पहुँच ही गये छत्तीसगढ़ के दूसरे सबसे बड़े शहर अम्बिकापुर

अर्जुन सिंह चंदेल

शाम 6 चली उज्जैन से चली नर्मदा एक्सप्रेस 774 किलोमीटर का लंबा सफर तय करने के बाद लगभग 17 घंटे बाद 21 जुलाई को सुबह 11 बजे अनूपपुर जंक्शन पहुँची जो नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक से मात्र 73 किलोमीटर दूर है। अनूपपुर के घुमक्कड़ी साथी महेश कुमार दीक्षित जी ने हमें पूरा सहयोग दिया कहाँ अच्छा भोजनालय है, यह सलाह दी।

अनूपपुर में लगभग ढाई घंटे का समय गुजारना था यह तय किया गया कि रेलवे स्टेशन पर ही समय गुजारा जाए। वंदे भारत का संचालन कर रही और बुलेट टे्रन की तैयारी कर रही भारतीय रेल का बदबू से सराबोर उच्च श्रेणी के यात्रियों के विश्रामालय अंधेरे में डूबा हुआ था। स्वच्छ भारत को चिढ़ाता हुआ प्रतीक्षालय अपनी दुर्दशा पर आँसू बहा रहा था बाहर कुर्सी पर बैठा बदत्तमीज नवजवान अटैण्डर मोबाइल चलाने में मस्त था। लाईट कब आयेगी के प्रश्न पर नाराज होते हुए बोला मुझे नहीं पता।

खैर प्रतीक्षालय के बाहर बैठने पर ही खुली हवा में सांस ली। सोच रहा था काश वंदे भारत चलाने और बुलेट की कार्ययोजना को अंजाम देने से पहले जो वर्तमान में संसाधन है उन्हें सुधार लिया जाता तो विकाशसील भारत देश के रेल यात्रियों के लिये बेहतर होता। खैर इसी उहापोह में समय निकल गया कुछ साथी स्टेशन के बाहर जाकर अग्रवाल भोजनालय के स्वादिष्ट भोजन का स्वाद चख जायेग।

अब हमें अगले सफर में जिस टे्रन से 173 किलोमीटर की यात्रा करनी थी वह शहडोल से आकर हमें अम्बिकापुर ले जाने वाली थी। यह मेमू टे्रन ही हमें मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ में प्रवेश कराने वाली थी। निर्धारित समय 1.30 से लगभग एक घंटे विलंब से आयी टे्रन में हम सभी सवार हो गये रास्ते में असल भारत की तस्वीर दिखाते अँग्रेजो के समय बने रेलवे स्टेशन दिखे। अनूपपुर के बाद पूरे रास्ते ही कोयला खदानें ही खदाने है। देश के अमीर इन कोयला खदानों से कोयला निकालकर अमीर से और अमीर होते चले गये और छत्तीसगढ़ के गरीब आदिवासी और गरीब होते चले गये।

न जाने कब हमने मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ में प्रवेश कर लिया पता ही नहीं चला। हाँ किसी स्टेशन पर आये बड़ों का हम सबने आनंद लिया। ठीक 7 बजे हम अम्बिकापुर पहुँच ही गये। स्टेशन की भव्य इमारत देखकर दिल खुश हो गया बाहर ही उज्जैन की 11 सदस्यीय टीम का फोटो खींचा गया। होटल हमने पहले ही बुक कर ली थी मैजिक पकडक़र सीधे होटल पहुँच गये। अम्बिकापुर के घुमक्कड़ी साथी संदीप गुप्ता जो कि जिंदादिल और प्रेमी इंसान है वह स्वागत करने के लिये पहले से ही होटल में हमारा इंतजार कर रहे थे।

गुप्ता जी के आतिथ्य सत्कार ने हमार दिल जीत लिया कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी की विभीषका का दंश झेल रहा व्यक्ति इतना विनम्र, इतना सेवाभावी भी हो सकता है। जिसे खुद सेवा की जरूरत हो वह हम सब की सेवा के लिये मनोयोग से उत्साहित होकर खड़ा था। उनसे मिलकर और उनकी कार्यशैली को देखकर हम कायल हो गये और पहली ही नजर में प्यार हो गया और सिर उनके प्रति श्रद्धा से झुकता चला गया। सभी साथियों के मेल मुलाकात के बाद हम अपने कमरों में सोने चले गये। जिन साथियों को गले तर करने थे किये और होटल की छत पर ही रेस्टोरेन्ट में बने घर जैसे खाने का आनंद लिया और 21 जुलायी की रात का अंधेरा घना होने लगा।

शेष अगले अंक में…

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