प्रशासन को शिकायत का इंतजार, खुद नहीं करते हैं कार्रवाई
धार (आशीष यादव), अग्निपथ। स्कूल खुलते ही पुस्तकों की दुकानों पर नौनिहालों की किताबें खरीदने के लिए अभिभावकों की भीड़ लग रही है। यह नजारा इन दिनों यहां की अमूमन हर बड़ी और ठेका प्राप्त दुकानों में आम है। हर साल की भांति इस बार भी जिले में सरकारी आदेश की धज्जियां उड़ाई जा रही है। पालक निजी विद्यालयों, प्रकाशकों और दुकानदारों की तिकड़ी के बीच पिस रहे हैं। तीनों मिलकर पालकों की जेब पर डाका डाल रहे हैं।
जिले के 675 निजी स्कूल पूरी तरह से अपनी मनमानी पर उतर आए हैं। जब शहर में 68 स्कूल है जो मनमाने ढंग से फीस निर्धारित करने वाले निजी स्कूल संचालकों ने नया सत्र प्रारंभ होते ही ड्रेस, जूता, मोजा के साथ ही किताबें और पाठ्यक्रम के नाम पर कमीशनखोरी का खेल खेल रही है। स्कूल संचालकों ने कहीं कापी-किताबों और ड्रेस के लिए दुकानों से सेटिंग कर रखी है तो कहीं खुद स्कूल से बांट रहे हैं।
शिक्षण शुल्क के नाम पर मोटी रकम के साथ कापी-किताब और ड्रेस से भी मोटी कमाई की जा रही है। इन स्कूल संचालकों पर जिला प्रशासन का किसी तरह का कोई अंकुश नहीं है। स्कूल संचालकों ने चालू शिक्षा सत्र में फीस में इजाफा कर दिया है। इसके साथ किताबों के दामों में बढ़ोत्तरी से अभिभावक परेशान हैं।
एक समय था जब किताबें आधी कीमत पर लेकर कई विद्यार्थी पढ़ाई पूरी करते थे। निजी स्कूलों की धांधली ने अब माहौल ही बिगाडक़र रख दिया है। एनसीईआरटी की किताबों की अधिकतम कीमत जहाँ 100-150 रुपये है, वहीं अन्य किताबों की कीमत 400-500 रुपए तक है। यही वजह है कि निजी स्कूल अपनी दुकानदारी चलाने लगे हैं। हर साल 30-35 प्रतिशत बढ़ी हो रही है।
हर साल होता है करोड़ों का खेल
शहर व जिले में किताबों के कारोबार से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए के वारे-न्यारे हो रहे हैं। जिले 675 स्कूल है तो धार में कुल 68 स्कूल संचालित हो रहे है इनमे बस स्कूलों के व्यारे न्यारे हो रहे हैं। बच्चों की गिनती की जाए तो लगभग लाखो बच्चे इन स्कूलों में पढ़ते हैं। प्रति छात्र अगर 1500 रुपए का सेट माना जाए तो यह आंकड़ा करोड़ो रुपए में पहुंच जाता है। अधिक दामों में निश्चित दुकानों से पालकों को सेट खरीदना मजबूरी हो गई है।
नियमों में कई पेंच
जिला शिक्षा अधिकारी यानी डीईओ को सीबीएसई संबद्ध निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए म.प्र. निजी विद्यालय फीस अधिनियम 2017 के तहत पावर दिया गया है। इस एक्ट की धारा-6 में बुक और स्टेशनरी से संबंधित दिशा-निर्देश तो दिए हैं, लेकिन एनसीईआरटी शब्द का कहीं कोई उपयोग नहीं किया गया।
मतलब एक्ट ये तो कहता है कि बुक और स्टेशनरी जैसी अन्य सामग्री सार्वजनिक प्रदर्शित की जाए, लेकिन स्कूल में एनसीईआरटी की बुक चलाना अनिवार्य है या किसी कक्षा में कम से कम इतनी बुक एनसीईआरटी की होना जरूरी है। ऐसा कहीं कोई उल्लेख ही नहीं है। वहीं दूसरी ओर आदेश पर आदेश निकले पर, पालन एक का भी नहीं हो रहा।
ये हैं सरकारी आदेश
सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन यानी सीबीएसई ने 12 अप्रैल 2016 और 19 अप्रैल 2017 को स्कूलों से ही या चयनित दुकानों से पुस्तकें, स्टेशनरी, यूनिफॉर्म, स्कूल बैग खरीदने के संबंध में आदेश जारी किया था। जिसमें कहा गया कि बच्चों और उनके पालकों पर चयनित दुकान या किसी चयनित निजी प्रकाशक की पुस्तकों को खरीदने का दबाव नहीं बनाया जा सकता।
वहीं इन्हीं आदेशों का हवाला लेकर 31 मार्च 2018 को स्कूल शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश ने भी सभी कलेक्टर्स को पत्र लिखकर आदेशित किया कि म.प्र. निजी विद्यालय फीस अधिनियम 2017 के अंतर्गत ऐसे स्कूलों पर कार्रवाई की जाए जो लाभ कमाने के लिए पालकों पर महंगी पुस्तकें, स्कूल ड्रेस और एक चयनित दुकान से ही खरीदने का दबाव बना रहे हैं, पर इन आदेशों का कभी पालन नहीं हुआ। कार्रवाई करेंगे।
निजी स्कूल संचालकों की मनमानी की जांच को लेकर टीम बनाई गए है जल्द ही कार्रवाई करेंगे। अगर कोई पालक शिकायत करें तो हम तुरंत कार्रवाई करेगें। – महेंद्र शर्मा, जिला शिक्षा अधिकारी धार
स्कूलों व दुकानदारों पर जल्द ही कार्रवाई करेंगे नियम से एक स्कूल की किताबो 3 दुकानों पर रखने का नियम है अगर नियम के विरुद्ध कुछ हो रहा है तो कार्रवाई करेंगे। – भरतराज राठौर बीआरसी धार