इस वर्ष के अंत में मध्यप्रदेश की 230 विधानसभा सीटों के लिये साारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा के उपरांत राहत की सांस ले रही काँग्रेस पार्टी के बीच सीधा मुकाबला सन्निकट ही है। दोनों ही दल बाँहे चढ़ाकर आमने-सामने हैं। साारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने विकास यात्राओं की शुरुआत कर चुनाव प्रचार का श्रीगणेश कर दिया है।
पूरे मध्यप्रदेश में स्थानीय निकाय भारी कर्जे में डूबी हुयी है चाहे हम नगर निगमों की बात करें या नगर पालिकाओं की या नगर पंचायतों की, सब जगह आलम एक-सा ही है। नगर निगमों में 3-3 साल से ठेकेदारों के भुगतान नहीं हो पा रहे हैं, नगर पंचायतों में कर्मचारियों को वेतन 5- 5 किश्तों में दिया जा रहा है, विद्युत मंडल की दो-दो माह की देनदारी है। लबो लवाब यह है कि सरकार का खजाना खाली है।
एक स्थानीय निकाय कर्ज में डूबकर किस प्रकार विकास यात्रा में अपनी सहभागिता कर सकते हैं? इसी कारण इस बार की विकास यात्राएं नागरिकों में आकर्षण पैदा नहीं कर पा रही है और ना ही इन विकास यात्राओं में आम नागरिक की हिस्सेदारी है। साा के सिंहासन से बंधे प्रशासनिक अधिकारी बेचारे मजबूर होकर इन विकास यात्राओं का बोझ अपने कंधों पर ढोकर एक-एक दिन निकाल रहे हैं।
नेता नगरी से यह घोषणा की गयी थी कि इन विकास यात्राओं के दौरान करोड़ों-अरबों के विकास कार्यों का भूमिपूजन व शिलान्यास व लोकार्पण किया जायेगा परंतु बीते सप्ताह से ऐसा कहीं कुछ देखने में नहीं आ रहा है। कर्ज में डूबा मध्यप्रदेश और इन विकास यात्राओं के अंधेरे में रोशनी नहीं कर पा रहा है। औपचारिकता में कहीं छात्रावासों, चिकित्सालयों एवं अन्य शासकीय कार्यालयों के दौरे निरीक्षण करके ही खानापूर्ति की जा रही है। कुल मिलाकर सरकार की यह विकास यात्राएं ऊँची दुकान-फीका पकवान की कहावत चरितार्थ नजर करती आ रही है।