अपने जीवन की अंतिम सांस तक पत्रकारिता के मूल्यों के लिये, पत्रकारिता धर्म के लिये जीवन समर्पित करने वाले देश के मूर्धन्य पत्रकार, दैनिक अग्निपथ के संस्थापक हमारे पितृ पुरुष स्वर्गीय ठाकुर शिवप्रताप सिंह द्वारा रोपित यह अग्निपथ रूपी पौधा आज अपनी उम्र के 34 बसंत पार कर 35वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है।
खुशी के इस अवसर पर मैं अग्निपथ की पूरी टीम के साथ असंख्य पाठकों, विज्ञापनदाताओं, साथी संवाददाताओं, वितरक भाइयों को बधाई देते हुए उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जिनकी श्रम की बूँदों ने 34 वर्ष पहले रोपे गये अग्निपथ को अपने स्नेह आर्शीवाद, प्यार, दुलार के साथ सिंचित किया जिसके फलस्वरूप यह प्रदेश में पत्रकारिता का अलख जगाते हुए उसके नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हुए ‘महावृक्ष’ के रूप में आपके सामने है।
भारत में पत्रकारिता का इतिहास बताता है कि किसी भी पौधे रूपी समाचार पत्र को पुष्पित पल्लवित होने में जीवन की तीन पीढिय़ां खप जाती है। ‘अग्निपथ’ की विकास गाथा भी कुछ ऐसी ही थीम पर लिखी जा रही है। पूज्य पिताजी स्वर्गीय ठाकुर शिवप्रताप सिंह जी के निधन पश्चात उनकी दूसरी पीढ़ी हम पाँच भाइयों स्वर्गीय प्रभात कुमार जी चंदेल, प्रद्योत कुमार जी चंदेल, अनिल सिंह जी चंदेल, अरविन्द सिंह जी चंदेल, अर्जुन सिंह चंदेल ने अग्निपथ को अपनी मेहनत, प्रतिभा, कौशल के बल पर नवजात शिशु से अपने पैरों पर चलने लायक बनाया।
बड़े भाई साहब को खोने के बाद हम शेष चार भाई भी वरिष्ठ नागरिकों की श्रेणी में आ चुके हैं अब अग्निपथ को उम्र के इस पड़ाव पर नवजवान पीढ़ी की जरूरत थी जो समय के साथ ‘अग्निपथ’ को भी आधुनिक समय, आधुनिक तकनीक, साज-सज्जा युक्त, भवन कार्यालय के साथ नवयौवन की पीढ़ी में प्रवेश कराके युग के साथ कदमताल करा सके। समय की माँग के साथ चंदेल परिवार की तीसरी पीढ़ी दिग्विजयसिंह, उदय सिंह, चंद्रभान सिंह, आनंद सिंह, अभिमन्यु सिंह, अभिराज प्रताप सिंह चंदेल के रूप में अग्निपथ की विकास यात्रा को आगे बढ़ाने के लिये प्रयासरत है।
शायद देश की आजादी के पहले समाचार पत्र का प्रकाशन करना जितना कठिन और दुरुह कार्य था उतना ही आज भी है। सोश्यल मीडिया, इलेक्ट्राानिक मीडिया इस समय प्रिन्ट मीडिया समाचार पत्रों के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है वहीं दूसरी ओर चाहे केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकारें अब समाचार पत्रों से उनका पहले जैसा दोस्ताना रवैया नहीं रहा। मीडिया ने भी समाज के अन्य वर्गों में आयी नैतिक गिरावट से प्रभावित होकर समाज में अपना सम्मानजनक स्थान खो दिया है।
समाचार पत्रों की विश्वसनीयता में आयी कमी के कारण उसे अब वह सम्मान नहीं मिलता है जो पहले मिलता था इस कारण दैनिक समाचार पत्र का प्रतिदिन प्रकाशन करना उतना ही पीड़ादायक है जितनी पीड़ा स्त्री को प्रसव में होती है। स्त्री तो शिशु को जन्म देने के लिये नौ माह में एक बार पीड़ा झेलती है दैनिक अखबार को प्रतिदिन जन्म देने के लिये रोजाना प्रसव पीड़ा से गुजरना होता है।
वर्तमान हालातों में समाचार पत्र अपने अस्तित्व की लड़ायी लड़ रहे हैं। ईपेपर, पीडीएफ फाईल और भी न जाने क्या-क्या खटकरम आ गये हैं जिसके फलस्वरूप ग्राहकों की संख्या कम होने से प्रसार में गिरावट आ गयी है। ऐसी विषम परिस्थितियों में दूर-दराज, सुदूर क्षेत्रों में अग्निपथ के संवाददाताओं ने एक परिवार के सदस्य की भांति हमें सहयोग दिया सम्बल दिया जिसकी बदौलत अग्निपथ आज भी तूफानों के बीच जलते हुए दिये की भांति खड़ा है।
आदिवासी क्षेत्र अलिराजपुर, झाबुआ, पेटलावद, सारंगी, बदनावर, बडऩगर, उन्हेल, नागदा, खाचरौद, मेघनगर, धार, खरगोन, शाजापुर, पोलायकला, बेरछा, मक्सी, कायथा, घट्टिया, घोंसला, नलखेड़ा, आगर-मालवा, महिदपुर, महिदपुर रोड, जावरा, रतलाम, सुसनेर, रूनिजा, कानड़, तराना, देवास, बामनिया, बड़ौद तक अग्निपथ के खबरनवीसों की एक लम्बी श्रृंखला है जो दिये रूपी अग्निपथ में निरंतर तेल डालकर उसे समाज को प्रकाश देने के लिये ऊर्जा दे रहे हैं।
आज के इस शुभ अवसर पर मैं पूरे अग्निपथ परिवार की ओर से आपसे यह वायदा करता हूँ कि ‘पत्रकारिता धर्म’ को निभाने के लिये, सत्य को ऊजागर करने, कमजोर मजलूमों की आवाज बनने, अनाचारी और अत्याचारियों का सामना करने के लिये और समाज को सच का आईना दिखाने के लिये हम सदैव प्रयासरत रहेंगे और इस मशाल को जलाये रखेंगे। अग्निपथ की विकास यात्रा में हम आपको एक और शुभ समाचार देने जा रहे हैं मध्यप्रदेश की व्यवसायिक राजधानी इंदौर से हम शीघ्र ही दैनिक अग्निपथ का प्रकाशन करने जा रहे हैं आप सभी को इस हेतु अग्रिम बधाई।