अर्जुन सिंह चंदेल
सारे कुकर्मों से सुसज्जित भारतीय जेलों में भ्रष्ट्राचार चरम पर है। भारत के वजीरे ए आजम मोदी जी का कथन ‘ना खाऊँगा ना खाने दूँगा’ अर्ध सत्य ही साबित हो रहा है। शायद मोदी जी के शासन में देश में रिश्वतखोरी की दरें बढऩे के साथ रिश्वतखोरों और भ्रष्ट्राचारियों के हौसले भी। बाहर रहकर समाज में जितने अनैतिक कार्य नहीं हो सकते हैं वह सारे जेल की चारदीवारी के अंदर आसानी से किये जा सकते हैं। जेल के सारे विभागों के कारनामों से हम आपको अवगत करा चुके हैं अब सामान्य बातें भी जान लीजिये।
जेल में सामान्य प्रशासन विभाग भी होता है इसका पूरा नियंत्रण जेल में पदस्थ सरकारी मुलाजिमों के हाथों में ही रहता है इसमें कैदियों की भूमिका नहीं रहती है। जेल की दुनिया का एक तकनीकी शब्द है ‘जाप्ता’ यह जेल की कल्याण शाखा के अधीन होता है।
जाप्ता अर्थात जेल में बंद कैदी को यदि बाहर की खुली हवा लेनी हो या ऐशो-आराम करना हो तो वह अच्छी खासी मोटी रकम कल्याण शाखा में देकर जेल में पदस्थ चिकित्सक से अस्पताल में भर्ती होने की सिफारिश लिखवा लेता है। बीमारी के बहाने से जेल के बाहर आकर अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं जहाँ परिजनों से मेल-मुलाकात अच्छा भोजन सब कुछ उपलब्ध हो जाता है।
कैदी की अभिरक्षा के लिये पुलिस तैनात रहती है। देशभक्ति, जनसेवा वाली हमारी पुलिस कई बार तो अस्पताल में भर्ती कैदी को घर की सैर भी करवा लाती है। भैरवगढ़ जेल में हत्या के मामले में बंद एक सरदार और नागदा का एक कैदी तो एक-एक माह के लिये अस्पताल में भर्ती हो जाते हें और साल में कई बार, यह सब जेल रिकार्ड में अंकित है।
1430 कैदियों की क्षमता वाली हमारी भैरवगढ़ जेल में वर्तमान में 2375 कैदी है और शायद देश की हर जेल की स्थिति यही है। दूसरी जेल में तबादले के नाम पर, अंडा सेल में डालने के नाम पर भी कैदी से वसूली की जाती है। 70 से 75 लाख प्रतिमाह का अवैध धंधे वाली हमारी जेल पर सीबीआई, लोकायुक्त, ईडी, आर्थिक अपराध ईओडब्ल्यू की नजर नहीं पड़ती यह जेल का सौभाग्य है।
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