गर्मियां आते ही मोरों के लिए दाना-पानी की पूर्ति करना चुनौती, समिति लंबे समय से निष्क्रिय
पेटलावद, (बुरहानुद्दीन बोहरा) अग्निपथ। अति संवेदनशील प्राणी और राष्ट्रीय पक्षी मोर जो की पेटलावद क्षेत्र में एशिया में सर्वाधिक संख्या में पाये जाते है। किंतु उनकी सुरक्षा अब होते नहीं दिख रही है। जिसके चलते मोर प्रेमी निराश है। राष्ट्रीय पक्षी मोर पेटलावद तहसील बहुतायत में पाये जाते है। यहां जलवायु और खान पान मोरों के अनुकुल होने से वे यहां अपने आप को सुरक्षीत महसूस करते है। किंतु विगत दो दशकों से क्षेत्र में मोर असुरक्षीत व संख्या में कम नजर आ रहे है। एक समया था जब पेटलावद क्षेत्र में लगभग 10 हजार से अधिक मोर हुआ करते थे। आज भी संख्या बहुत है किंतु वे असुरक्षीत है। क्योंकी उनके आशीयाने उजड गए है और उन्हें दाना पानी के लिए भी संघर्ष करना पडता है।
गर्मीयां प्रारंभ होने वाली है यह समय मोरों के लिए अतिसंवेदनशील होता है। इस समय उन्हें दाना पानी की पूर्ती के लिए भटकना पडता है।कई बार खेतों व जंगलों से मोर बस्ती की ओर आ जाते है। जहां उन्हें कई प्रकार के खतरे भी होते है। साथ ही आमजन उनका ध्यान भी रखते है। इस समय सभी को मिल कर मोरों की सुरक्षा के लिए अपने अपने स्तर से प्रयास करना चाहिए। इस हेतु प्रशासन को प्रचार प्रसार कर आमजन को जागृत करने का प्रयास भी करना चाहिए।
राष्ट्रीय पक्षी मोर कोई चुनावी वोटर नहीं है इसलिए आज तक किसी दल या नेता ने उनकी सुध नहीं ली है। केवल मोर प्रेमियों और कुछ संवेदनशील अधिकारियों के बल बूते पर ही क्षेत्र में कुछ कार्य मोर सरंक्षण के हो पाए है। जो की ना काफी है। इसके लिए बडे और स्थाई प्रयासों की आवश्यकता है। जिसके लिए मोर प्रेमियों , जनप्रतिनिधियों और प्रशासनीक अमले को मिलकर सही व वास्तविक कदम उठाने होंगे।
मोर प्रेमी तो लगे हुए
क्षेत्र के कई मोर प्रेमी अपने क्षमताओं के अनुरूप मोरों को सरंक्षण तथा दाना पानी देने में लगे हुए है और अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या में उन्होंने मोरों के लिए कुछ समय निकाल कर दाना पानी की व्यवस्था करना अपना रूटीन बना लिया है। वहीं कई घरों की छतों पर भी दाना पानी की व्यवस्था मिल जाती है।इसके साथ ही मयूर मंच और अन्य मोर प्रेमी लगातार मोरों के सरंक्षण के लिए आवाज उठाते रहते है। किंतु प्रशासन की ओर से उचित कार्रवाई नहीं हो पाती है। मुख्य रूप से वन विभाग को सक्रीय होकर अपनी जिम्मेदारी निभाना होगी।
मोरों को क्या चाहिए
मोर अतिसंवेदनशील जीव है जो की घास फूसं वाले क्षेत्रों में रहना पंसद करते है और उन्हें एंकात अधिक पंसद है। जिसके लिए वह पेटलावद में अधिकाधिक संख्या में पंपावती नदी क्षेत्र में देखे जाते है किंतु वहां गंदगी और अव्यवस्थाओं के चलते उनकी संख्या कम होती जा रही है। इसके लिए प्रशासनीक और जनभागीदारी से प्रयासों की आवश्यकता है नदीं क्षेत्र में ऐसे चबूतरे बनाए जाए जहां पर मोर सहित अन्य मुक प्राणी को दाना पानी की व्यवस्था के साथ सुरक्षा भी मिल पाए।
मोरों को किससे खतरा
पेटलावद क्षेत्र में वैसे तो मोरों का शिकार नहीं होता है किंतु कई बार इस प्रकार की घटनाएं सुनने में आती है। वहीं दूसरा मुख्य खतरा कुत्तों से मोरों को होता है जो की उन्हें मार देते है और मुख्य रूप से शहरी क्षेत्र में दाना पानी की तलाश में आए मोर कई बार करंट का शिकार हो जाते है। जिससे उनकी जान चली जाती है। इस प्रकार से मोरो को कुत्तों व करंट से बचाने के लिए प्रयास किए जाना जरूरी है।
लाखों का खर्च पर कोई फायदा नहीं
मोर के नाम पर क्षेत्र में पूर्व में लाखों रूपये खर्च हुए है। जिसमें मुख्य रूप से विश्राम गृह पर मोरों के लिए एक कमरा और अस्वस्थ्य मोरों के लिए एक पिंजरें का निर्माण व उस क्षेत्र में कुछ हरियाली करने का प्रयास किया गया था। किंतु उस और बाद में किसी ने ध्यान नहीं दिया जिस कारण से जो व्यवस्थाएं की गई थी वह आज धुमिल हो चुकी है। जिसके लिए एक बार पुन: प्रयास करने की जरूरत है।
लम्बें समय से नहीं हुई बैठक
मोर प्रेमियों व उनके सरंक्षण में लगे लोगों को एक मंच की आवश्यकता है जिसकी भूमिका प्रशासन बखुबी निभाकर मोरों के लिए कुछ करने वालों के लिए मंच तैयार कर सकते है। किंतु लंबे अंतराल के बाद भी मोर समिति की बैठक नहीं हो पाती है। जिस कारण से उनकी सुरक्षा के लिए कोई प्रयास नहीं हो पाते है। आईएएस एसडीएम अनिल राठौर से कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, मोर प्रेमियों और पत्रकारों ने इस संबंध में बैठक आयोजित कर कुछ योजना बनाने के बारे में कहा है। जिस पर एसडीएम श्री राठौर ने जल्द ही मोर समिति की बैठक बुलाने का आश्वासन दिया है। और उनके लिए कुछ करने के प्रयासों को भी मूर्त रूप देने की बात कहीं है।