• अर्जुन सिंह चंदेल
21 जुलाई की रात करवटें बदलते हुए गुजरी ‘मैनपाट’ का आकर्षण नींद में बाधा बन रहा था। मन में विचार आ रहा था कि 900 किलोमीटर का सफर तय हो चुका है यदि साथियों को मैनपाट में मजा नहीं आया तो अपनी किरकिरी तय है, क्योंकि अपने राम ने भी वहाँ की सुंदरता का बढ़-चढ़कर बखान कर दिया था।
सुबह ठीक 6.30 बजे दरवाजे की घंटी बजी चाय हाजिर थी। यात्रा का असीम उत्साह मन में हिलोरे मार रहा था। फटाफट सभी साथी तैयार हो रहे थे। 8 बजे हमारे लिये बस की व्यवस्था की गयी थी। हमारी यात्रा प्रारंभ होने वाली थी। 9 बजे तक ‘घुमक्कड़ी दिल से’ के सभी साथी बस में सवार हो गये थे।
हमें सबसे पहले अम्बिकापुर की आराध्य देवी महामाया के दर्शन करके यात्रा शुरू करनी थी।
साधारण से मंदिर में माँ महामाया की मूर्ति स्थापित थी। माँ की मूर्ति में अद्भुत तेज था। ऐसा माना जाता है कि माँ सभी की मनोकामना पूर्ण करती है। महामाया माँ के दर्शनों पश्चात एक और देवी के दर्शनों बाद हमें रेलवे स्टेशन छोड़ दिया गया।
जहाँ दूसरी बस ‘मैनपाट’ ले जाने के लिये
हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। लगभग 10 बजे हमारी यात्रा 50 किलोमीटर लंबे सफर के लिये रवाना हुयी।
छत्तीसगढ़ के शिमला के नाम से प्रसिद्ध मैनपाट का रास्ता भी सुंदरता और अजूबों से भरा हुआ था।
बस का पहला विराम हुआ ‘टिनटिनी’ नामक जगह पर जहाँ बहुत सारे विशालकाय पाषाण पड़े हुए हैं। ऐसा लगता है हजारों वर्ष पूर्व आये ज्वालामुखी के लावा से यह पत्थर बने हुए हैं।
इन सभी पत्थरों के बीच एक पत्थर आकर्षण का केन्द्र है उसे किसी पत्थर या वस्तु से टकराने पर उसमें से अजीब-सी ध्वनि निकल रही थी। ऐसा लग रहा था मानो हम धातु से बनी हुयी किसी चीज पर चोट कर रहे हैं।
इसलिए पड़ा नाम टिनटिनी
बाकी पड़े शेष पत्थर मृत प्रायः ही थे। चूँकि यह पत्थर धातु की ध्वनि टिन-टिन का उद्घोष कर रहा था इसलिये इस का नाम टिनटिनी पड़ गया।
टीम के सभी सदस्यों ने उस पत्थर को बजाकर पुष्टि की। यहीं पर सदाबहार हीरो यारो के यार, जिंदादिल इंसान संदीप गुप्ता जी और भिलाई के साथी मिश्राजी सभी के लिए नाश्ता लेकर आ गये। स्वाद से भरपूर नाश्ते का आनंद छक कर लिया गया।
उस पर्यटन स्थल पर किसी प्रकार की गंदगी शेष ना रहे इस बात का ध्यान दल के सभी साथियों ने रखा। जूठी प्लेटें और पानी की खाली बाटले एकत्र कर निर्धारित स्थान पर रखी गयीं ।
कारवां आगे बढ़ा मैनपाट के रास्ते पर । मार्ग का सुंदर दृश्य देखकर ऐसा महसूस हो रहा था जैसे हम छत्तीसगढ़ में ना होकर हिमाचल या उत्तराखंड में हो। मन को आनांदित करती हरियाली पहाड़ वह सब कुछ था जो किसी मनुष्य की प्रसन्नता का अंग हो । थोड़ी ही आगे बढ़े थे कि एक और सुंदर स्थान आ गया, शायद उसका नाम आम बाग था।
हरियाली की चादर ओढ़े धरती हम सबके स्वागत को आतुर थी। फोटोग्राफी के शौकीन लोगों के लिये यह स्थान जन्नत से कम नहीं था। पर्यटन विकास निगम वालों ने वहाँ पर्यटकों के बैठने के लिये छतरियां बना रखी थी।
मौसम अपने पूरे शबाब था, हसीन मौसम पर इन्द्रदेव भी मेहरबान हो गये, बारिश शुरू हो गयी। जिसने हम सबके आनंद को दोगुना कर दिया। संदीप गुप्ता जी फिर प्रकट हो गये। अबकी बार वह सेबफल और केलों के साथ थे। सभी को ठूस-ठूस कर खिलवाते रहे। 30 मिनट तक इस अप्रतिम स्थान का आनंद लेने के पश्चात हम बस में सवार होकर निकल पड़े मैनपाट के लिये।