अर्जुन सिंह चंदेल
चुनावी बिगुल बज चुका है। मात्र 27 दिनों बाद पुरे मध्यप्रदेश के साथ ही उज्जैन जिले के मतदाता भी अपने जनप्रतिनिधियों के चयन हेतु मतदान करेंगे।
उज्जैन जिले की सातों विधानसभा सीटों के लिये प्रत्याशी चयन में पहले भारतीय जनता पार्टी से पिछडऩे के बाद काँग्रेस ने बाजी मार ली है और उसने सातों सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नाम घोषित करके बढ़त बना ली है।
मध्यप्रदेश का चुनावी परिदृश्य क्या कह रहा है यह तो सिर्फ अभी जुबानी जमा खर्च है। समझ नहीं आ रहा है यदि खबरनवीसों की बातों पर यकीन किया जाए तो चंबल-मुरैना,ग्वालियर क्षेत्र से ही भारतीय जनता पार्टी का सफाया हो रहा है।
यही स्थिति विंध्य क्षेत्र की भी बतायी जा रही है कि वहाँ भी काँग्रेस बहुत मजबूत स्थिति में नजर आ रही है।
यह तो हुयी खबरनवीसों की बात लेकिन यदि भारतीय जनता पार्टी के नेता कार्यकर्ताओं की बात पर यकीन किया जाए तो मध्यप्रदेश में फिर से एक बार फिर भाजपा की सरकार बन रही है। खैर भाजपा मानसिकता का मतदाता भाजपा को और काँग्रेसी मानसिकता का मतदाता काँग्रेस को मजबूत स्थिति में बतायेगा ही। क्योंकि यह मानव स्वभाव है।
अपने राम तो आज उज्जैन जिले की सातों विधानसभा सीटों की ही आपसे चर्चा की शुरुआत करेंगे।
पहले बात करते हैं उज्जैन दक्षिण विधानसभा क्षेत्र की, जो कभी काँग्रेस का गढ़ हुआ करती थी, अब भारतीय जनता पार्टी का अभेद किला बन गयी है। भाजपा ने यहाँ से कैबीनेट मंत्री मोहन यादव को पहली ही सूची में प्रत्याशी घोषित कर दिया है।
साम, दाम, दंड, भेद सब तरह के राजनैतिक अस्त्र-शस्त्र से लैस मोहन यादव जी के प्रत्याशी घोषित होने के पूर्व बाजार में अफवाहों की गर्मी थी।
जिसमें कहा जा रहा था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मोहन जी की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट एवं नाराज है। साथ ही सिंहस्थ भूमि घोटाला, महाकाल लोक के निर्माण में भ्रष्टाचार, सडक़पति से अरबपति बनने की कहानियां लोगों की जुबान पर थी और यह कहा जा रहा था कि मोहन जी को इस बार टिकट मिलना आसान नहीं है।
परंतु मोहन जी ने राजनैतिक परिपक्वता का परिचय देते हुए टिकट लाकर अपने विरोधियों को यह साफ संदेश दे दिया है कि अभी उनका भाग्य प्रबल है और उनकी राजनैतिक जड़ भोपाल-दिल्ली से होते हुए पार्टी के नेतृत्व तक पहुँच चुकी है। जिले के इस कुबेरपति प्रत्याशी के चुनावी रण में विजय श्री की भी प्रबल संभावनाएं हैं। यदि कुछ आसमानी सुलतानी नहीं हु आ तो।
दक्षिण क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी के पास मोहन से बेहतर कोई दूसरा उम्मीदवार था भी नहीं।
अब बात करते हैं काँग्रेस की जिसके पास इस दक्षिण विधानसभा सीट पर खोने के लिये कुछ था ही नहीं।
पार्टी के नेताओं को विवेक का उपयोग करके मुकाबले को दमदार और रोचक बनाना ही उद्देश्य था। और मेरी व्यक्तिगत राय है कि पार्टी ने मोहन यादव के विरुद्ध जिस युवा चेहरे का चयन किया है वह श्रेष्ठ चयन है।
घिसेपिटे पुराने चेहरों पर काँग्रेस कब तक दाँव लगाती रहेगी। जो दो-दो बार चुनावी रण में पराजित होकर अपनी मिट्टी पलीत करवा चुके हों, उन पर कब तक भरोसा किया जा सकता है ।
कभी निर्दलीय, कभी पार्टी के टिकट पर भी वह अपनी नैय्या पार न कर सके हों तो उनसे अलविदा कर लेना ही किसी भी राजनैतिक दल के स्वास्थ्य के लिये बेहतर है।
भले ही दक्षिण विधानसभा से काँग्रेस पार्टी एक बार और हार जाए पर एक नये नवजवान पर विश्वास व्यक्त करके पार्टी ने साहसिक निर्णय लिया है और चयनकर्ताओं ने अपनी मर्दानगी का परिचय दिया है। (
कल बात करेंगे बडऩगर विधानसभा की)।