ़ोतरी हो चुकी है और इस प्रकार के अपराध समाज की नैतिकता को प्रभावित करते हैं। आरोपी के कृत्य को दृष्टिगत रखते हुए दंड के संबंध में आरोपी के प्रति उदारता बरती जाना न्यायोचित नहीं है। जिसके कारण ही सजा सुनाई है।