महाकाल महालोक निर्माण में सिर्फ अफसरों की मनमानी चली

महाकाल महालोक

अग्निपथ पहले ही खोल चुका है पोल, अब जांच में सामने आ रही सच्चाई

मूर्तियां कांड की जांच के दौरान कागजात देखकर लोकायुक्त भी हैरत में, स्मार्ट सिटी से बिंदुवार मांगी जानकारी

उज्जैन, अग्निपथ। उज्जैन में श्री महाकाल महालोक निर्माण में सिर्फ अफसर और ठेकेदारों की मनमर्जी से सबकुछ हुआ। महालोक निर्माण संबंधी फाइलों का अवलोकन करने के बाद लोकायुक्त भी हैरत में है। लोकायुक्त ने उज्जैन स्मार्ट सिटी लिमिटेड को भेजे नोटिस में ये भी लिखा है कि ऐसा लगता है कि मूर्तियों का निर्माण ठेकेदार की मर्जी से हुआ है। जब अनुबंध में प्रावधान ही नहीं थे तो फिर काम किस आधार पर और कैसे करवाया गया

28 मई को सप्तऋषियों की 7 मूर्तियां धराशायी होने के मामले की लोकायुक्त की शुरुआती जांच में ही कई तरह की धांधलियां उजागर होने की सूचना हैं। लोकायुक्त हैरान हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में अफसरों ने इतनी गैरजिम्मेदारी से काम कैसे किया। मूर्तियों की न तो ड्राइंग बनी थी, न ही डिजाइन। टेंडर एग्रीमेंट में जिम्मेदार अफसरों के दस्तखत भी नहीं हैं। मूर्तियों का स्पेसिफिकेशन भी तय नहीं था। सिर्फ मनमाने तौर पर काम किया गया।

सप्त ऋषियों की छह मूर्तियां गिरने के बाद लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता ने मीडिया रिपोर्टों को संज्ञान लेते हुए मामले में प्राथमिक केस दर्ज किया था। जांच करते हुए लोकायुक्त की तकनीकी टीम 2 जून को उज्जैन पहुंची थी। लोकायुक्त के चीफ इंजीनियर एनएस जौहरी के साथ टेक्निकल टीम ने महाकाल लोक की मूर्तियों का परीक्षण किया था। जांच के दौरान दूसरी मूर्तियों में भी दरारें नजर आई थीं।

टीम ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया है कि मूर्तियों का रंग उड़ रहा है। इसके बाद लोकायुक्त ने उज्जैन स्मार्ट सिटी लिमिटेड से इस प्रोजेक्ट की डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट, टेंडर दस्तावेज, एग्रीमेंट और भुगतान के पूरे बिल मांगे।

लोकायुक्त ने सवाल उठाए हैं कि जब स्पेसिफिकेशन ही तय नहीं थे तो आपने कैसे तय कर लिया कि कौन सी मूर्ति कितनी बड़ी और किस मटेरियल से बनी है एग्रीमेंट और रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) की स्टडी के बाद लोकायुक्त ने उज्जैन स्मार्ट सिटी से 16 बिंदुओं पर जवाब मांगे हैं। अगली सुनवाई 20 जुलाई तय की गई है।

पत्थर की मूर्तियां फिर किसने बदला फैसला

स्मार्ट सिर्टी को भेजे गये पत्र में लोकायुक्त ने ये भी सवाल पूछा है कि पत्थर की 60 मूर्तियां बननी थीं और कंक्रीट की 50 मूर्तियां। जबकि लगाई गई हैं एफआरपी (फाइबर रिइंफोस्र्ड प्लास्टिक) मूर्तियां। फिर ये फैसला किसने बदला क्या स्मार्ट सिटी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की मीटिंग में इसे बदलने का फैसला लिया गया कंक्रीट की मूर्तियां तो एक भी नहीं बनीं। कंक्रीट की मूर्तियां नहीं बनाने का फैसला किसने लिया? पत्थर की 60 मूर्तियां बननी थीं तो फिर सिर्फ 9 मूर्तियां ही पत्थर की क्यों बनीं ?की मूर्तियां एफआरपी से बनाने का निर्णय किस स्तर पर हुआ?

एफआरपी में मूर्तियों के बारे में कोई जानकारी नहीं

स्मार्ट सिटी के माध्यम से मिले दस्तावेजों के लोकायुक्त द्वारा अवलोकन में पाया गया है कि एफआरपी की मूर्तियों की लिस्ट, स्पेसिफिकेशन और उनकी ड्राइंग नहीं है। मूर्तियों के स्पेसिफिकेशन जैसे एफआरपी में उपयोग में आने वाले रेजिन, रिएन्फोर्समेंट, थिकनेस, मूर्तियों की स्टेबिलिटी के लिए स्कलेटन के लिए कौन सा मटेरियल उपयोग में लाया जाएगा, इसकी कोई जानकारी नहीं है।

स्टेंड पर मूर्ति कैसे लगायेंगे यह भी उल्लेख नहीं

लोकायुक्त को मिले कागजातों में कम्पलीट ड्राइंग न होने से ऐसे प्रकट होता है कि कौन सी मूर्ति किस ऊंचाई पर कैसे स्थापित होना है, यह अनुबंध किए जाने तक तय नहीं था। ऐसे में निविदा में जो मूर्तियों की ऊंचाई व मात्रा बताई गई थी, वह मात्र काल्पनिक थी। दस्तावेज से ये भी पता चलता है कि जिस ऊंचाई की मूर्तियां टेंडर में बताई गई थीं, उससे भी हटकर अन्य ऊंचाइयों की मूर्तियां बनाई गई हैं।

इससे साफ है कि मूर्तियों का निर्माण अनुबंध के अनुसार न करवाकर ठेकेदार की मनमानी से हुआ है। इसमें संबंधित अधिकारियों की संलिप्तता होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। सवाल ये भी उठता है कि जब अनुबंध में ये प्रावधान नहीं थे, तब किस आधार पर व कैसे काम करवाया गया यह कैसे सुनिश्चित किया गया कि एफआरपी की मूर्तियों के लिए जो निविदा दर मंजूर की गई है, उसी अनुसार ठेकेदार ने काम किया है। ये किस आधार पर तय हुआ कि ठेकेदार द्वारा बनाई गई मूर्तियां स्वीकार योग्य हैं। ऐसे तमाम सवाल लोकायुक्त के समक्ष जांच के सामने खड़े हो रहे हैं।

अधिकारी के हस्ताक्षर के बिना बन गया एग्रीमेंट

लोकायुक्त को एग्रीमेंट की स्टडी में पता चला है कि स्मार्ट सिटी उज्जैन लिमिटेड की ओर से किसी अधिकारी के अनुबंध में हस्ताक्षर नहीं है। ऐसे में इसे अनुबंध नहीं कहा जा सकता है। ऐसे में लिटिगेशन की स्थिति में स्मार्ट सिटी लिमिटेड का पक्ष कोर्ट में कमजोर होगा और निर्णय ठेकेदार के पक्ष में जाने से इनकार नहीं किया जा सकता। ये बताएं कि एग्रीमेंट में अफसर के दस्तखत क्यों नहीं हैं। आरएफपी के सेक्शन 35 में दिए स्पेसिफिकेशन के अवलोकन में पाया गया है कि एफआरपी की मूर्तियों के लिए कोई स्पेसिफिकेशन तय नहीं किए गए थे। इस पर जवाब दें।

दरें ऊंचाई के मान से बुलाई-भुगतान वर्गफीट में किया

लोकायुक्त के समक्ष उपलब्ध दस्तावेजों से स्पष्ट नहीं है कि अनुबंध की किस शर्त के तहत टेंडर में एफआरपी की मूर्तियों के लिए स्वीकृत दर को मंजूर किया गया, यह स्पष्ट नहीं है। उज्जैन स्मार्ट सिटी लिमिटेड के दस्तावेज से साफ है कि मूर्तियों की दरें ऊंचाई के हिसाब से बुलाई गई, जबकि भुगतान वर्गफीट में किया गया। जबकि अनुबंध में इसका कोई प्रावधान ही नहीं है। एफआरपी की मूर्तियों का सरफेस एरिया किस प्रकार मापा गया क्या बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की बैठक में इस पर कोई निर्णय हुआ, इस बारे में कुछ भी स्पष्ट जानकारी कागजों में नहीं है।

भीतर से मजबूत बनाते तो टिकी रहती मूर्तियां

उज्जैन स्मार्ट सिटी के प्लान में पहले से ही था कि एफआरपी की मूर्तियों को अंदर से खोखला बनाकर अंदर स्टील या लोहे की रॉड से मजबूती दी जाएगी। संभवत: मूर्तियों के आधार में मजबूती नहीं होने के कारण ही मूर्ति गिरी हैं। मजबूती के लिए मूर्तियों में केमिकल डालकर इन्हें ठोस किया जा सकता था। इससे इनकी उम्र भी कई गुना बढ़ जाती। हालांकि, इस प्रोसेस में मूर्तियां कई गुना महंगी बनतीं और मूर्ति बनाने का बजट भी बढ़ जाता। इसलिए यह प्रोसेस नहीं की गई।मूर्तियां बनाने वाली एमपी बावरिया कंपनी का कहना है कि तेज हवा ने बवंडर बना दिया, जिससे मूर्ति के अंदर का स्ट्रक्चर टूट गया।

लोकायुक्त ने इन अनसुलझे बिंदुओं पर विस्तृत जानकारी मांगी

  • मूर्तियों के टेंडर रेट तय करते समय एफआरपी की मूर्तियों की दरों के संबंध में कोई परीक्षण या दर विश्लेषण क्यों नहीं किया गया है, इस पर जवाब दें।
  • 106 एफआरपी मूर्तियों की तैयार व स्वीकृत की गई ड्राइंग की सत्यापित प्रति, उनके वास्तविक फोटोग्राफ व वास्तविक ऊंचाई का विवरण दीजिए।
  • महाकाल महालोक में लगी एफआरपी की मूर्तियों के भुगतान से संबंधित बिल की सत्यापित प्रति जो उपलब्ध कराई गई है, वह अस्पष्ट एवं अपठनीय है। मूर्तियों के भुगतान के विवरण व संबंधित मेजरमेंट बुक्स भी उपलब्ध कराई जाएं।
  • महालोक में एग्रीमेंट में कंक्रीट की मूर्तियां स्थापित करने का प्रावधान था, बाद में उन्हें नहीं लगाने का निर्णय किसने लिया और कब लिया इसके दस्तावेज उपलब्ध करवाएं।
  • महाकाल महालोक के अनुबंध के अनुसार कांक्रीट की 100 व पत्थर की 60 मूर्तियों का निर्माण व स्थापना का प्रावधान था। पहले ये कहा गया था कि मूर्ति अनुभवी व्यक्ति संस्था से बनवाई जाएगी। टेंडर दस्तावेजों में ऐसा कोई पेपर नहीं है, जिसमें अनुभव का उल्लेख हो। इससे साफ है कि ठेकेदार को एफआरपी की मूर्तियां बनाने का अनुभव नहीं था, फिर भी उसे वर्कऑर्डर क्यों दिया गया
  • निर्माण के लिए मार्च 2019 को एमपी बावरिया, सूरत एवं डीएच पटेल व मेसर्स गायत्री इलेक्ट्रिकल्स वड़ोदरा को वर्कऑर्डर जारी किया गया था। अनुबंध में पत्थर की 60 मूर्तियां बनाने का उल्लेख था, लेकिन नवग्रह की 6 फीट ऊंची सिर्फ 9 मूर्तियां ही पत्थर से बनाई गई। ऐसे ही एफआरपी की 100 मूर्तियां बनाने का उल्लेख था, लेकिन इसकी 106 मूर्तियां स्थापित करवाई गईं। इस संबंध में लोकायुक्त संगठन को कारण बताएं।
  • महालोक में मूर्तियों की गुणवत्ता के संबंध में थर्ड पार्टी निरीक्षण् कराया गया है तो इसकी रिपोर्ट की सत्यापित प्रति दी जाए।
  • मूर्तियों के निर्माण एवं स्थापना के संबंध में सीनियर अधिकारियों द्वारा समय-समय पर किए गए निरीक्षण व निर्देशों के प्रतिवेदन की सत्यापित प्रति उपलब्ध कराएं।
  • महाकाल महालोक में अब तक 106 एफआरपी की मूर्तियां बनाने की जानकारी दी गई है, क्या भविष्य में इस अनुबंध के अंतर्गत और भी मूर्तियां बनाए जाने का प्रावधान है, यदि हां तो उसके विवरण भी उपलब्ध कराएं।

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