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अर्जुन सिंह चंदेल
नाश्ते से निवृत्ति के बाद कुछ लोगों से मुलाकात के बाद सभी साथी अपने-अपने कमरों की ओर प्रस्थान कर गये। मिलन समारोह में आने वाले सदस्यों का आना बदस्त्तूर जारी थ इसी कारण परिचय समारोह शाम को तय किया गया। 12 जनवरी को सिर्फ सभी का परिचय ही होना था। दो-तीन घंटे के बाद ही दोपहर के भोजन का बुलावा आ गया।
होटल द चाबल के रेस्टोरेन्ट से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी लजीज भोजन का आनंद लिया। हाँ हिमाचल के लोग दही के बहुत शौकीन है सुबह के नाश्ते में दही, लंच में दही, डिनर में दही एक तरह से भोजन में दही अनिवार्य है। भोजन के दौरान होटल चाबल के मालिक भाई कुलदीप से लंबी चर्चा हुयी हर मुद्दे पर उनके होटल निर्माण से लेकर पारिवारिक रूप से उन्हें जानने की कोशिश की।
जितना में उन्हें समझ पाया वह यारों के यार हैं और दिलदार हैं। पहाड़ों पर धूप इठला रही थी। खुले आकाश के नीचे कुनकुनी धूप भोजन का स्वाद बढ़ा रही थी। फोटोग्राफी के शौकीन सदस्यों के चलायमान फोन के कैमरे उन पलों को कैद करने में मशगूल थे। फेसबुक और व्हाटसअप के जरिये 8 अरब की दुनिया में मित्र बने एक-दूसरे को पहचानने की कोशिश कर रहे थे।
महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई से एक भद्र महिला सबके लाड़-दुलार के साथ आकर्षण का केन्द्र बनी हुयी थी। सोश्यल मीडिया पर बनी ‘बुआ’ को हम भी देखने को लालायित थे तभी वह हम सभी साथियों के बीच आकर बोली आप सब उज्जैन से हो, हमारे हाँ कहने पर उन्होंने अभिवादन किया। शायद पूर्वजन्मों का ही कोई संबंध रहा होगा अन्यथा इस कलयुग में तो सगी बुआ भी अपने भतीजों को इतनी प्यारी नहीं होती जितनी ‘घुमक्कड़ी दिल से’ ग्रुप की बुआजी सबको प्यारी थी।
हमने भी महसूस किया कि उनके व्यक्तित्व में जादुई आकर्षण तो है जो सबको उनकी ओर बरबस ही खींच लेता है। उनका बिंदास व्यवहार, उनकी आत्मीयता, उनका स्नेहिल प्यार, उनका ममत्वपूर्ण व्यवहार। मुंबई की रहने वाली बुआजी हिम्मतवाली भी हैं यह हमने आगे जाना।
खैर भोजन आदि के बाद फिर अपने कमरों की ओर प्रस्थान कर गये और शाम होने का इंतजार करने लगे क्योंकि एक-दूसरे से परिचित होने के लिये मंच जो सजाया जा रहा था। मालूम चला कि सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे।
कसौली का सूर्यास्त वैसे भी बहुत सुंदर होता है, ‘होटल द चाबल’ के अर्श से उस अद्भुत दृश्य के हमें भी साक्षी बनने का सौभाग्य मिला जब दुनिया को रोशन करने वाला सूर्य पूर्वांचल से प्रारंभ करके अपनी यात्रा को परिचमांचल पर जाकर विराम देने वाला था ताकि अगली सुबह वह फिर एक नयी ऊर्जा के साथ इस जगत को रोशन कर सके। कसौली का वह अनुपम सूर्यास्त हम साथियों को भी संदेश दे रहा था कि जीवन में हमें भी प्रतिदिन नयी ऊर्जा के साथ शुरू होकर लक्ष्य प्राप्ति की ओर बढऩा चाहिये।
सूर्य अस्त हो चुका था होटल की छत पर देवभूमि के गाँवों को रोशन करती विद्युत से जगमगा रहे भवन छोटे-छोटे मकान ऐसे लग रहे थे मानो ईश्वर ने अपने हाथों से धरती की चादर पर चाँद-सितारे टाँक दिये हो। बहुत देर तक रोशन को निहारने के बाद हम अपने कमरों की ओर चल पड़े तैयार होने के लिये। सबके दिलों में बहुत उत्साह था अजनबियों को जानने समझने का।
थोड़ी देर बाद ध्वनि विस्तारक यंत्र के माध्यम से सभी से रंगमंच के नजदीक आने का अनुरोध किया गया। उज्जैन का 9 सदस्यीय दल भी सकुचाते हुए मंच के सामने लगी कुर्सियों पर पीछे की ओर बैठ गया क्योंकि अग्रिम पंक्तियों पर नारी शक्ति का कब्जा पहले ही हो चुका था। कुछ लोग परिचित भी नजर आये जो कि छत्तीसगढ़ के ‘मैनपाट’ में हुए मिलन समारोह में भी मौजूद थे।
मंच पर दो व्यक्ति मौजूद नजर आये जो इस 80 हजारी मंडली की जान है उनमें से एक है सोनीपत के संजय कौशिश जी और दूसरे ही जयपुर के संदीप साहनी जी। देश भर से मोतियों को एकत्र कर एक माला में पिरोगे वाले यह दिनों ही इस ‘घुमक्कड़ी दिल से’ ग्रुप की माला के वह धागे हैं जिन्होंने सभी को एक माला में पिरोकर रखा है। सभी साथी आ चुके थे और तभी माईक पर किसी महिला की मखमली आवाज के साथ उद्घोषणा हुयी।
(शेष कल)