प्रसिद्ध शायर बशीर भद्र का यह शेर इन दिनों मेरे शहर उज्जैन पर बिल्कुल प्रासंगिक साबित हो रहा है-“कडक़ड़ाती सर्दी भरा दिसंबर गरीबों पर कहर बनकर टूटा है।” वर्षों से विनोद मिल की चाल में रहने वाले के बेघर होने का दर्द लोग भूल भी नहीं थे कि सरकार का दूसरा फरमान आ गया। गुलमोहर कालोनी, रामनगर, ग्यारसी नगर में रहने वाले 200 से ज्यादा परिवारों के आशियाने को जमींदोज करने की मुनादी ने गरीबों की रातों की नींद छीन ली है।
विनोद मिल की चाल के निवासियों का हटाया जाना तो इसलिये भी जायज ठहराया जा सकता है कि हायकोर्ट के माध्यम से मिल श्रमिकों को ब्याज सहित रकम दी गयी है साथ ही जिला प्रशासन ने उनके पुनर्स्थापन के भी प्रयास किये हैं। दूसरा मामला सिंहस्थ भूमि क्षेत्र में बने हुए मकानों का है जिन्हें हटाये जाने का फरमान साहबबहादुर ने कर दिया है।
हम अतिक्रमणकर्ताओं के पक्षधर कदापि नहीं है परंतु इस अपराध में जो और भी आरोपी है उन्हें बख्श देने की हम घोर निंदा करते हैं।
सिंहस्थ की जिस भूमि पर गरीबों के मकान या झोपड़े बने हुए हैं वह मेहनतकश मजदूरों, जो शायद ठेले चलाने वाले, मजदूरी करने वाले, रिक्शा चलाने वाले ही हो सकते हैं, जिन्होंने अपने गाढ़े खून-पसीने की कमायी में से थोड़ा-थोड़ा पैसा अपना पेट काटकर बचाकर अपने सिर ढक़ने की छत बनायी होगी।
उस भूमि पर किसी धन्ना सेठ, लखपति, करोड़पति के मकान नहीं बन सकते हैं। भोले-भाले नागरिकों को किसी ने बदमाशीपूर्वक बहला-फुसलाकर सिंहस्थ भूमि पर प्लॉट बेचकर अवैध बसाहट करवा दी। सबसे बड़ा अपराधी तो उस जमीन को विक्रय करने वाला कालोनाइजर या भूमि मालिक है।
प्रशासन को सबसे पहले जे.सी.बी. का पंजा उसके आलीशान महल पर चलाना चाहिये साथ ही उसकी सारी संपत्ति राजसात करके उसे जेल की सींखचों के पीछे पहुँचाना चाहिये।
नगर निगम अधिकारी-कर्मचारी बने गांधारी
और उस भूमाफिया से बड़े गुनाहगार नगर निगम के वह अधिकारी-कर्मचारी है जिनका दायित्व अवैध निर्माण कार्यों को रोकने का है। जनता के टेक्स से जिन्हें मोटी-मोटी तनख्वाहें मिलती हैं। छोटा सा शासकीय सेवक होने के बाद भी वह आज करोड़ों में खेल रहे हैं महंगी गाडिय़ों और आलीशान महलों के मालिक है।
साहब बहादुरों! यदि सजा ही देना है तो नगर निगम के तात्कालीन आयुक्त, भवन अधिकारी, भवन निरीक्षकों को भी दीजिये जिन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं किया। शायद सिंहस्थ भूमि पर प्लॉट काटने वाले से मोटी रकम लेकर या फिर नेताओं के दबाव में आकर अपनी आँखों को बंद कर लिया जिसके कारण गरीबों की बस्तियां बस गयी।
पंजीयन कार्यालय लापरवाही या रिश्वत का खेल
इस अवैध कार्य में उज्जैन का जिला पंजीयन कार्यालय भी बराबर का गुनाहगार है जहाँ पर दिन भर खुले आम रिश्वत का खेल चलता है क्या शासकीय भूमि या सिंहस्थ भूमि के सर्वे नंबर का रिकार्ड नहीं है पंजीयक के पास? यदि सिंहस्थ भूमि के सर्वे नंबर है तो फिर प्लॉटों की रजिस्ट्रियां 2016 के पहले कैसे हो गयी?
जनप्रतिनिधि भी इसलिए गुनहगार
यदि सिंहस्थ भूमि पर मकान बनाने वाले दोषी है तो उस क्षेत्र के जनप्रतिनिधि चाहे वह क्षेत्र के पार्षद, विधायक या सांसद हो वह भी बराबर के गुनाहगार है। जब मकान बन रहे थे तो जनप्रतिनिधि मौन क्यों थे? क्या वोटों की क्षुद्र राजनीति के कारण उन्होंने मौन धारण कर लिया था? शासन-प्रशासन को सूचना क्यों नहीं दी? शिकायत क्यों नहीं की? क्या इस गोरखधंधे में उनकी भी हिस्सेदारी है?
तब ही होगा सच्चा न्याय
इस तरह के तमाम यक्ष प्रश्न आज नागरिकों के सामने हैं। सिंहस्थ भूमि पर निर्माणों को किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता है पर हमारा मत है कि इन अवैध कार्य में लिप्त किसी एक को सजा बाकी को माफी यह अनुचित है। यदि सजा देनी ही है तो इसके दोषी सभी को दीजिये तभी आपका न्याय प्रिय विक्रमादित्य की नगरी में रहना सार्थक होगा अन्यथा यह उचित नहीं।