मेरे देश के 138 करोड़ प्रजातांत्रिक भगवानों (बकौल एक राजनेता लोकसभा/ विधानसभा/ राज्यसभा मंदिर है, जनता जनार्दन/ मतदाता भगवान और नेता पुजारी) सुन लो, प्रजातंत्र के भगवानों, तुम्हारे वोट की मदद से नेता लोग मंदिर रूपी लोकसभा / राज्यसभा / विधानसभा में पहुँचते हैं। उन मंदिरों की सेवा करने का शुल्क तुम्हारे ही गाढ़े खून-पसीने की कमायी से वसूलते हैं जानकर होश फाख्ता हो जायेंगे। प्रजातंत्र में नेताओं के लिये मतदाता भगवान हैं और भगवान बोलते नहीं है इसीलिये भारत का नागरिक खामोश होकर इस बारे में ज्यादा जानना भी नहीं चाहता क्योंकि वह भगवान जो ठहरा और भगवान का स्वभाव दयालुता का होता है।
खैर, आगे बढ़ते हैं सबसे पहले बात करते हैं लोकतंत्र के दिल्ली स्थित प्रजातंत्र के सबसे बड़े मंदिर लोकसभा की, जहाँ पर भगवानों (मतदाता) के वोटों की मदद से पहुँचने वाले 545 संसद सदस्य और 245 राज्यसभा सांसदों की क्षमता है। मतलब साफ है प्रजातंत्र के इस मंदिर के सेवा करने के लिये कुल (545+245) 790 पुजारी (सांसद) मौजूद हैं। नीमच के आर.टी.आई कार्यकर्ता श्री चंद्रशेखर गौड़ ने जब 2014-15 से लेकर 2017-18 के बीच इन पुजारियों (सांसदों) के वेतन भत्ते पर होने वाले खर्च की जानकारी चाही तो उसे अनेक बाधाओं के बाद, अपीलों के बाद लोकसभा सचिवालय से जो जानकारी उपलब्ध हुई उसे ध्यान से देखिये। लोकसभा सचिवालय ने बताया कि इन चार वर्षों (2014-2018) के बीच लोकसभा सांसदों के वेतन, भत्ते और पेंशन पर भारत सरकार का 15,54,20,71,416 (लगभग 15.54 अरब) रुपये खर्च हुआ है। अब राज्यसभा के 245 सांसदों को दिये जाने वाले वेतन, भत्ते और पेंशन की बात करें तो राज्यसभा सचिवालय ने श्री गौड़ को ही जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष 2014-2018 के बीच 4 वर्षों में राज्यसभा सांसदों को वेतन, भत्ते, पेंशन के रूप में 4,43,36,82,937 (लगभग 4.43 अरब) रुपयों का भुगतान किया गया। हमने प्रत्येक सांसद (पुजारी) का औसत वेतन निकाला तो लोकसभा सांसद का वेतन, भत्ता, पेंशन आदि का प्रतिवर्ष 71.29 लाख और राज्यसभा सांसद का 44.33 लाख प्रतिवर्ष खर्च आता है।
आगे चलिये प्रजातंत्र मंदिर के इन पुजारियों को सांसदों को प्रतिमाह वेतन के रूप में 100,000/- (एक लाख) रुपये, संसदीय क्षेत्र में कार्य करवाने के लिये 70,000/- (सत्तर हजार), कार्यालयीन खर्च के लिये 60,000/- (साठ हजार) (इसमें स्टेशनरी तथा सहायक रखने का खर्च शामिल है), स्थानीय क्षेत्र विकास के लिये सांसद निधि के 5 करोड़, यदि लोकसभा की कार्यवाही चल रही है और रजिस्टर पर हस्ताक्षर हुए हैं तो 2000 रुपये प्रतिदिन की पात्रता है, इसके साथ ही सांसद जी के घर के कपड़े धुलवाने के लिये तीन माह में 50,000/- रुपये यानि प्रतिदिन के 555/- रुपये भी दिये जाते हैं। अब सुविधाओं की भी बात कर लें सांसदों को पत्नी सहित वर्ष भर में हवाई जहाज से 34 यात्राएँ करने पर किराये में 75 प्रतिशत की छूट, रेलगाड़ी से प्रतिवर्ष असीमित और फस्र्ट क्लास वातानुकूलित कोच में नि:शुल्क, सड़क मार्ग से यात्रा करने पर 16/- रुपये प्रति किलोमीटर का खर्च भी भारत सरकार उठाती है। इसमें हमारे जनप्रतिनिधि बेचारे कुछ नहीं करते जब संविधान का निर्माण हुआ था तभी सारी व्यवस्थाएँ भविष्य को देखते हुए कर ली गई थी। हमारे संविधान का अनुच्छेद 106 सांसदों को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह कानून बनाकर अपने वेतन, भत्ते, पेंशन स्वयं ही तय कर लें, बेचारे सांसद तो केवल उस कानून का उपयोग कर पालन कर रहे हैं।
दुनिया के अन्य देशों में व्यवस्था दूसरी है। यू.के. में एक स्वतंत्र इकाई जिसमें पूर्व सांसद, ऑडिटर, पूर्व न्यायाधीशों की कमेटी सांसदों के वेतन, भत्ते, पेंशन तय करती है। आस्ट्रेलिया में सरकार के विशेषज्ञ नुमाइंदे, अर्थशास्त्री, कानूनविद, सार्वजनिक, प्रशासनिक क्षेत्र के सदस्य यह मामला तय करते हैं। हमारे सांसदों ने वर्ष 2018 में बढ़े हुए भत्ते, वेतन, पेंशन बढ़वा ली थी। हमारे देश में वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में माननीय न्यायाधीश और भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर को प्रतिमाह दो लाख 50 हजार और केन्द्र सरकार के सचिव को 2 लाख 25 हजार वेतन मिलता है।
अब बात करते हैं प्रजातंत्र के छोटे मंदिरों के पुजारियों (विधायकों) की। देश में वर्ष 2012 की एक रिपोर्ट अनुसार 4120 विधायक है। सबसे ज्यादा तेलंगाना अपने विधायकों को 2.5 लाख प्रतिमाह, फिर नयी दिल्ली विधानसभा के विधायकों को 2.10 रुपये प्रतिमाह मिलते हैं, उ.प्र. 1.87, महाराष्ट्र 1.70, उत्तराखंड तथा जम्मू और कश्मीर में 1.60 लाख, त्रिपुरा के विधायकों को 34 हजार, नागालैंड में 36 हजार, गुजरात में 60 हजार और मध्यप्रदेश में 30 हजार प्रतिमाह वेतन, निर्वाचित क्षेत्र के लिये 35 हजार भत्ता, 15000 कम्प्युटर आपरेटर के लिये और 10 हजार स्टेशनरी के लिये मिलते हैं।
लोकतंत्र के भगवान रूपी मतदाता की भारत में प्रति व्यक्ति आय 11,254 रुपये प्रतिमाह और मध्यप्रदेश में 7500/- रुपये प्रति व्यक्ति/प्रतिमाह है। अब आप गुणा-भाग कीजिये भगवान (जनता) की प्रतिमाह आय कितनी? और भगवान के पुजारियों (सांसद/विधायकों) की प्रतिमाह आय कितनी?
हमारी लोकसभा में 2018 में यह प्रस्ताव भी आ गया है कि सांसदों को अपने वेतन, भत्ते बढ़ाने की बार-बार जहमत ना उठानी पड़े, महंगाई के हिसाब से हर पाँच साल में अपने आप बढ़ जाये। मैं व्यक्तिगत तौर पर एसोसिएशन फॉर डेमोके्रटिक रिफाम्र्स के संस्थापक जगदीश जी छोकर जी के इस विचार का समर्थक हूँ कि भले ही सांसदों के वेतन दस गुना बढ़ा दें लेकिन सरकारी खजाने से परिवहन, मकान, गाड़ी, मेडिकल, हवाई यात्रा, टेलीफोन भत्ता तत्काल बंद होना चाहिये। साधुवाद है माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी को जिन्होंने 2020 में एक संशोधन विधेयक लाकर 1952, 1954 की धारा में संशोधन कर 30 प्रतिशत की कटौती की है। महंगाई के इस दौर में प्रजातंत्र के भगवान त्रस्त, पुजारी मस्त।