दिसंबर 22 में एसटीपी लगाने के निर्देश दिए थे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने
उज्जैन (राजेश रावत)। नगर निगम शहर में प्रदूषित जल के उपचार के लिए एसटीपी यानी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया जाना था। ताकि शहर और उद्योगों का प्रदूषित पानी का उपचार किया जा सके और उसे इस्तेमाल में लाए जाने के लिए बनाया जा सके। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उज्जैन नगर निगम को इसके निर्देश दिए थे। निगम को दिसंबर 22 तक इसे लगाना था। परन्तु आज तक यह प्लांट शुरू नहीं हो पाया है। इसके चलते प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भोपाल ने नगर निगम पर डेढ़ करोड़ की पेनल्टी कर दी है।
इस संंबंध में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी आरके तिवारी का कहना है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भोपाल से उज्जैन नगर में प्रदूषित जल को उपयोग लायक बनाए जाने के लिए एसटीपी यानी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के निर्देश दिए गए थे। परन्तु निगम द्वारा बोर्ड के आदेशों की पालना नहीं की गई।
इस पर भोपाल के अफसरों ने उज्जैन नगर निगम पर डेढ़ करोड़ की पेनल्टी लगाई है। अब नगर निगम को इस पेनल्टी को भोपाल आफिस में जमा करवाना होगा। इस पेनल्टी को किस तरह से वसूल किया जाए। इसके विषय में भोपाल से मार्गदर्शन मांगा गया है। जल्द ही फैसला होने पर पेनल्टी वसूली जाएगी।
वहीं मामले को लेकर उज्जैन नगर निगम के जलकार्य एवं सीवरेज प्रभारी प्रकाश शर्मा का कहना है कि पिछले छह माह से अफसरों से कहा जा रहा है कि वे टाटा के प्रोजेक्ट को पूरा कराएं। ताकि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम किया जा सके। परन्तु अफसर इस तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं। पेनल्टी लगाए जाने की जानकारी मुझे नहीं है। यह अफसरों की लापरवाही का परिणाम है। जनता के पैसे का दुरुपयोग अफसरों की गलती की वजह से होगा।
नगर निगम में प्रतिपक्ष नेता रवि राय का कहना है कि मंगलनाथ रोड पर सीवेज प्लांट 3 साल से बना हुआ है। लोग उसका पैसा खा गए हैं। शहर के चेंबर बरसात का पानी उगल रहे हैं। डेढ़ करोड़ की पेनल्टी लगने के साथ ही नगर निगम और स्मार्ट सिटी के अफसरों को सजा भी मिलनी चाहिए। 440 करोड़ की अमृत मिशन योजना भ्रष्टाचार की भेट चढ़ रही है। शहर में टाटा छोटी लाइन बिछा रहा है। इससे सीवेज का पानी सही तरीके से नहीं निकल पाएगा।
स्मार्ट सिटी भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा बनीं हुई है। लोकायुक्त को इसके अफसरों और वहां काम करने वालों की जांच करके कार्रवाई करना चाहिए। बाहरी लोग यहां काम कर रहे हैं उज्जैन की जनता के टैक्स की कमाई को लूट रहे हैं। नगर निगम और स्मार्ट सिटी के अफसरों की लगती के कारण शहर में हादसे हो रहे हैं और लोग मर रहे हैं।
एनजीटी में मामला जाने से निगम का संकट बढ़ेगा
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों का कहना है कि शिप्रा शुद्धिकरण का मामला एनजीटी में चल रहा है। अब नगर निगम को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के मामले में पेनल्टी लगने से मामला एनजीटी में जाएगा। यानी निगम की परेशानी बढ़ जाएगी। क्योंकि शहर और यहां के उद्योगों का केमिकल युक्त पानी शिप्रा में जा रहा है। इससे शहर के लोगों की भावना का साथ ही स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ हो रहा है। यह बेहद गंभीर मुद्दा है। आने वाले समय इससे समस्या और बढ़ेगी।
उज्जैन जल प्रदूषण के मामले में डेंजर जोन में
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जल प्रदूषण के पैमाने पर उज्जैन नगर निगम विफल हो रहा है। हालात यह है कि यहां शिप्रा के घाटो के पानी को आचमन योग्य भी नहीं माना जाता है। पीने की बात सोचना भी दूर की बात है। नदी के पानी में संस्पेड सालिड की मात्रा 100 एमजी प्रतिलीटर से ज्यादा पाई जा रही है। बीओडी यानी बायो आक्सीजन डिमांड 3 एमजी प्रतिलीटर से ज्यादा मिल रही है। डीओ डिसाल्व आक्सीजन की मात्रा भी तय मापदंड के मुताबिक नहीं मिल रही है। इसकी वजह से यहां के पानी को नो अटेंनमेंट श्रेणी में रखा गया है।
नगर निगम पर डेढ़ करोड़ की पेनल्टी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने लगाई है। इसके विषय में जानकारी नहीं है। सीवेज प्लांट के लिए काम तेजी से करने के निर्देश दिए गए हैं। पेनल्टी टाटा पर लगेगी, क्योंकि टाटा को सीवेज लाइन बिछाने और प्लांट लगाने का काम दिया गया है। तीन साल देरी से यह काम होने से पेनल्टी उसी से वसूली जाएगी।
-मुकेश टटवाल, महापौर उज्जैन