सम्राट विक्रमादित्य का योगदान राजस्थान के दूरस्थ अंचलों तक रहा, जिस पर व्यापक शोध होगा-मेघवाल
उज्जैन, अग्निपथ। महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ, स्वराज संस्थान संचालनालय, मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित विक्रमोत्सव 2024 के अंतर्गत विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा संयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के मुख्य आतिथ्य एवं केंद्रीय कानून, न्याय एवं संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई।
विशिष्ट अतिथि कौशल विकास और रोजगार मंत्री श्री गौतम टेटवाल, विधायक अनिल जैन कालूहेड़ा एवं महापौर मुकेश टटवाल थे। दो मार्च को मध्याह्न में स्वर्ण जयंती सभागार विक्रम विश्वविद्यालय में सम्राट विक्रमादित्य की न्याय व्यवस्था और बेतालभट्ट लोकाख्यानों के आलोक पर केंद्रित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के तकनीकी सत्र में देश के प्रतिष्ठित विद्वानों ने व्याख्यान दिये।
मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने अपने ओजस्वी उद्बोधन में कहा कि भारत के स्वाभिमान को प्रतिष्ठित करते हुए विक्रमादित्य की न्याय दृष्टि का जन जन में व्यापक प्रसार आवश्यक है। विक्रमादित्य ने उत्कृष्ट न्याय, प्रशासन और जनकल्याण का जो उदाहरण स्थापित किया है, उसकी चर्चा देश-दुनिया के विभिन्न लोक अंचलों में प्राप्त होती है। उनसे जुड़े हुए लोक साहित्य और पुरातात्विक सामग्री के अध्ययन से शोध की नई दिशाएं उद्घाटित हो रही हैं। विक्रमोत्सव आज संपूर्ण दुनिया में विविधमुखी संकल्पनाओं के कारण अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित करने वाला उत्सव बन गया है।
अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय कानून न्याय, संस्कृति एवं संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के अपने उद्बोधन में कहा कि सम्राट विक्रमादित्य का अवदान राजस्थान के दूरस्थ अंचलों तक रहा है, जिस पर व्यापक शोध होगा। राजस्थान में विक्रमादित्य के शौर्य एवं पराक्रम के महत्वपूर्ण प्रमाण प्राप्त हुए हैं, जिनका अध्ययन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया गया है।
इस अवसर पर लोकाख्यानों के आलोक में विक्रमादित्य पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी के तकनीकी सत्र की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने की। मुख्य वक्ता वरिष्ठ इतिहासविद पद्मश्री डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित, कार्यपरिषद सदस्य राजेशसिंह कुशवाह, श्री संजय नाहर, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, मुद्राशास्त्र के विशेषज्ञ डॉ आरसी ठाकुर, डॉ.प्रशांत पुराणिक, डॉ राकेश ढंड, डॉ. मीरा जैन, डॉ रमण सोलंकी आदि ने विषय के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला।
वक्ताओं ने विभिन्न लोकांचलों की अनुश्रुतियों और आख्यानों में उपलब्ध विक्रमादित्य के सन्दर्भों और पुरा सामग्री पर प्रकाश डालते हुए भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता जताई। विक्रमादित्य और लोक का गहरा संबंध है जिस पर व्यापक शोध की जरूरत है। संगोष्ठी का बीज व्याख्यान समन्वयक कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने दिया।
प्रथम तकनीकी सत्र का संचालन ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन विक्रमादित्य शोध पीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी एवं कुलसचिव डॉ अनिल कुमार शर्मा ने किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रबुद्धजनों, गणमान्य नागरिकों, शिक्षकों, कर्मचारियों और विद्यार्थियों ने भाग लिया।