– अर्जुन सिंह चंदेल
उज्जैन की 2 लाख 13 हजार मतदाताओं वाली उत्तर विधानसभा के अखाड़े में दोनों ही दल भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी दंगल के लिये अपने-अपने पहलवानों के नामों की घोषणा नहीं की है पर ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा 6 बार के विधायक, मध्यप्रदेश शासन के पूर्व मंत्री पारस पहलवान पर ही विश्वास व्यक्त करेगी।
पार्टी द्वारा कराये गये चुनावी सर्वे में भी भाजपा को पारस जी से सशक्त कोई दूसरा उम्मीदवार नजर नहीं आ रहा है। सहज, सरल, साधारण, मिलनसार, हँसमुख ऐसे अनेक गुणों से परिपूर्ण पारस जी भले ही शहर को कुछ ज्यादा ना दे पाये हो या लोगों की बहुत ज्यादा आकांक्षाएं पूरी नहीं कर पाये हो परंतु फिर भी उनकी खासियत है कि मतदाताओं के लिये हर समय आसानी से उपलब्ध हैं।
पारस जी की सरलता और सहजता के कारण कोई भी मतदाता उनसे मुलाकात कर लेता है और वह तुरंत समस्या के हल का प्रयास भी करते हैं। पारस जी के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा गुण यह है कि यदि वह किसी का भला ना कर सके तो उन्होंने किसी का बुरा भी नहीं किया। राजनीति के दलदल में रहते हुए भी उन्होंने किसी दूसरों के लिये कभी भी काँटे नहीं बोये यही कारण है कि शहर में उनका कोई दुश्मन नहीं है यह गुण उन्हें समाज व राजनीति में वजनदार बनाता है। इन्हीं सब बातों की बदौलत उन्हें भाजपा का सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है जिसके मुकाबले में काँग्रेस का कोई भी दावेदार टिकता नजर नहीं आ रहा है।
शायद यही कारण है कि कमलनाथ जी के आंतरिक सर्वे में उज्जैन-उत्तर व दक्षिण की दोनों विधानसभा सीटें भारतीय जनता पार्टी की झोली में मानी गयी है। इस बार के विधानसभा चुनाव शायद 2018 के हुए चुनावों की तुलना में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिये अधिक चुनौतीपूर्ण है। कर्नाटक और हिमाचल में काँग्रेस को मिली विजय से उसे संजीवनी मिल गयी है जिसका असर मध्यप्रदेश में भी दिखायी देने के संकेत नजर आ रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी की परंपरागत सीट बन चुकी उज्जैन-उत्तर विधानसभा सीट पर इस बार उम्मीदवार के मामले में भाजपा के सामने निर्णय लेने में असमंजस की स्थिति निर्मित हो सकती है। जिसका महत्वपूर्ण कारण इस विधानसभा सीट में मार्च 2023 की गणनानुसार 42 हजार 870 परशुराम वंशज मतदाताओं की पार्टी से नाराजगी है। भाजपा की मानसिकता वाले परशुराम वंशज हर बार के विधानसभा चुनावों की तरह इस बार भी अपनी सशक्त दावेदारी कर रहे हैं और माँग कर रहे हैं कि इस बार उज्जैन-उत्तर विधानसभा से किसी ब्राह्मण को उम्मीदवार बनाया जाए।
परशुराम वंशजों का कहना है कि भाजपा ने 43 वर्षों पूर्व 1980 में हुए विधानसभा चुनावों में आखरी बार राधेश्याम उपाध्याय जी को अपना प्रत्याशी बनाया था जो स्वर्गीय डा. राजेन्द्र जैन के सामने मात्र 1300 वोटों से हारे थे। इसके पहले सन. 1967 में जब संविद सरकार बनी थी तब पार्टी ने महादेव गोविंद जोशी को उम्मीदवार बनाया था। बीते 43 वर्षों से ब्राह्मण मतदाताओं की काफी संख्या होने के बावजूद भाजपा ने उपेक्षा की है।
ब्राह्मण देवताओं का कहना है कि उत्तर विधानसभा के अनेक क्षेत्र जैसे सिंहपुरी, कार्तिक चौक, भागसीपुरा, गायत्री नगर, ब्राह्मण मतदाताओं से भरे पड़े हैं। गत वर्ष नगर निगम चुनावों में कार्तिक चौक मंडल के वार्डों से ब्राहण को प्रत्याशी ना बनाये जाने का खामियाजा भाजपा भुगत चुकी है। यदि इस बार के विधानसभा चुनावों में पार्टी ब्राह्मण समाज को टिकट नहीं देती है और काँग्रेस की ओर से किसी ब्राह्मण को प्रत्याशी बनाया गया तो परशुराम वंशजों का मतदान समाज की ओर हो गया तो मुस्लिम-ब्राह्मण का समीकरण जो कि लगभग 90-95 हजार हो रहा है भारतीय जनता पार्टी के लिये मुसीबत खड़ा कर सकता है।