विद्यासागरजी के पहले शिष्य समयसागर जी होंगे संघ के अगले आचार्य

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विद्यासागरजी के पहले शिष्य समयसागर जी होंगे संघ के अगले आचार्य
उज्जैन, अग्निपथ। जैन 18 फरवरी को समाधि लेने वाले आचार्य विद्यासागर जी महाराज के बाद जैन संघ के नए आचार्य बनेगे समयसागर जी महाराज। समयसागर जी महाराज, आचार्य विद्यासागर जी के गृहस्थ जीवन के भाई और उनके पहले शिष्य हैं। उनकी वर्तमान आयु 65 वर्ष है।

खराब स्वास्थ्य के कारण 6 फरवरी को ही विद्यासागर जी महाराज ने समयसागर जी महाराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर आचार्य पद त्याग दिया था। आगामी 22 फरवरी को डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ में समयसागर जी का आचार्य पद पर पदारोहण होगा। इसके बाद संघ के सभी कार्य उनके निर्देशन में ही संचालित होंगे।

कर्नाटक में जन्मे, हायर सेकेंडरी तक की शिक्षा प्राप्त

समयसागर जी महाराज का जन्म 27 अक्टूबर 1958 को कर्नाटक के बेलगांव में हुआ था। जन्म के समय उनका नाम शांतिनाथ था। वह छह भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। उनके माता-पिता मल्लपा जैन और श्रीमंति जैन ने सभी बच्चों को धार्मिक वातावरण में पाला था। उनके बड़े भाई विद्याधर ने 22 साल की उम्र में दीक्षा ग्रहण कर विद्यासागर जी नाम से संन्यास लिया था। इसके बाद परिवार के अन्य सदस्यों ने भी क्रमशः दीक्षा ली। समयसागर जी महाराज ने हायर सेकेंडरी तक शिक्षा प्राप्त की।

17 साल की उम्र में लिया ब्रह्मचर्य व्रत

17 साल की उम्र में ही समयसागर जी महाराज के मन में भी बड़े भाई की तरह संन्यास लेने की इच्छा जाग गई और उन्होंने 2 मई 1975 को ब्रह्मचर्य व्रत लिया। उसी साल दिसंबर में उन्होंने मध्य प्रदेश के दतिया जिले के सोनागिरी क्षेत्र में क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। क्षुल्लक का अर्थ होता है छोटी दीक्षा, जो जैन समाज में संतों की प्रथम श्रेणी है। इसके बाद उन्होंने 31 अक्टूबर 1978 को ऐलक दीक्षा ली।

क्षुल्लक दीक्षा के पाँच वर्ष बाद 8 मार्च 1980 को मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के द्रोणगिरी में उन्होंने मुनि दीक्षा ग्रहण की। उनके दीक्षा गुरु कोई और नहीं, उनके गृहस्थ जीवन के बड़े भाई आचार्य विद्यासागर जी ही थे। वे विद्यासागर जी के पहले शिष्य भी बने। यहीं से उनकी मुनि जीवन की शुरुआत हुई और उन्होंने तपस्या के कठोर नियमों को अपनाया।

अध्ययन और अध्यापन दोनों में निपुण

आचार्य समयसागर जी महाराज ने जैन संघ के मुनियों और समाज को जैन पंथ, ग्रंथ और विचारधारा से अवगत कराने की जिम्मेदारी ली। वे नए मुनियों और दीक्षार्थियों के शिक्षक बने। जैन पंथ और ग्रंथों के अध्ययन के क्षेत्र में उन्हें सर्वश्रेष्ठ गुरुओं में गिना जाता है। वह नियमित रूप से मुनियों को पढ़ाते हैं और स्वयं भी अध्ययन करते रहते हैं।

समयसागर जी को ही क्यों चुना उत्तराधिकारी

आचार्य विद्यासागर जी ने 6 फरवरी को ही समयसागर जी को आचार्य घोषित कर दिया था। वह उनके प्रथम शिष्य थे और विद्यासागर जी के बाद सबसे वरिष्ठ भी हैं। परंपरागत रूप से प्रत्येक आचार्य अपने प्रथम शिष्य को ही अपना उत्तराधिकारी बनाता है। इसी कारण विद्यासागर जी महाराज ने अपने प्रथम शिष्य समयसागर जी को अपना पद सौंपा है।

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