– अर्जुन सिंह चंदेल
उज्जैन जिले की 7 विधानसभा सीटों में से मात्र उज्जैन उत्तर एवं बडऩगर विधानसभा सीटें ही ऐसी हैं जहाँ भारतीय जनता पार्टी एवं काँग्रेस दोनों ही ने अपने प्रत्याशी बदल दिये हैं। आज हम बात करेंगे बडऩगर विधानसभा की।
कालजयी गीतकार प्रदीप और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी जी के नाम से जाने जानी वाली बडऩगर की पवित्र मिट्टी को इस प्रदेश के राजनैतिक धुरंधरों पूर्व केन्द्रीय मंत्री सवाई सिंह सिसौदिया, कन्हैयालाल मेहता, उदयसिंह जी पंड्या को चाणक्य बनाने का अवसर मिला है। वर्षों तक राजनीति के क्षेत्र में कन्हैयालाल मेहता जी का वर्चस्व रहा है, उसके बाद लम्बे समय तक सिसौदिया परिवार का दबदबा रहा।
यदि बात जनसंघ या भारतीय जनता पार्टी की करें तो तीन बार के विधायक रहे उदयसिंह पंड्या जैसे व्यक्तित्व जिसने सुचिता की राजनीति की, और एक संत की भांति क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। ईमानदार, सहज-सरल व्यक्तित्व के धनी पंड्या जी को आज भी याद किया जाता है। दो लाख 5 हजार मतदाताओं वाली इस विधानसभा में लगभग 45 हजार राजपूत, 35 हजार ब्राह्मण, 20 से 25 हजार माली समाज और तेली समाज, पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं का बाहुल्य है।
मुख्य टक्कर राजपूत और ब्राह्मण समाज के बीच होती है। काँग्रेस ने इस बार विधायक मुरली मोरवाल का टिकट काटकर नये चेहरे 42 वर्षीय राजेन्द्र सिंह सोलंकी को अपना उम्मीदवार बनाया है। राजनैतिक पंडितों का मानना है कि पूर्व बार अध्यक्ष और जिला पंचायत सदस्य रहे राजेन्द्र सिंह को काँग्रेस प्रत्याशी बनाने में दिग्विजयसिंह का हाथ है। वह दिग्विजयसिंह के प्रत्याशी पहले हैं पार्टी के बाद में।
दमदार, बाहुबली विधायक मुरली मोरवाल मैदानी रूप से बहुत ज्यादा सक्रिय थे परंतु बेटे की करतूत के कारण उन्हें नुकसान उठाना पड़ा। जितना नुकसान उनकी छवि धूमिल करने में भाजपा ने नहीं पहुँचाया उससे कहीं ज्यादा नुकसान उनके ही दल के उनके राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों ने पहुँचाया। पीडि़ता को सामने रखकर तरह-तरह के षडय़ंत्र और कुचक्र रचे गये। खैर मोरवाल जी को बेटे के अपराध की सजा की कीमत अपनी सीट गंवाकर चुकानी पड़ी।
बिल्कुल ताजा तरीन काँग्रेस उम्मीदवार राजेन्द्र सिंह के सामने भारतीय जनता पार्टी ने इस बार दमदार उम्मीदवार को उतारा है। 48 वर्षीय जितेन्द्र पंड्या जिन्हें राजनीति की शिक्षा अपने पिता, जो 6 बार विधायक का चुनाव लड़ चुके हैं, से मिली। पेशे से किसान जितेन्द्र को 2018 में भी भाजपा का प्रत्याशी घोषित कर दिया गया था। ऐन वक्त पर उनका टिकट काटकर भाजपा ने संजय शर्मा को प्रत्याशी बना दिया था। पंड्या गुट की नाराजगी के चलते भारतीय जनता पार्टी को हार का स्वाद चखना पड़ा था और मुरली मोरवाल विधायक बनने में सफल हो गये थे।
काँग्रेस पार्टी ने वर्तमान विधायक मोरवाल का टिकट काटकर बहुत बड़ी रिस्क ली है। दिग्विजय सिंह जी का यह व्यक्तिगत निर्णय सही है या गलत, यह तो 3 दिसंबर को होने वाली मतगणना के परिणामों से ही स्पष्ट हो सकेगा।
बडऩगर विधानसभा चुनाव में राजपूतों की एकता तो मायने रखती ही है परंतु साथ में परशुराम वंशजों के बीच परंपरागत रूप से चले आ रहे मतभेद भी परिणामों को प्रभावित करेंगे। यदि विप्र मतदाता बंधुओं के बीच तालमेल बैठ गया तो भारतीय जनता पार्टी मजबूत स्थिति में आ जायेगी, जिसकी संभावनाएं वर्तमान में कम ही नजर आ रही है। दोनों ही राजनैतिक दल काँग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में कोई लहर दिखायी नहीं दे रही है। प्रत्याशियों के चुनाव प्रबंधन पर परिणाम आयेंगे।
(कल महिदपुर विधानसभा)