वाराणसी। बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस यानी काशी में होली से पहले अघोरी होली खेली जा रही है। जलती चिता की राख से श्मशान में होली का उल्लास देखते बनता है। कोई खुद के शरीर पर भस्म रमा रहा है तो कोई दूसरों पर रंग गुलाल की तरह चिता की राख उड़ा रहा है।
वाराणसी में होली से पहले मसान होली खेलने की परंपरा काफी पुरानी है। अब जबकि 8 मई मार्च को पूरे देश में होली खेली जाने वाली है ऐसे में काशी की मसान होली भी शुरू हो गई है।
काशी में गंगा किनारे हरिश्चंद्र घाट से इस मसान होली की शुरुआत हुई। हरिश्चंद्र घाट पर शिव जी का एक मंदिर है। इसे मसान मंदिर कहा जाता है। यहां सुबह से ही उत्सव का माहौल है। शिवलिंग पर दूध, दही, शहद, फल, फूल, माला, धतूरा, गांजा, भस्म चढ़ाई जा रही है। पांच पुजारी रुद्राभिषेक करा रहे हैं। इसके बाद बाबा को धोती और मुकुट पहनाया जाता है। साल में एक ही दिन बाबा मसान मुकुट पहनते हैं।
खुशी और गम साथ-साथ
मसान होली का नजारा ऐसा है कि कोई इंसानी खोपड़ियों की माला गले में पहने, मुंह में जिंदा सांप दबाए नृत्य कर रहा, तो कोई जानवरों की खाल पहनकर डमरू बजा रहा। एक तरफ चिताएं जल रही हैं, दूसरी तरफ लोग उसकी राख से होली खेल रहे हैं। यानी खुशी और गम साथ-साथ।
रास्ते में जगह-जगह अघोरी बाबा करतब दिखा रहे हैं। कोई हाथ में नाग लेकर घूम रहा है, तो कोई आग से खेल रहा। चिता की भस्म हवा में इस तरह घुली है कि दूर-दूर तक मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा।
शिव पार्वती की निकलती है बारात
अघोरी होली के तहत ही काशी में रंग एकादशी पर शिव पार्वती की बारात भी निकलती है। मसान मंदिर से निकलने वाली यात्रा के लिए एक लड़के को शिव स्वरूप में और एक लड़की को पार्वती के रूप में रथ में बैठाया जाता है। चिता के सामने शिव पार्वती का पूजन किया जाता है और उसके बाद बारात निकलती है।
होली खेले मसाने में… काशी में खेले… घाट पर खेलें… खेले औघड़ मसाने में… गीत की धुन पर उल्लास के साथ मसानी होली खेलते हुए, चिता भस्म उड़ाते हुए औघड़ बाबा और भक्तों का हुजूम आगे की ओर बढ़ रहा है।
यह झांकी करीब 2:00 बजे दोपहर में अघोर आचार्य कीनाराम आश्रम पहुंचेगी। यहां से सभी हरिश्चंद्र घाट पर उस स्थान पर पहुंचेंगे जहां भगवान विष्णु राजा हरिश्चंद्र के सामने प्रकट हुए थे। वहां भगवान शिव पर चढ़ाई बस मंगाई जाएगी और उससे अघोरी बाबा एक दूसरे के साथ मसानी होली का रंग जमाएंगे।
महिलाएं भी पीछे नहीं
झांकी में कीड़े-मकौड़े, सांप-बिच्छू लिए औघड़ों को देखते ही बनता है। इसमें महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। सिर पर मुकुट, हाथ में त्रिशूल, कटार, मुंह पर काला रंग और लाल रंग की बाहर लटकती जीभ। मानो साक्षात काली यहां उतर आई हैं।
इसलिए मनाई जाती है मसान होली
मणिकर्णिका घाट के डोम लोकेश चौधरी बताते हैं, ‘रंगभरी एकादशी के दिन शिव जी, माता पार्वती का गौना कराकर लाए थे। इसके बाद उन्होंने काशी में अपने गणों के साथ रंग-गुलाल की होली खेली, लेकिन वे श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, किन्नर और अन्य जीव जंतुओं आदि के साथ होली नहीं खेल पाए थे।
इसलिए रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद महादेव ने श्मशान में बसने वाले भूत-पिशाचों के साथ होली खेली थी। तभी से यहां मसान होली खेली जाती है।’