वैक्सीनेशन लॉन्चिंग में मोदी की आंखें छलकीं:PM ने कहा- सैकड़ों साथी लौटकर घर नहीं आए, हेल्थवर्कर्स को टीका लगाकर कर्ज उतार रहे

नई दिल्ली। देश में कोरोना के खिलाफ वैक्सीनेशन की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भावुक हो गए। कोरोना काल के मुश्किल वक्त को याद कर उनकी आंखें नम हो गईं और गला भर आया। उन्होंने कहा कि जो हमें छोड़कर चले गए, उन्हें वैसी विदाई भी नहीं मिल सकी, जिसके वे हकदार थे। मन उदास हो जाता है, लेकिन साथियों संकट के उस वातावरण में निराशा के वातावरण में कोई आशा का भी संचार कर रहा था। हमें बचाने के लिए अपने प्राणों को संकट में डाल रहा था।

उन्होंने कहा कि हमारे डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस, आशा वर्कर्स, सफाई कर्मचारी उन्होंने अपने दायित्व को निभाया। अपने परिवार से दूर रहे। कई-कई दिन तक घर नहीं गए। सैकड़ों साथी ऐसे भी हैं कि जो कभी घर वापस नहीं लौटकर नहीं आ पाए।

जिन्होंने अपनी जान दांव पर लगाई, पहला टीका उनके लिए
उन्होंने एक-एक जीवन को बचाने के लिए अपना जीवन आहूत कर दिया। इसलिए कोरोना का पहला टीका स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों को लगाकर एक तरह से समाज अपना ऋण चुका रहा है। यह कृतज्ञ राष्ट्र की उनके लिए आदरांजलि भी है।

जिसे हमारी कमजोरी समझते थे, वहीं ताकत बनी
उन्होंने कहा कि साथियों मानव इतिहास में कई आपदाएं आई, युद्ध हुए, लेकिन कोरोना ऐसी महामारी थी, जिसका अनुभव न तो साइंस को था न सोसायटी को था। जो खबरें आ रही थीं वह पूरी दुनिया के साथ-साथ हर भारतीय को विचलित कर रही थी। ऐसे हालात में दुनिया के बड़े-बड़े एक्सपर्ट्स भारत को लेकर तमाम आशंकाएं जता रहे था। भारत की बहुत बड़ी आबादी को कमजोरी बताया जा रहा था, लेकिन हमने उसे अपनी ताकत बना लिया।

समय से पहले हम अलर्ट हुए : मोदी
उन्होंने कहा कि 30 जनवरी को भारत में कोरोना का पहला मामला मिला। लेकिन इससे दो हफ्ते पहले ही भारत हाई लेवल कमेटी बना चुका था। 17 जनवरी 2020 को हमने पहली एडवायजरी जारी कर दी थी। भारत उन पहले देशों में था जिसने अपने एयरपोर्ट पर अपने यात्रियों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में भारत में जिस सामूहिक शक्ति का प्रमाण बताया है उसे आने वाली पीढ़ियां याद करेंगी।

हमने देश का आत्मविश्वास बनाए रखा : PM
उन्होंने कहा कि हमने ताली-थाली बजाकर और दिया जलाकर देश के आत्मविश्वास को बनाए रखा। कोरोना को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका यही था कि जो जहां था वहीं रहे। लेकिन देश की इतनी बड़ी आबादी को बंद रखना आसान नहीं था। इसका अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा यह भी हमारी चिंता थी, लेकिन हमने व्यक्ति की जिंदगी को प्राथमिकता दी।

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