नागदा-खाचरौद में बगावत का बवंडर भाजपा के लिये नुकसानदायक

– अर्जुन सिंह चंदेल

जिले की 7 विधानसभा सीटों में से घट्टिया-तराना और नागदा-खाचरौद के लिये भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा करने में भले ही बढ़त बना ली हो परंतु यह वही सीटें हैं जहाँ पर वर्तमान में काँग्रेस के विधायक काबिज हैं। मतलब हारी हुयी सीटों पर उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करके मुकाबला कड़ा करने का प्रयास किया है परंतु सतही तौर पर घट्टिया सीट को छोडक़र बाकी तराना और नागदा-खाचरौद में पिछले परिणाम बदलते नजर नहीं आ रहे हैं।

पहले बात कर लें नागदा-खाचरौद की जहाँ दिलीप गुर्जर विधायक हैं जो दो बार काँग्रेस के टिकट पर और एक बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीत चुके हैं। अपनी सक्रियता, मिलनसारिता के कारण वह मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय तो हैं ही साथ ही गुर्जर मतदाताओं के थोकबंद वोट भी उनकी ही झोली में है। कुल मिलाकर नागदा-खाचरौद का मतदाता उनसे नाराज नहीं है साथ ही मतदाताओं का यह भी लालच है कि यदि मध्यप्रदेश में काँग्रेस की सरकार बनी तो हमारा विधायक दिलीप गुर्जर निश्चित तौर पर मंत्रिमंडल में शामिल होगा क्योंकि कमलनाथ जी सार्वजनिक रूप से इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि दिलीप गुर्जर को मंत्रिमंडल में मौका नहीं दिया जाना काँग्रेस पार्टी की भूल रही है और भविष्य में यह गलती नहीं होगी।

ऐसा नहीं है कि काँग्रेस में विधायक दिलीप गुर्जर का विरोध नहीं है परंतु उनके विरोधियों का प्रभाव नगण्य है इस कारण ऐसा लगभग तय माना जा रहा है कि काँग्रेस पार्टी की ओर से वर्तमान विधायक दिलीप गुर्जर ही उम्मीदवार होंगे।

दूसरी ओर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी नागदा-खाचरौद विधानसभा में खंड-खंड में बटी हुयी है शायद जितना अंतर्कलह नागदा में है उतना और कहीं नहीं। पूर्व विधायक दिलीप सिंह शेखावत चुनाव में पराजित होने के बावजूद बीते 5 वर्षों में बहुत ज्यादा सक्रिय थे भोपाल से नजदीकियां होने के कारण वह अपनी उम्मीदवारी को लगभग तय मानकर ही चल रहे थे।

जहाँ नागदा या खाचरौद नगर पालिका या पंचायतों में जनप्रतिनिधियों की बात हो, सब जगह उनके समर्थक मौजूद हैं। दूसरी ओर भारतीय मजदूर संघ के कद्दावर नेता जिन्हें मध्यप्रदेश सरकार ने केबिनेट मंत्री का दर्जा दे रखा है भंवर सिंह शेखावत जो कि मध्यप्रदेश कर्मकार मंडल के वर्तमान अध्यक्ष हैं अपने पुत्र मोती सिंह शेखावत के लिये प्रयासरत थे चर्चा तो यह भी है कि मोती सिंह शेखावत ने क्षेत्र में अपना वर्चस्व अर्जित करने के लिये रूपयों को पानी की तरह बहा दिया।

विधानसभा क्षेत्र के अनेक ग्रामों में अपने निजी खर्चे से क्लोज सर्किट कैमरे तक लगवा दिये। दिलीप सिंह शेखावत और भंवरसिंह शेखावत की पारम्परिक राजनैतिक प्रतिस्पर्धा क्षेत्र में जग जाहिर है। शायद भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व को शेखावतों के बीच चली आ रही रस्साकसी के कारण ही तेजबहादुर सिंह चौहान पर दाँव लगाना पड़ा।

निस्संदेह तेजबहादुर सिंह चौहान बेहद ईमानदार, कर्मठ और पार्टी के प्रति समर्पित कार्यकर्ता होकर कुशल संगठक है परंतु आम मतदाता के बीच ना तो उनकी सक्रियता है और ना ही लोकप्रियता। नागदा में भाजपा के अनेक जनप्रतिनिधियों की बगावत का उठा बवंडर भी पूरे मध्यप्रदेश में खबरों की सुर्खियों में है। भले ही ऐन-केन प्रकारेण बगावत की इस आग को ठंडा कर दिया जाए पर राख में दबी छिपी चिंगारियां भी नुकसान करती है।

कुल मिलाकर भारतीय जनता पार्टी के लिये नागदा-खाचरौद विधानसभा की राह आसान नहीं है। मजबूरी में लिये गये निर्णय से भी पार्टी पर कोई असर होने वाला नहीं है क्योंकि इस सीट पर पार्टी के पास खोने के लिये कुछ नहीं है।
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