रंगपंचमी के जश्न में घुमाई तलवार, रात में सोया सुबह उठ न सका
उज्जैन, अग्निपथ। श्री महाकालेश्वर मंदिर के सहायक पुजारी के बेटे की रंगपंचमी की गेर में तबीयत बिगडऩे के बाद मौत हो गई। मयंक नाम के इस नाबालिग ने रंगपंचमी पर भगवान महाकाल के ध्वज चल समारोह में कलाबाजी भी दिखाई थी। गेर के दौरान सभा मंडप में तलवार घुमाने का उसका वीडियो भी सामने आया है। गेर के दौरान ही उसकी तबीयत बिगड़ी थी। रात करीब 10 बजे वह घर जाकर सोया तो सुबह नहीं उठा। साइलेंट अटैक से उसकी मौत की आशंका जताई जा रही है।
महाकाल मंदिर के सहायक पुजारी मंगेश गुरु का 17 साल का बेटा मयंक कलाबाजी दिखाता था। रविवार को रंगपचंमी के अवसर पर भगवान महाकाल के ध्वज चल समारोह की तैयारी शाम से ही चल रही थी। मयंक शाम करीब 5.30 बजे पहुंच गया था। ध्वज पूजन के बाद गेर शुरू होने के पहले मयंक ने सभा मंडप में तलवार घुमाकर प्रदर्शन किया। फिर वह गेर में शामिल हो गया। बताया गया कि गेर के मंदिर से बाहर निकलते ही मयंक को घबराहट हुई थी।
इसे सामान्य मानकर वो जूस पीकर फिर गेर में शामिल हो गया। मयंक ने कई स्थानों पर अखाड़े का भी प्रदर्शन किया था। गुदरी पहुंचने पर मयंक की तबीयत दोबारा बिगड़ गई। इसके बाद वह खत्रीवाड़ा स्थित अपने घर पहुंच गया। घर पहुंचने के बाद मयंक उठ नहीं सका। इसकी सूचना से गुरु मंडली में शोक फैल गया।
दो बहनों में इकलौता भाई था
मयंक के दोस्त माधव शर्मा ने बताया वो दो बहनों में इकलौता भाई था। मयंक अक्षत कॉन्वेंट स्कूल में कक्षा 10वीं का छात्र था। पढ़ाई में भी वह ठीक था। बहनों से छोटा होने के कारण बहुत दुलारा था। यही कारण था कि कभी भी बाजार जाना हो तो भी वह बहनों के साथ ही जाता था। बहनों की पसंद से ही खरीदारी करता था। माधव ने बताया कि रविवार को शाम को मंदिर पहुंचने के बाद उसका फोन आया था। भगवान महाकाल की गेर को लेकर वह उत्साहित था। गेर के लिए मयंक ने नए कपड़े भी खरीदे थे। घटना से दोनों बहनों का रो-रोकर बुरा हाल है।
पुजारी और पुरोहित परिवार के लिए बड़ी क्षति
पं. आशीष पुजारी ने घटना पर दुख जताते हुए कहा, पुजारी मंगेश गुरू का पुत्र मयंक बाबा के ध्वज समारोह में सुबह से शाम तक लगा रहा। अचानक स्वास्थ्य खराब होने से महाकाल के चरणों में चला गया। पुजारी और पुरोहित परिवार के लिए यह बहुत बड़ी क्षति है। 17 साल की उम्र में इस तरह की घटना, अभी तक समझ नहीं आ रहा कि यह कैसे हो गया। बाबा महाकाल से प्रार्थना है कि उसे अपने चरणों में स्थान दें।