विक्रम नाट्य समारोह का चौथा दिन

विश्व को आदिशंकराचार्य ने दिखाया रास्ता

उज्जैन, अग्निपथ। भारत उत्कर्ष, नवजागरण और वृहत्तर भारत की सांस्कृतिक चेतना पर एकाग्र विक्रमोत्सव 2023 (विक्रम सम्वत् 2079) अंतर्गत विक्रम नाट्य समारोह के चौथे दिन आदिशंकराचार्य की प्रस्तुति हुई। इस नाटक का निर्देशन संजय मेहता, भोपाल द्वारा किया गया है।

नाटक आदिशंकराचार्य की शुरुआत गाने से होती है। गाना खत्म होते ही कुछ लोग झंडा लेकर स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए मंच पर आते हैं। तभी सूत्रधार बताता है कि आदि शंकराचार्य का जन्म केरल में बसे एक छोटे से कस्बे कालाड़ी में हुआ था। शंकर जब थोड़ा बड़ा होता है तो अपने पिता शिवगुरु से जिज्ञासा भरे तरह-तरह के प्रश्न पूछने लगता है।

शंकर की उम्र 4 वर्ष की भी नहीं हो पाती है और उनके पिता का स्वर्गवास हो जाता है। माता आर्यबा शंकर का प्रवेश माधवाचार्य जी के गुरुकुल में करवा देती हैं। शंकर 3 साल में सबकुछ सीख लेते हैं और वो घर वापस आ जाते हैं। तभी माधवाचार्य जी बताते हैं कि शंकर को आगामी शिक्षा के लिए गुरु गोविंदपाद जी के आश्रम जाना होगा। शंकर कहते हैं कि मैं सन्यास लेना चाहता हूँ और नदी के घाटपर शंकर सन्यास ले लेते हैं और जाते हुए अपनी माता को वचन देते हैं कि उनके अंतिम संस्कार हेतु अवश्य लौटेंगे।

मंच पर तभी सूत्रधार आकर बताता है कि शंकराचार्य ओंकारेश्वर में गुरुदेव गोविंदपाद जी के सानिध्य में लगभग 2 वर्ष रहे। गुरुदेव ने उन्हें योगाभ्यास, साहित्य सृजन और कुछ तंत्र विद्या सिखायी। शंकराचार्य समस्त शास्त्रों पर गुरु से ज्ञान प्राप्त कर उनमें पारंगत हुए। जब शंकराचार्य की शिक्षा संपन्न हो गई तब गोविंदपाद जी ने शंकर को शंकराचार्य की उपाधि प्रदान की और काशी जाने को कहा। वहाँ से आदि शंकराचार्य, उद्भ्रांत आदि शिष्यों सहित काशी की ओर प्रस्थान करते हैं।

काशी पहुँचने पर शंकराचार्य की भेंट एक स्त्री एवं चांडाल से होती है और वहाँ से शंकर बद्रीनाथ को प्रस्थान करते हैं। आगे पहुँचकर शंकर की भेंट कुमारिल भट्ट से होती है और वो शंकर को मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ करने को कहते हैं। आदि शंकराचार्य महिष्मति पहुँचकर मंडन मिश्र एवं उभय भारती से शास्त्रार्थ करते हैं और विजय प्राप्त करते हैं। तभी मंच पर 2-4 व्यक्ति आते हैं और वह चारों मठों की स्थापना के बारे में बताते हैं। इस प्रकार आदि शंकराचार्य 4 मठों की स्थापना कर भगवान केदारनाथ के सम्मुख समाधि में लीन हो जाते हैं।

आज की प्रस्तुति कर्णभार

18 मार्च को देश-प्रदेश के शीर्षस्थ लेखक निर्देशक डॉ. प्रभात कुमार भट्टाचार्य निर्देशित नाटक कर्णभार दर्शकों को देखने मिलेगा। यह नाटक महाभारत के महत्वपूर्ण प्रसंगों पर आधारित है।

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