जीवित काल में मृत्यु का बोध महसूस कर रहा हूं: पं. आनंदशंकर व्यास

123 साल पुरानी पैतृक धरोहर से हटाये जाने के कारण अंतर्मन से दु:खी हैं प्रसिद्ध ज्योतिर्विद

उज्जैन, (हरिओम राय) अग्निपथ। श्री महाकालेश्वर मंदिर के पास बड़ा गणेश मंदिर के नजदीक रहने वाले विश्वप्रसिद्ध ज्योतिर्विद, पंचागकर्ता पं. आनंदशंकर व्यास (87) का घर गुरुवार 13 अप्रैल से खाली होना प्रारंभ हो गया है। 123 वर्ष पुराने पीडिय़ों के इस मकान को छोड़ते हुए बुजुर्ग पं. व्यास बेहद दु:खी और निराश हैं।

हम आपको बता दें कि श्री महाकालेश्वर क्षेत्र विकास के द्वितीय चरण में यहां बरसो से रह रहे लोगों के आवास उनसे छिन गये हैं। राहत राशि के नाम पर भी कुछ हाथ नहीं आया है। पं. व्यास अपना घर बचाने के लिए कोर्ट तक गये। लेकिन अंतत: उन्हें हटना पड़ा। अब वे महर्षि पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय के पास उनकी जमीन पर बनाये गये घर पर रहने जा रहे हैं। नए मकान का गृह प्रवेश भी अभी नहीं हुआ है, लेकिन प्रशासनिक दबाव के कारण उन्हें तुरंत जाना पड़ रहा है।

प्रशासन-नेता-अफसर सभी के साथ विपत्ति में खड़ा रहा, आज खुद की परेशानी के वक्त असहाय हूं

पं. आनंदशंकर
पं. आनंदशंकर

यह मकान मेरे परदादा नारायण जी महाराज ने बनाया था। सन 1900 में उन्होंने यहां सबसे पहले श्री हनुमान मंदिर बनाया, उसके तीन साल बाद बड़ा गणेश की स्थापना की। उसी दौरान परिवार के निवास के लिए यह घर बनाया था। काफी मिन्नतों के बाद भी उन्हें यहां रहने की जगह नहीं दी जा रही है। प्रशासनिक छल से न्याय भी नहीं मिल सका।

हाईकोर्ट में 21 मार्च को फैसला संरक्षित किया, 29 मार्च को दस्तखत हुए और 5 अप्रैल को अपलोड हुआ। जिसमें 21 दिन के भीतर मकान खाली करने के आदेश थे। हम लोगों को 5 अप्रैल को फैसले की जानकारी लगी, जबकि दिन गिने गये 21 मार्च से और 11 अप्रैल को समय सीमा समाप्त होने का हवाला देकर घर तोडऩे टीम भेज दी। ब

ड़ी ही अनुयय-विनय के बाद घर खाली करने के लिए एक-दो दिन का वक्त देकर प्रशासन ने मेहरबानी की है। सभी की तकलीफ के वक्त साथ खड़ा रहा..(दु:खी होकर कहते हैं).. कोरोना काल में सवारी मार्ग बदलने पर प्रशासन पर विपत्ति आई हो या फिर चुनाव के दौरान किसी भी दल के नेता पर मुसीबत आई हो, सभी के मुसीबत के वक्त मैं साथ खड़ा रहा, अपनी विद्या-ज्ञान के जरिए परेशानियों को दूर करने का प्रयास करता रहा, लेकिन आज मैं खुद विपत्ति में हूं और अकेला खड़ा हूं…।
(जैसा कि पं. आनंदशंकर व्यास ने कहा)

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