हरिओम राय
महाकालेश्वर मंदिर में भस्मारती दर्शन में रुपयों का खेल तब से शुरू हुआ है जब से पाबंदियां बढ़ी है। सभी जानते हैं कि नियमानुसार घंटो कतार में खड़े रहकर कोई भी बाहरी दर्शनार्थी भस्मारती अनुमति करा ही नहीं सकता। नियम कायदे इतने हो गये हैं कि उनका पालन कर अनुमति कराने में ही एक-दो दिन लग जाये। दूसरी व्यवस्था ऑनलाइन अनुमति की है वो भी तुरंत संभव नहीं है। ऐसे में दर्शनार्थी को दर्शन का व्यापार दलालों की शरण में जाना ही पड़ता है।
इन दलालों को सुविधा देते हैं मंदिर के ही कर्मचारी। यह दलाल ऑटो रिक्शा चालक, फूल प्रसादी वाला, पंडे-पुजारी के सहायक या वो लोग हैं जो बिना कारण ही मंदिर परिसर में घूमते हैं। दलालों के जरिए सौदा तय होता है इसके बाद ही मंदिर समिति से जुड़े कर्मचारियों की भूमिका शुरू होती है और वे लोग अपना मोटा हिस्सा लेकर अनुमति जारी करने में मदद करवाते हैं।
इसके लिए भस्मारती अनुमति जारी करने वाले सैक्शन ने कुछ ऐसे मीडियाकर्मियों और पंडे-पुजारी के सहायकों को संरक्षण दे रखा है जो इनके पास दर्शन अनुमति के आसामी लाते हैं। ये लोग शाम चार-पांच बजे तक भी नियमानुसार अनुमति लाने का दावा करते हैं। इसके बाद जब लिस्ट तय हो जाती है तो रात की यूनिट का खेल शुरू होता है।
भस्मारती के प्रवेश गेट पर तैनात कर्मचारी दलालों के द्वारा लाये गये भक्तों को बिना किसी प्रवेश पत्र या आईडी चैक किये ही तुरंत अंदर प्रवेश देते हैं। सिर्फ दलाल का इशारा काफी है। जबकि अनुमति लेकर गये दर्शनार्थी के तमाम कागजात चैक किये जाते हैं और अनुमति पत्र का बार कोड चैक किया जाता है।
अभी तक सामने आये मामलों में मंदिर समिति ने सिर्फ रुपए लेते पकड़े गये व्यक्ति पर ही कार्रवाई की अनुशंसा कर मामले की इतिश्री की है। लेकिन अनुमति बनाने या प्रवेश कराने में सहायता करने वाले मंदिर समिति के कर्मचारी पर कभी कार्रवाई नहीं की।
रुपये लेने वाला दलाल होता है जिस पर मंदिर में प्रवेश प्रतिबंध का कोई असर नहीं होता। वो बाहर से ही अपना काम करता रहता है। पहले भी जो लोग मंदिर से प्रतिबंधित हुए हैं, वे आज भी मंदिर में घूमते देखे जा सकते हैं। अगर मंदिर प्रशासन बाकई इस खेल को रोकना चाहता है तो पहले घर के भेदी को तलाशें और कड़ी कार्रवाई करें।