इंदौर के खालसा कॉलेज में कमलनाथ की एंट्री पर बवाल

कीर्तनकार बोले- शर्म करो, 1984 में सिखों को बर्बाद करने वाले का गुण गान बंद करो

इंदौर, अग्निपथ। मंगलवार को इंदौर के खालसा कॉलेज में प्रकाश पर्व पर आयोजित कीर्तन कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पहुंचे और मत्था टेका। इस पर पदाधिकारियों ने उन्हें सरोपा सौंपा और सम्मान किया। कमलनाथ यहां कुछ देर रुके और फिर चले गए लेकिन उनके जाते ही वहां बवाल मच गया। यहां भरी सभा में पंजाब से आए कीर्तनकार मनप्रीत सिंह कानपुरी ने समाज के सचिव राजा गांधी को जबर्दस्त आड़े हाथों लिया। उन्होंने हजारों लोगों की उपस्थिति में उन्हें कहा कि शर्म करो गांधी। जिसने सिखों घर बर्बाद कर दिए, जो 1984 का दोषी हो तुम उसके गुणगान गा रहे हो हो।

भरी सभा में कीर्तनकार मनप्रीत सिंह के ये तेवर देखकर सभी हतप्रभ रह गए। सिंह ने कहा कि 1984 में जिस बंदे के कहने पर हजारों सिखों का कत्ल होता है, दुकानें जला दी जाती हैं, हमारी माता-बहनों की इज्जत पर हाथ डाला जाता है, उस बंदे का सम्मान हम कर रहे हैं। सिंह यही नहीं चूके उन्होंने कहा कि मैं वाहे गुरु गोविंद सिंह की सौगन्ध खाकर कहा कि अब कभी इंदौर नहीं आऊंगा। इस बीच राजा गांधी हो-हल्ला के बीच बोलते नजर आए। उन्होंने कहा कि मैं गलत हूं तो मैं भुगत लूंगा और आप गलत हो तो आप भुगतोगे।

दूसरी ओर इस पूरे वाकए के कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आ आए और पंजाब भी पहुंचे जहां इसे लेकर सरगर्मी है। मामले में गुरुसिंघ सिख सभा के अध्यक्ष (प्रभारी) दानवीर सिंह छाबड़ा का कहना है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। दोपहर को कमनलाथ के आने के कारण कीर्तन का कार्यक्रम दो-पांच मिनट लेट हुआ जिसके चलते कीर्तनकार मनप्रीतसिंह की नाराजगी थी। जब उनसे वीडियो की बात कही तो वे बोले कि कीर्तनकार की नाराजगी कमलनाथ को सरोपा सौंपे जाने को थी कि इसे समाज के लोगों को सम्मानित किया जाता है। कमलनाथ को सरोपा नहीं स्मृति चिन्ह दिया जाना था। जब वीडियो में कमलनाथ को कोसने के सारी बातें बताई तो कहा कि यह मनप्रीतसिंह के निजी विचार हो सकते हैं।

गृह मंत्री बोले अत्यंत दुखद है… शर्मनाक

इस मामले में गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने बयान दिया कि आज गुरुनानक देव जी का प्रकाश पर्व है जिन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा में अपना जीवन तिल-तिल कर समर्पित कर दिया। आज इंदौर के जो खालसा कॉलेज में हुआ वह अत्यंत दुखद है, शर्मनाक है। पहले जिस प्रकार से साधु-संतों के यज्ञों में आसुरी शक्तियां विघ्न डालने का प्रयास करती थी, कमोबेश उसी प्रकार से आज भी आचरण किया गया है। 1984 के नरसंहार के आरोपियों से उम्मीद भी क्या की जा सकती है।

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