भिड़ावद में लोगों को रौंदते हुए निकली गायें

मान्यता है कि इससे खुशहाली आती है गांव में

उज्जैन, अग्निपथ। भिड़ावद गांव में दौड़ती हुई गायें लोगों को रौंदते हुए गुजरीं। दिवाली के दूसरे दिन यह परंपरा हर साल निभाई जाती है।
ग्रामीणों में मान्यता है कि ऐसा करने से खुशहाली आती है। गाय में 33 कोटि के देवी – देवताओं का वास रहता है। गाय के पैरों के नीचे आने से भगवान का आशीर्वाद मिलता है। मन्नत पूरी होने पर लोग इस परंपरा को निभाते हैं। इससे पहले वे उपवास रखते हैं और 5 दिन मंदिर में ही रहकर भजन-कीर्तन करते हैं।

इस साल चार ग्रामीणों ने मांगी थी मन्नत

इस साल गांव के चार ग्रामीणों- रामेश्वर चौहान, मोहन चंद्रवंशी, कन्हैया लाल, बंटी मालवीय ने मन्नत मांगी थी। परंपरा अनुसार दीपावली के पांच दिन पहले सभी ने ग्यारस के दिन अपना घर छोड़ दिया। गांव के माता भवानी के मंदिर में आकर रहने लगे। दिवाली के दूसरे दिन गायों के सामने जमीन पर लेटे। गांव वालों ने ढोल बजाकर एक साथ गायों को इनके ऊपर से निकाला।

पहले गौरी पूजन

गांव के उप सरपंच राजू चौधरी ने बताया कि दिवाली के बाद अगले दिन सुहाग पड़वा पर भीड़ावद गांव के ग्रामीण सूरज निकलने से पहले ही सदियों से चली आ रही गोरी पूजन की परंपरा की तैयारियों में जुट जाते हैं। सूरज निकलते ही मंदिरों में घंटियां बजने लगती हैं। माता का रूप माने जाने वाली गायों को स्नान कराया जाता है। सींग, खुरों और शरीर को रंगा जाता है। इसके बाद गांव के लोग चौक में जमा हो जाते हैं। परंपरा पूरी होने पर गांव में जुलूस निकाला जाता है। उप सरपंच का कहना है कि परंपरा कब शुरू हुई? किसी को याद नहीं, लेकिन आज तक कोई घायल नहीं हुआ।

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