नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, वाणिज्य राज्यमंत्री सोमप्रकाश आज फिर किसान संगठनों के नेताओं के साथ आठवें दौर की बातचीत के लिए मेज पर बैठेंगे। नरेंद्र सिंह तोमर ने साफ किया है कि तीनों कानूनों की वापसी के अलावा सरकार सभी मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार है। प्राप्त जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार 12 जनवरी तक किसान इस मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान पर गंभीरता से काम कर रही है।
इसके लिए केन्द्र सरकार ने किसानों के साथ एमएसपी पर खरीद की गारंटी समेत अन्य भिन्नता के मुद्दों पर नए विकल्प पर चर्चा का मन बनाया है। इसके पीछे केन्द्र सरकार की मंशा किसानों को लोहड़ी, मकर संक्रांति और पोंगल का तोहफा देने की है।
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर लगातार सक्रिय हैं। भारतीय किसान यूनियन के नेता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के संपर्क में हैं। कृषि मामलों में बारीक पकड़ रखने वाले रक्षा मंत्री का किसान नेता आदर भी करते हैं। बताते हैं भाकियू के राकेश टिकैत भी रक्षा मंत्री के संपर्क में हैं। नानकसर गुरुद्वारा प्रमुख बाबा लखावाल ने भी केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर से 7 जनवरी को भेंट की थी।
बाबा लखावाल की पंजाब में अच्छी पकड़ है। वह मध्यस्थता के लिए तैयार हैं। इसके अलावा पंजाब के भाजपा नेताओं, केन्द्रीय मंत्रियों, अधिकारियों से केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मैराथन मंथन किया है। कुल मिलाकर केन्द्र सरकार की मंशा इस मुद्दे को अब सम्मान जनक तरीके से हल करने की है।
विकल्पों के साथ वार्ता में शामिल होगी सरकार
कुछ घंटे बाद केन्द्र सरकार और किसान संगठनों के वार्ताकारों के बीच में बातचीत शुरू हो जाएगी। केन्द्र सरकार ने साफ किया है कि किसान तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग छोड़ दें। वह कानून में संशोधन, कानून में खामियों पर चर्चा के लिए खुद को केन्द्रित करें।
एमएसपी पर खरीद की गारंटी जैसे मुद्दे पर किसान नेता विकल्पों के साथ आएं और सार्थक माहौल में बातचीत की प्रक्रिया पूरी हो, ताकि संवाद से समस्या का हल निकल सके। समझा जा रहा है कि एमएसपी पर खरीद की गारंटी जैसे मामले में केन्द्र सरकार राज्यों की भूमिका पर चर्चा कर सकता है। इसे राज्यों के अधिकार क्षेत्र में लाने के विकल्प पर चर्चा हो सकती है।
विशेषज्ञ समिति बनाकर, इसमें सभी पक्ष के लोगों को शामिल करके पारदर्शी तरीके से समाधान का भी विकल्प रखा जा सकता है। केन्द्र सरकार ने पहले भी वार्ता के दौरान तीनों कानूनों के कई प्रावधानों में संशोधन की बात को स्वीकार किया है।
किसान संगठनों के नेता बताते हैं कि इस तरह के 16 से अधिक संशोधन हैं, लेकिन कई महत्वपूर्ण बिन्दु हैं, जिस पर सरकार कोई ठोस कदम उठाने के पक्ष में नहीं थी। क्योंकि इन पर सहमति के बाद तीनों कानूनों अपने आप धराशायी हो जाते। बताते हैं एमएसपी पर खरीद की गारंटी देने के बाद भी इन तीनों कानूनों का किसानों पर दुष्प्रभाव काफी कम हो जाएगा।
किसान भले कहें कि लंबी लड़ाई के लिए तैयार, लेकिन…
किसान संगठन भले ही कहें कि जब तक सरकार तीनों कानूनों को वापस नहीं लेती, तब तक वह लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं और जोश, जज्बा दिखा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और चल रही है। नवंबर से आंदोलन के लिए निकले किसानों के बीच में अपने घर, खेत, खलिहान की तरफ लौटने की मंशा भी चर्चा के दौरान दिखाई पड़ जाती है।
किसान संगठनों में भी आपस में विचार मेल नहीं खा रहे हैं। हरियाणा, पंजाब के किसान संगठन और नेताओं के आगे उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों के किसान नेताओं की स्थिति में काफी अंतर है। किसान नेता वीएम सिंह को सिंघू बार्डर से जहां वापस कर दिया गया था और वह एक तरह से पूरे किसान आंदोलन में हाशिए पर चल रहे हैं, उसी तरह से राकेश टिकैत अपना दमखम बनाए रखने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। किसानों के मुद्दे पर सक्रिय, किसान नेता के अवतार में खड़े हुए योगेंद्र यादव की भी स्थिति यही है।
किसानों को अपना हक चाहिए
किसान नेताओं का कहना है कि वह सरकार की नाक नीची करने नहीं आए हैं। उन्हें बस अपना हक चाहिए। ताकि खेती-खलिहानी का देश की अर्थव्यवस्था और विकास में योगदान बना रहे। होशियारपुर के किसान नेता का कहना है कि एमएसपी पर खरीद की गारंटी मिल जाए तो हमें क्या परेशानी।
मोंगा के अमरीक सिंह कहते हैं कि सरकार न जाने क्यों यह अधिकार नहीं देना चाहती। केन्द्र सरकार ने खुद किसानों को राजमार्गों पर जमे रहने के लिए मजबूर कर रखा है। राजेवाल गुट के एक किसान नेता का कहना है कि केन्द्र पहले किसान और किसान आंदोलन को बदनाम कर रही थी। बाद में बातचीत की मेज पर आई तो टाल-मटोल करने में लग गई। सूत्र का कहना है कि कड़ाके की ठंड, शीत लहरी में कौन सड़क पर पड़े रहना चाहता है, लेकिन सरकार जब हमारी नहीं सुनेगी तो हम मजबूर हैं।
लोहड़ी, मकर संक्रांति, पोंगल का तोहफा क्यों?
मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले शुरू होने वाला लोहड़ी पर्व पंजाब, हरियाणा में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। परंपरा में नई फसल किसान की समृद्धि, खुशहाली का प्रतीक होती है। यही स्थिति समूचे उत्तर भारत में है। मकर संक्रांति का बड़ा महत्व है। दक्षिण भारत में पोंगल अपना स्थान रखता है। सरकार को यह समय किसानों के साथ सहमति बनने के लिए उपयुक्त लग रहा है।