– अर्जुन सिंह चंदेल
उज्जैन संसदीय सीट के अंतर्गत रतलाम जिले की आलोट विधानसभा सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय भले ही बन गया हो परंतु मुख्य टक्कर दो पूर्व सांसदों के बीच ही है और महत्वपूर्ण बात यह है काँग्रेस जो कि मध्यप्रदेश में सरकार बनाने का सपना संजो कर बैठी है वह आलोट विधानसभा के चुनाव परिणामों में तीसरे नंबर पर आ रही है।
223 नंबर की आलोट विधानसभा सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिये आरक्षित है। इस विधानसभा क्षेत्र में लगभग 15 हजार ब्राह्मण, 20 हजार राजपूत, 20 हजार सौंधिया राजपूत, 20 हजार गुर्जर, 15 हजार मुस्लिम, 30 हजार बलाई समाज के मतदाता हैं। अनुसूचित वर्ग के कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 90 हजार है। आलोट विधानसभा में 2 लाख 22 हजार 685 लगभग मतदाता हैं।
2018 के विधानसभा चुनाव में काँग्रेस के मनोज चावला ने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी जितेन्द्र गेहलोत (थावरचंद जी के पुत्र) को लगभग 5448 मतों से पराजित किया था। वर्ष 2013 में जितेन्द्र गेहलोत, 2008 में भाजपा के मनोहर ऊँटवाल, 2003 में प्रेमचंद गुड्डू काँग्रेस से 1998 में मनोहर ऊँटवाल भाजपा के और 1993 और 1990-1980 में पूर्व केन्द्रीय मंत्री थावरचंद जी गेहलोत भाजपा से आलोट विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
आलोट विधानसभा सीट के साथ एक रोचक कहानी भी है। यहाँ 1957 के चुनाव में एक विधायक ऐसे भी हुए हैं जिन्हें जीरो वोट मिले फिर भी वह विधायक बन गये थे। हुआ यूँ था कि प्रदेश की अनुसूचित जाति के लिये आरक्षित 42 सीटों पर तो दो से अधिक प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था लेकिन रतलाम की आलोट सीट पर सिर्फ एक ही प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरा था वह थे काँग्रेस पार्टी की ओर से मियाराम नंदा और वह बिना लड़े ही चुनाव जीत गये थे।
इस बार के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व सांसद चिंतामण मालवीय को दाँव पर लगाया है, जिन्हें 2019 के लोकसभा चुनावों में टिकट नहीं दिया गया था क्योंकि उनके इश्क के चर्चे जोरों पर थे। इस बार चिंतामण मालवीय आलोट सीट से विधायक का चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा की ओर से प्रत्याशी घोषित किये जाने पर वहाँ के स्थानीय भाजपा नेताओं ने बाहरी प्रत्याशी थोपे जाने का जमकर विरोध किया था। विरोध की आग पर भले ही पानी डालकर ठंडा करने का प्रयास किया गया हो परंतु ऊपर से ठंडी आग की राख के नीचे विरोध की अग्नि अभी भी है। सांसद ना रहने के बाद चिंतामण मालवीय जी का आलोट से संबंध टूट सा गया था इसी कारण उन्हें आलोट में विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
काँग्रेस ने वर्तमान विधायक मनोज चावला जो कि खटीक समाज से आते हैं पर फिर से दाँव लगा दिया है। मनोज चावला का व्यक्तित्व और कार्यप्रणाली वैसे भी आकर्षक नहीं रही है। मतदाताओं से ना तो उनका जीवित संपर्क रहा और ना ही वह उनके कार्य करा पाये। कुल मिलाकर मनोज चावला का 5 वर्षीय विधायक का कार्यकाल उल्लेखनीय नहीं रहा।
काँग्रेस से टिकट ना दिये जाने से नाराज आलोट से विधायक (2003-2008) और उज्जैन से लोकसभा सांसद रह चुके अपने जीवित संपर्कों के कारण पुन: ताल ठोककर निर्दलीय होकर चुनावी मैदान में है। काँग्रेस से बागी होकर गुड्डू ने काँग्रस के ताबूत में कील ठोक दी है। मुस्लिम मतदाताओं के बीच लोकप्रिय गुड्डू का पूरे आलोट क्षेत्र के मतदाताओं से जीवित संपर्क है।
आलोटवासियों के किसी भी कार्य में मदद के लिये मनोज चावला विधायक से पहुँचने के पहले गुड्डू के हाथ सेवा के लिये पहले पहुँचते थे। चलने में भी असमर्थ, बेहद बीमार, कई बीमारियों से घिरे होने के बावजूद चुनावी रण में ‘बागी गुड्डू’ की मौजूदगी को नकारा नहीं जा सकता है। कोई बहुत आश्चर्य की बात नहीं होगी यदि गुड्डू यह चुनाव जीत भी जाए तो। यदि गुड्डू विधानसभा में पहुँचे तो संभावना व्यक्त की जा रही है वहाँ उनकी बेटी रीना बोरासी भी जो सांवेर विधानसभा से चुनाव लड़ रही है उनके साथ होगी।
आलोट विधानसभा क्षेत्र में जिस प्रकार की हवा बह रही है उससे तो ऐसा ही लग रहा है कि वहाँ से पूर्व सांसद ही विधायक बनेगा। 138 वर्ष पुरानी काँग्रेस पार्टी का प्रत्याशी परिणामों में तीसरे नंबर पर रहेगा।