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अर्जुन सिंह चंदेल
सोने की कोशिश में सफलता नहीं मिल पा रही थी मन में रह-रह कर एक ही विचार आ रहा था कि दो दिन साथ रहने के बाद सुबह सबको बिछुडऩा है। यह सोचते-सोचते ही कब नींद लग गयी पता ही नहीं चला। नींद खुली तब तक घड़ी ने 14 जनवरी की सुबह के 7:30 बजा दिये थे। तैयार होकर जब तक ऊपर आये तब तक कुछ साथी जा चुके थे कुछ जाने की तैयारी में थे।
होटल द चाबल के मालिक कुलदीप सिंह जी सपरिवार सबको विदा कर रहे थे, ठीक उसी तरह जैसे एक वधु का पिता बारातियों को बिदा करता है। दिल भारी, आँखे नम चेहरे पर किसी तरह मुस्कान लाकर हमने ग्रुप के कुछ साथी परिवारों को विदा किया। भाई कुलदीपक ने होटल से धर्मपुर जाने के लिये टैक्सी की व्यवस्था कर दी थी। नाश्ता करने के बाद हम सभी साथी सामान की पैकिंग में लग गये और दो टैक्सियों में भरकर दिन में 12 बजे निकल पड़े धर्मपुर रेलवे स्टेशन के लिये जहाँ से शिमला के लिये टॉय टे्रन पकडऩी थी, मात्र 15-20 मिनट में ही धर्मपुर पहुँच गये।
टॉय टे्रन के बारे में बहुत कुछ सुन व पढ़ रखा था। वैसे भी शिमला तथा दार्जिलिंग में टॉय टे्रन एक बड़ा आकर्षण है। टे्रन लेट हो रही थी उसमें सवार होने का रोमांच हिलोरे मार रहा था निर्धारित समय से 45 मिनट लेट आयी टॉय टे्रन के आरक्षित डिब्बे में हम सभी सवार हो गये धर्मपुर से शिमला की दूरी है तो मात्र 30 किलोमीटर पर यात्रा का समय 180 मिनट का है मतलब टे्रन को 1 किलोमीटर का सफर तय करने में 6 मिनट लगना थे। थोड़ी देर तक तो सफर अच्छा लगा टनल से गुजरती टे्रन में मजा आया परंतु पहाड़ों पर कम हरियाली और मौसम में शुष्क मिजाजी ने सफर के आनंद और रोमांच को कम कर दिया।
टे्रन की कछुआ चाल से उकताहट होने लगी। समय भारी और सफर नीरस-बोरियत भरा लगने लगा। जैसे-तैसे राम-राम करते शिमला आ ही गया। मौसम अनुकूल ना होने के कारण पर्यटक कम ही नजर आये। एक गलती और हो गयी शिमला में। होटल ऑन लाइन बुक कर दिया था। रूम तो साधारण थे पर होटल पाताल लोक में था जो गूगल मैप पर देखने में समझ नहीं आया। सीढिय़ों से नीचे उतरते-उतरते सबका उत्साह काफूर हो गया। हम उस घड़ी को कोस रहे थे कि सस्ते के चक्कर में कहाँ फंस गये। जैसे-तैसे तैयार होकर भगवान का नाम लेकर ऊपर सडक़ पर आये।
शिमला की बसाहट ही कुछ ऐसी है कि दड़बेनुमा सैकड़ों होटल इसी तरह पाताल और आकाश में उगे हुए हैं। ऊपर आकर माल रोड का पता पूछते-पूछते शिमला नगर पालिक निगम द्वारा संचालित लिफ्ट तक पहुँच ही गये जो वरिष्ठ नागरिकों को 10/- रुपये और अन्य को 20/- रुपये में नीचे से ऊपर माल रोड तक पहुँचाती है।
माल रोड का नजारा अद्भुत है ऐसा लगता है सिंगापुर में आ गये। ब्रांडेड वस्तुओं के शोरूम सजे हुए हैं मार्केट में हर तरह की चीज उपलब्ध है। थोड़ा-सा मालरोड का चक्कर लगाने के बाद और ऊपर ‘रीज’ चले गये जहाँ शान से भारतीय तिरंगा लहरा रहा था और सामने ही देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आदमकद प्रतिमा लगी हुयी है। शिमला आये सभी सैलानी यहाँ जरूर आते हैं और फोटो खिंचवाते हैं बाकी शिमला में और कुछ है नहीं। रात्रि के साढ़े नौ बजे मुख्य मार्ग पर एक ढाबे पर लजीज भोजन किया और होटल पहुँच कर सो गये।
सुबह अम्बाला से हमें उज्जैन आने के लिये मालवा एक्सप्रेस पकडऩी थी जिसका अम्बाला से चलने का समय शाम 5 बजे था। सुबह शिमला से निकलने और अंतर्रप्रांतीय बस स्टेशन तक पहुँचने में हमें 11 बज गये। शिमला से अम्बाला का किराया 300/- रुपये प्रति व्यक्ति है और लगभग साढ़े 4 घंटे का समय लगता है। दिन में करीब साढ़े तीन बजे हमारी बस अम्बाला पहुँच गयी जहाँ भोजन किया, सामने ही रेलवे स्टेशन है जहाँ से उज्जैन के लिये टे्रन पकड़ी जो उज्जैन तक आते-आते साढ़े सात घंटे लेट हो गयी। सुबह 11:15 पर आने वाली टे्रन शाम 6:30 पर आयी।
(समाप्त)