नियम से पैसा देकर झूला लगाने के लिए जो कर रहे गुहार, उन्हें रहे परेशान कर रहे कर्मचारी,अधिकारी
उज्जैन, अग्निपथ। नगर निगम में न नियम न कायदा, जिसका कर्मचारी और अफसरों चाहे उसी का फायदा। यह बात इन दिनों झूलों वालों के मामले में साबित हो रही है। क्योंकि जो झूले वाले वर्षों से झूले लगाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं उन्हें नगर निगम के अफसरों ने ऑनलाइन टेंडर के जाल में उलझाकर परेशान कर रखा है। वहीं दूसरी तरफ बगैर परमिशन के कार्तिक मेला ग्राउंड पर आकर झूले लगा लेने वालों को डेली पर्ची काटकर वैध किया जा रहा है।
नगर निगम में मेला व्यवस्था के सहायक आयुक्त प्रदीप सेन का कहना है कि कुछ छोटे झूले वाले बगैर टेंडर प्रक्रिया के आकर कार्तिक मेला ग्राउंड पर बैठ गए थे। अब इन गरीबों को हटा तो नहीं सकते हैं। इसलिए इन्हें डेली पर्ची काटकर जगह आवंटित की जा रही है। बाकी झूले वालों को ऑनलाइन टेंडर के माध्यम से दुकानों के आवेदन के आधार पर आवंटन किया जाएगा। ऑनलाइन आवेदन की फीस छह हजार रुपए से शुरू होगी।
भ्रष्टाचार का कोई मौका नहीं छोड़ते निगम अफसर
बताया जाता है कि ऑनलाइन आवेदन के नाम पर भ्रष्टाचार करने वाले अफसर और कर्मचारी कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। इसका उदाहरण पिछले साल दुकानों के ऑनलाइन आवेदन के चलते सामने आया था। झूले वालों में विवाद होने के बाद एक हत्या तक हो गई थी। परन्तु उज्जैन नगर निगम के जि मेदारों के कांनों पर जूं तक नहीं रेंगी और उन्होंने इस बार फिर से ऑनलाइन की रट लगा रखी है। वहीं बताया जाता है कि कुछ कांग्रेस के नेताओं ने भी झूला व्यवसाय में लाभ कमाने के उद्द्ेश्य से ऑनलाइन को समर्थन देना शुरू कर दिया है।
गधे घोड़े वालों से अवैध वसूली, कोई सहूलियत नहीं
देवउठनी ग्यारस से उज्जैन में गधे और घोड़े वालों का मेला लगा हुआ था, जो मंगलवार समाप्त हो गया। रविवार को बारिश होने के बाद पूरे क्षेत्र में कीचड़ और गंदगी हो गई। घोड़े और गधे कांपते रहे। इनको लेकर आने वाले पूरी रात परेशान होते रहे। लेकिन इन्हें कोई सहूलियत मुहैया नहीं कराई गई। इस मेले के व्यापारी कमल प्रजापत का कहना है कि इतने दिनों में एक बार भी निगम के अफसर या कर्मचारी यह देखने नहीं आए कि वे मेले में कैसे व्यापार कर रहे हैं।
मेले की व्यवस्था एक ठेकेदार को सौंप रखी थी। जो मेले समाप्ति के एक दिन पहले रविवार को आया और 10 से रुपए से लेकर 1000 रुपए तक की रसीद काटकर राशि वसूलता रहा। अब यह असली है या नकली किसी को नहीं पता। एक घोडे वाले को भी एक ही रसीद दी और दस घोड़े वाले को भी एक ही रसीद दी। निगम को इससे कितना पैसा गया यह किसी को नहीं पता है।
20 हजार से 30 हजार में बिके गधे
उज्जैन के गधा मेले में 20 हजार से 30 हजार रुपए के बीच में गधे और गधी बिके हैं। व्यापारी कमल प्रजापत ने बताया कि करीब दो हजार से ज्यादा पशु बिकने के लिए उज्जैन आए थे। परन्तु कई व्यापारियों को खाली हाथ जाना पड़ा। उनके मन के मुताबिक जानवर नहीं मिल पाए हैं। अब लोगों को रुझान थोड़ा कम होने से पशुओं को लेकर भी लोग ज्यादा खर्च नहीं करते हैं। अब पेशेवर और शौकिया लोग ही जावनरों को पालते हैं। शाहरुख और सलमान नाम के गधों की उज्जैन में अलग पहचान रही।
पशू क्रूरता के तहत निगम अफसरों की शिकायत
बताया जाता है कि इस मामले को लेकर पशू क्रूरता अधिनियम के तहत निगम कर्मचारियों और अफसरों की शिकायत की जा रही है। इसमें घोड़े और अन्य जानवरी के साथ जिस तरह का व्यवहार रविवार की रात को हुआ है उसकी जानकारी भी पशु प्रेमियों द्वारा भेजी जा रही है। उल्लेखनीय है कि जिला स्तरीय पशु क्रूरता कमेटी के सदस्य के रूप में जिला मजिस्ट्रेट, एसपी, पशु चिकित्सक, महापौर और निगम आयुक्त रहते हैं। निगम आयुक्त ने मौके का निरीक्षण किया या नहीं यह साफ नहीं हो पाया है। निगम आयुक्त रोशन सिंह से संपर्क करने का प्रयास किया गया था, परन्तु उन्होंने फोन रिसिव नहीं किया।
पशु क्रूरता निवारण के लिए यह उपाए किए जाने अनिवार्य
पशू क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत पशुओं को क्रूरता से बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने कुछ उपाय करने के निर्देश दे रखे हैं। परन्तु उज्जैन में लगे पशु मेले में इन नियमों की पूरी तरह से अनदेखी की गई थी। यह व्यवस्था करना चाहिए थी।
-पानी की पर्याप्त व्यवस्था
-रात में पशु के रहने वाले स्थान पर बिजली की व्यवस्था
-जहां पशु को रखा गया है वहां चारा भंडारण और चारे की पर्याप्त व्यवस्था के उपाय
-जहां पशु रखे गए हैं वहां कोई पशु मर जाता है तो उसे हटाने की व्यवस्था
-जहां पशु रखा गया है वहां से उसके अपशिष्ट को हटाने की व्यवस्था
पशु हाट का ठेका तीन साल का लिया है। पहले साल में पांच लाख 74 हजार रुपए भरना होते हैं। इसके बाद हर साल 10 प्रतिशत की राशि को बढ़ाकर जमा कराना होता है। ठेके फिरोज भाई के नाम से लिया गया है। पशु या उनके मालिकों को कोई सुविधा देने की बात नहीं हुई है। बारिश कुदरती है इसका क्या कर सकते हैं। -समीर भाई, पशु हाट का ठेका लेने वाले के व्यवस्थापक