– अर्जुन सिंह चंदेल
महिदपुर विधानसभा की आगे की यात्रा पर चलते हैं। राजनीति की मायावी शक्तियों से लैस बहादुर सिंह सारी अटकलों पर विराम लगाकर भाजपा से टिकट तो ले आये पर इस बार उनकी विजय में वर्ष 2018 से कहीं अधिक बाधाएँ हैं और इस बार चुनावी वैतरणी से पार होकर विजय श्री का वरण वर्तमान में दुष्कर लग रहा है।
बीते 5 वर्षों में विधायक बहादुर सिंह जी ने दोस्तों से ज्यादा दुश्मन पैदा किये हैं। सबको निपटाने वाली उनकी वृत्ति उनकी जीत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बन गयी है। मुस्लिम, ब्राह्मण, राजपूत तो उनका खुलकर विरोध कर ही रहे हैं सबसे ज्यादा विरोध तो सौंधिया समाज में हो रहा है जिसके लगभग 29 हजार मतदाता हैं। राजपूत 12 हजार, ब्राह्मण 13 हजार, आंजना 25 हजार, 3 हजार जैन, 8 हजार माली, 19 हजार मुस्लिम और 45 हजार के लगभग अजा/जजा वर्ग के मतदाता हैं।
कुल 2 लाख 15 हजार मतदाताओं वाली महिदपुर विधानसभा का चौथी बार विधायक बनने में बहादुर सिंह जी की राह में सबसे बड़ी बाधा तो कभी उनके दायें-बायें रहे उनके ही अंतरंग साथी प्रताप सिंह आर्य हैं जो जिला पंचायत के सदस्य हैं। सौंधिया मतदाताओं में गहरी पैठ रखने वाले प्रताप सिंह महिदपुर विधानसभा के लगभग 60 से अधिक गाँवों में आर्य वीर दल के नाम से संस्था चलाते हैं। नवयुवकों के दिलों पर राज करने वाले प्रताप सिंह आर्य भी विधायक बहादुर सिंह चौहान के कोप भाजन का शिकार हो चुके हैं। राजनैतिक षड्यंत्रों का शिकार होकर वह कारावास भी भुगत चुके हैं। जेल के बाहर आते ही उन्होंने सार्वजनिक रूप से बहादुर सिंह से दो-दो हाथ करने की घोषणा कर दी थी।
आज की तारीख में भाजपा की जीत की राह में प्रताप सिंह सबसे बड़ी चट्टान बनकर खड़े हैं वह ताल ठोककर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदाने जंग में उतर रहे हैं। बहादुर सिंह के सारे विरोधी भी उनके झंडे के नीचे एकत्रित हो गये हैं जिसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अनुषांगिक संगठनों के वरिष्ठ-कनिष्ठ लोग भी शामिल हैं। इसके अलावा करणी सेना भी ताल ठोककर टक्कर देगी यदि 12 हजार राजपूत मतदाताओं ने करणी सेना का साथ दिया तो बहादुर सिंह जी पर संकट गहरा सकता है और चौथी बार विधायक बनने का सपना चूर-चूर हो सकता है।
वैसे भी उज्जैन-दक्षिण के भाजपा प्रत्याशी भी नहीं चाहेंगे कि जिले का कोई भी भाजपा उम्मीदवार उनके मंत्री बनने की राह में रोड़ा बने क्योंकि 6 बार के विधायक रहे पारस जैन जी पहले ही प्रतियोगिता से बाहर हो चुके हैं, अब बहादुर सिंह ही यदि चौथी बार विधायक बनने में सफल हुए तो मोहन यादव जी के मंत्री बनने में रूकावट पैदा कर सकते हैं। महिदपुर विधानसभा में लगभग 25 हजार मतदाताओं वाला आंजना समाज भी इस बार भाजपा से नाराज है क्योंकि पूरे प्रदेश में एक भी आंजना समाज के कार्यकर्ता को टिकट नहीं मिला है।
कैशर सिंह पटेल इस बार आंजना समाज की और से टिकट मांग रहे थे। महिदपुर विधानसभा का चुनाव परिणाम तो 3 दिसंबर को पता चलेगा पर पूरे जिले में यहाँ के परिणाम चौंकाने वाले आने की पूरी संभावना अभी से नजर आ रही है।
चलो अब बात कर ले महिदपुर में वेंटिलेटर पर पड़ी काँग्रेस पार्टी की जिसके पास क्षेत्र से कोई दमदार व्यक्ति ही नहीं था जिसे प्रत्याशी बनाया जा सके क्योंकि महिदपुर विधानसभा के बहुत सारे काँग्रेस विधायक बहादुर सिंह के जर-खरीद गुलाम बन चुके हैं। कुछ को षडय़ंत्रपूर्वक कुचल दिया गया है। और काँग्रेसियों को काँग्रेस से उम्मीदवार बनवाने के लिये धन और बल का उपयोग कर रहे थे ताकि उनकी जीत आसान हो सुके।
एकमात्र दिनेश बोस ही ऐसे रहे जो विधायक के आगे डटे रहे और झुके नहीं। मजबूर होकर काँग्रेस को उन्हें ही प्रत्याशी बनाना पड़ा, जिन पर खदानों पर रायल्टी ना चुकाने का गंभीर मामला चल रहा है और करोड़ों की रिकवरी उन पर निकली हुयी है जो उन्हें नामांकन भरते समय तकनीकी रूप से तकलीफ दे सकती है। क्योंकि चुनाव लडऩे के लिये योग्यता में किसी भी शासकीय विभाग का बकाया ना होने का प्रमाण पत्र जरूरी होता है।
वैसे भी उज्जैन जिले का राजनैतिक इतिहास रहा है कि पार्टी से बगावत करके लडऩे वाला व्यक्ति पार्टी उम्मीदवार बनने के बाद चुनाव नहीं जीता है। उज्जैन की दक्षिण विधानसभा के परिणाम देख ले। योगेश शर्मा काँग्रेस प्रत्याशी थे तब राजेन्द्र वशिष्ठ और जयसिंह दरबार ने पार्टी से बगावत करके चुनाव लड़ा और हार गये उसके बाद उम्मीदवार के रूप में दोनों को ही 2013 और 2018 में काँग्रेस ने उम्मीदवार बनाया पर दोनों ही जीत नहीं पाये और दोनों ही के राजनैतिक जीवन का अवसान हो गया।
इस बार काँग्रेस ने घोषणा की थी कि बागियों को प्रत्याशी नहीं बनाया जायेगा परंतु मजबूरी में उज्जैन-उत्तर और महिदपुर से बागियों को टिकट देकर ही दाँव लगाना पड़ा। अब देखना है कि बागी इतिहास बदलते हैं या वही रहेगा। खैर यदि काँग्रेस विजय होती है तो उसका सारा श्रेय प्रतापसिंह आर्य को जायेगा। और यदि भाजपा प्रत्याशी बहादुर सिंह अपने समाज में ही सामंजस्य नहीं बैठा पाये तो प्रताप सिंह आर्य भी विजयी हो सकते हैं। जय महाकाल
(अगली कथा के लिये अब थोड़ा इंतजार करना होगा)