उज्जैन, अग्निपथ। भारतीय प्रबंध विश्व में सर्वोच्च स्थान रखता है। भारत के प्रमुख प्रबंध संस्थानों को अध्ययन-अध्यापन में भारतीय प्रबंध को शामिल करना चाहिए। प्रबंध वह ताकत है जिसके युक्ति युक्त प्रयोग से जीवन में कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है।
उक्त उदगार विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने वाणिज्य अध्ययनशाला में प्रबंधन के नवीन विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। आपने कहा कि असफलता आपकी योग्यता का अंतिम मापदंड नहीं है, ना ही आपकी डिग्री व उच्च अंक आपकी योग्यता का एकमात्र पैमाना है अपितु वर्तमान परिस्थितियों में आगे बढऩे के लिए विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास आवश्यक है।
इस अवसर पर कार्य परिषद सदस्य राजेश सिंह कुशवाह ने विद्यार्थियों से अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि लक्ष्य प्राप्ति तभी संभव है जब दिन-रात 24 घंटे हमें लक्ष्य दिखने लगे। इसके लिए त्याग,तपस्या, समर्पण एवं सब्र को जीवन में आत्मसात करना चाहिए।
कार्यक्रम में वाणिज्य विभागाध्यक्ष डॉ. शैलेन्द्र कुमार भारल ने विद्यार्थियों को जीवन में आगे बढऩे एवं भविष्य संवारने की दिशा में व्यावहारिक अनुभव को विशेष प्राथमिकता देने का आह्वान किया।इस अवसर पर परीक्षा नियन्त्रक डॉ. एम. एल. जैन एवं प्रोक्टर डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने भी अपने उद्ग़ार व्यक्त किए ।
अतिथियों का स्वागत डॉ. शैलेंद्र कुमार भारल, डॉ. आशीष मेहता, डॉ. नागेश पाराशर, डॉ. कायनात तंवर, डॉ. परिमिता सिंह, डॉ. अनुभा गुप्ता एवं प्रवीण शर्मा ने किया। स्वागत भाषण विभागाध्यक्ष डॉ. शैलेंद्र कुमार भारल ने व्यक्त किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. रुचिका खंडेलवाल ने किया तथा आभार डॉ. नेहा माथुर ने व्यक्त किया।
रीजन की कार्यकारिणी की बैठक में हुई व्यक्तित्व विकास कार्यशाला
उज्जैन, अग्निपथ। व्यक्तित्व विकास के दो स्वरूप है, एक आंतरिक व दूसरा बाह्य, आंतरिक विकास हेतु मन, वचन और काया की शुद्धता आवश्यक है, वहीं बाह्य विकास में व्यक्ति का रहन, सहन, पहनावा, चलना, अपनी बात रखने/कहने में भाषा का प्रयोग, परस्पर व्यवहार यह सब व्यक्तित्व विकास में बहुत सहायक होती है, साथ ही अपनी त्रुटियों हेतु क्षमा मांगना, व दूसरों को उनकी त्रुटियों हेतु क्षमा करना, यह व्यक्तित्व विकास की प्रथम सीढ़ी है। यह बात दिगम्बर जैन सोशल ग्रुप फेडरेशन द्वारा तपोभूमि, उज्जैन में आयोजित व्यक्तित्व विकास की कार्यशाला में अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. पिलकेंद्र अरोरा ने कही।