औंढा नागनाथ की यात्रा-1
भक्त के वश में है भगवान, यदि इसे देखना है तो आपको महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में हिंगोली जिला स्थित ग्राम औंढा में बारह ज्योतिर्लिंग में से आठवें नंवर के ज्योतिर्लिंग नागनाथ के दर्शन करने जाना होगा।
वैसे तो भारत में लाखों शिवलिंग के मंदिर हैं परंतु 12 ज्योतिलिंगों का विशेष महत्व कहा जाता है। देश के इन 12 ज्योतिर्लिंगों में भगवान शंकर स्वयं स्थापित हुए हैं।
औंढा नागनाथ, दुनिया का संभवतः अकेला शिव मंदिर है जो कि पश्चिम मुखी है। आमतौर पर शिव मंदिर पूर्व या उत्तरमुखी होते हैं क्योंकि यह दिशाएँ पवित्र मानी जाती है।
750 साल पहले से इसलिए बदला मंदिर का मुंह
एक कथा के अनुसार 5500 साल पुराना यह मंदिर पहले पूर्व मुखी था पर 750 वर्ष पूर्व एक बार महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत तुकाराम जी इस मंदिर में आये और शिवलिंग के सामने बैठकर कीर्तन करने लगे। तब मंदिर के पुजारियों ने इस पर आपत्ति ली और कहा सामने की जगह पीछे जाकर कीर्तन करो। यह सुनकर संत तुकाराम मंदिर के पीछे जाकर भगवान शिव का कीर्तन करने लगे।
अपने भक्त का अपमान भगवान शिव को भी सहन नहीं हुआ और तुकाराम जी कि निश्चल और सच्ची भक्ति के कारण भगवान शिव ने पूरे मंदिर को ही घुमाकर उसका मुँह पूर्व से पश्चिम दिशा में कर दिया। इसी कारण संसार का औंढा नागनाथ अकेला ऐसा मंदिर है जिसमें नंदी आगे की जगह पीछे की ओर विराजित हैं।
ऐसे स्थापित हुए नागनाथ ज्योतिर्लिंग
इस मंदिर की उत्पत्ति महाभारत काल की कथा से जुड़ी है। कथा के अनुसार पाँडव 12 वर्ष के वनवास दौरान यहाँ आकर रूके थे। पांडवों की गायें भी उनके साथ थी और प्रतिदिन शाम को औंढा स्थित तालाब में पानी पीने जाती थी। उनमें एक काले रंग की कपिला नामक गाय भी सभी गायों के साथ वह भी तालाब में पानी पीने जाती थी परंतु वह बीच तालाब में डुबकी लगाकर निकलती थी।
सभी गायें तो आकर दूध देती थी परंतु कपिला नामक गाय दूध नहीं देती थी। धर्मराज युधिष्ठिर को यह बात समझ में नहीं आयी एक दिन उन्होंने गदाधारी भीम को कपिला के पीछे भेजा।
शाम को जब सभी गायें पानी पीने तालाब में गयी तब कपिला बीच तालाब में डुबकी लगाकर आयी तब भीम ने तालाब पर गदा से चारों दिशा में प्रहार किया जिससे तालाब का पानी खाली हो गया और भीम को तालाब के बीच में शिवलिंग नजर आया। तब समझ में आया कि कपिला नामक गाय बीच तालाब में भगवान शंकर का दुग्धाभिषेक करने के लिये डुबकी लगाती थी। और इसी वजह से वह अन्य गायों की तरह दूध नहीं देती थी।
भीम उस शिवलिंग को उठाकर यधिष्ठिर के पास लाये। और युधिष्ठिर ने विधि विधान से औंढा नामक गाँव में उस शिवलिंग की स्थापना की और यह ज्योतिर्लिंग औंढा नागनाथ के नाम से विख्यात हुआ।
बालाघाट पर्वत माला में स्थित इस स्थान पर दारूका नामक राक्षसी के पति दारूक का वध भगवान शंकर ने यही किया था और भक्तों के आग्रह पर यहीं स्थापित हो गये थे।
इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने कराया था जीर्णोद्धार
यह भी बताया जाता है कि यह मंदिर 7 मंजिला था परंतु औरंगजेब ने इसे खंडित करवाया परंतु इस बात का प्रमाण कहीं नहीं मिलता है। इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस जीर्ण-शीर्ण मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। एक शिलालेख के अनुसार राजा रामदेव यादव ने भी सन् 1294 में इसका सुधार कार्य करवाया।
महाशिवरात्रि पर लगता है 5 दिन का मेला
इस मंदिर का पत्थरकारी हिमाणपंथी होकर इसका कालखंड 12वीं शताब्दीका बताती है। 75 हजार वर्गफुट में फैले इस विशाल मंदिर परिसर के परकोटे में चार प्रवेश द्वार है। महाशिवरात्रि पर यहाँ 5 दिवसीय मेला लगता है। मंदिर परिसर में रखे हुए रथ पर भगवान शंकर की प्रतिकृति को रथ पर रखकर मंदिर के चारों और घुमाया जाता है जिसे देखने हजारो श्रद्धालु आते हैं। दशहरे पर भी यहाँ उत्सव होता है।
यहां कर सकते हैं मंदिर की पूरी परिक्रमा
ऐसा माना जाता है कि शिव मंदिरों की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती है आधी ही की जाती है परंतु भारत में तीन ऐसे ज्योतिर्लिंग हैं जिनकी पूर्ण परिक्रमा की अनुमति है। यह है काशी विश्वनाथ, नासिक का त्रयम्बेश्वर और औंढा नागनाथ। इन तीनों ज्योर्तिलिंगों की परिक्रमा करने पर 12 ज्योर्तिलिंगों के दर्शनों का पुण्य प्राप्त होता है।
गर्भगृह में ऐसा करने पड़ते हैं दर्शन
नागनाथ मंदिर के बहुत छोटे गर्भगृह में पहुँचने के लिये छोटी व संकरी सीढ़ियों से ही पहुंचा जा सकता है और गर्भगृह में भी बैठकर दर्शन किये जा सकते हैं क्योंकि गर्भगृह की ऊँचाई मात्र 4 फीट ही है। शिव पुराण और बारह ज्योतिलिंगों की कथा में नागेश्वर धाम का वर्णन किया गया है परंतु तीन जगह इनके होने का दावा किया जाता है एक उत्तराखंड के अलमोडा जिले में, दूसरा गुजरात में द्वारका के पास स्थित नागेश्वर धाम और तीसरा महाराष्ट्र का औंढा नागनाथ।
परंतु देखने पर औंढा नागनाथ पाषाणों से निर्मित ही वास्तविक ज्योर्तिलिंग लगता है। इसकी कुछ और विशेषताएँ हैं भगवान शिव को जब नैवेद्य लगाया जाता है तब शहनायी और नगाड़े मंदिर के पीछे की ओर बजाये जाते हैं, दो कुंड भी मंदिर के पीछे की ओर है, नंदी भी पीछे है। संत नामदेव की अपने गुरू विशोबा से भी मुलाकात यही हुई थी साथ ही संत नामदेव जो चक्की चलाते थे वह भी यहाँ मौजूद है जिसका उल्लेख गुरू ग्रंथ साहिब में भी है।
(क्रमश:….)