सवारी में जटाशंकर स्वरूप में दर्शन दिये श्री महाकाल ने

उज्जैन, अग्निपथ। श्रावण एवं भादौ माह में निकलने वाली भगवान महाकालेश्वर की सवारी के क्रम में आज श्रावण माह में सातवी सवारी धूमधाम से निकली। भगवान श्री चन्द्रमौलेश्वर पालकी में सवार होकर निकले। सवारी के निकलने के पूर्व सभामंडप में सर्वप्रथम भगवान श्री चन्द्रमौलेश्वर का षोडशोपचार से पूजन-अर्चन किया गया। इसके पश्चात भगवान की आरती की गई। पूजन-अर्चन मुख्य पुजारी पं. घनश्याम शर्मा द्वारा संपन्न कराया गया।

भगवान श्री चन्द्रमोलेश्वर पालकी में सवार होकर अपनी प्रजा का हाल जानने और भक्तों को दर्शन देने के लिए नगर भ्रमण पर निकले। पालकी जैसे ही श्री महाकालेश्वर मंदिर के मुख्य् द्वार पर पहुंची सशस्त्र पुलिस बल के जवानों द्वारा पालकी में सवार श्री चन्द्रमोलेश्वर को सलामी (गार्ड ऑफ ऑनर) दी गई।

सवारी मार्ग में स्थान-स्थान पर खडे श्रद्धालुओं ने जय श्री महाकाल के घोष के साथ उज्जैन नगरी के राजा भगवान श्री महाकालेश्वर का स्वागत कर पुष्पवर्षा की। निर्धारित मार्ग से होकर सवारी रामघाट पर पहुंची। यहां पर पालकी का पूजन किया गया एवं भगवान चंद्रमौलेश्वर का शिप्रा के जल से जलाभिषेक किया गया।

सवारी में भगवान महाकाल ने इस बार अपने नए स्वरूप जटाशंकर के रूप में भक्तों को दर्शन दिये। इस दिन नागपंचमी का संयोग होने के कारण भक्तों की भारी भीड़ है। मंदिर से सवारी निकलने से पहले सशस्त्र पुलिस बल ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया। पूजन के बाद सवारी निकलना प्रारंभ हुई। भगवान महाकाल के स्वागत में सडक़ों पर रंगोली सजाई गई है।

सवारी में भक्त शिव के स्वरूप, राधा-कृष्ण, भगवान विष्णु-लक्ष्मी समेत कई रूप में झांकियां चल रही हैं। डीजे की धुन पर भक्त नाचते-गाते शामिल हुए।

सवारी में भगवान महाकाल के ये स्वरूप भी थे शामिल

जटाशंकर स्वरूप में महाकाल बाबा

सवारी में चांदी की पालकी में चंद्रमौलेश्वर और हाथी पर मनमहेश की प्रतिमा विराजित थी। वहीं, गरुड़ रथ पर भगवान शिव तांडव की प्रतिमा, नंदी रथ पर उमा महेश, डोल रथ पर होल्कर स्टेट का मुखारविंद, नए रथ पर घटाटोप और आखिर में जटाशंकर का मुखारविंद शामिल था।

सवारी निकलने से पहले मंदिर स्थित सभा मंडप में भगवान के सभी स्वरूपों का पूजन किया गया। सवारी मंदिर से प्रारंभ होकर कोट मोहल्ला, गुदरी चौराहा, बक्षी बाजार, कहारवाड़ी होते हुए मोक्षदायिनी शिप्रा के रामघाट पहुंची। यहां शिप्रा जल से भगवान महाकाल का अभिषेक कर पूजा अर्चना की गई। पूजन के बाद सवारी परंपरागत मार्ग से होते हुए पुन: महाकाल मंदिर पहुंची।

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