अर्जुन सिंह चंदेल
अबकी बार 400 पार के नारे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की लोकप्रियता के भरोसे बैठे भारतीय जनता पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी और कार्यकर्ता आकंठ अति आत्मविश्वास में डूबे हैं। वहीं दूसरी और हताश में डूबे काँग्रेस के उम्मीदवार और कार्यकर्ता जैसे-तैसे मतदान की तिथि का इंतजार कर रहे हैं। अजीबोगरीब सी स्थिति है इस बार के लोकसभा आम चुनावों की। उत्साहहीन मतदाता खामोश है।
मध्यप्रदेश के पहले चरण के हुए मतदान प्रतिशत में कमी इस बात का समर्थन करती है। वर्ष 2019 के हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी प्रदेश की 29 सीटों में से 28 पर विजय पताका फहराने में सफल रही थी वहीं काँग्रेस मात्र एक सीट ही प्राप्त कर सकी थी। मतदाता की नब्ज कुरेदने पर ज्यादा सफलता तो नहीं मिल पायी पर इतना निष्कर्ष आसानी से मिल सका कि नरेन्द्र मोदी जी का जादू अभी भी उसके सर पर काबिज है।
लोकप्रियता का जादू काबिज तो हैं परंतु उस जादू में 2019 की तुलना में वृद्धि ना होकर स्थिर होना भारतीय जनता पार्टी के लिये भविष्य में चिंता का विषय बन सकता है। वैसे भी पहाड़ की चोटी फतेह करने के बाद उस पर टिके रहना ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है। शायद मोदी जी भी लोकप्रियता का चरमोत्कर्ष प्राप्त कर चुके हैं। चरमोत्कर्ष के पश्चात ढलान ही चालू होती है।
खैर, 2024 के चुनाव में हमारे प्रदेश में तो भारतीय जनता पार्टी बहुत ज्यादा नुकसान में नहीं रहेगी। सत्तारूढ़ भाजपा के पास पाने का तो विकल्प ही नहीं है क्योंकि 28 से 29 होना असंभव है यदि ऐसा चमत्कार खुदा ना खास्ता हो गया तो फिर भारत में अबकी बार 400 पार का नारा सही होता दिख सकता है।
काँग्रेस के पास उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों में मध्यप्रदेश की तरह खोने के लिये कुछ नहीं है उसे भले एक की जगह दो ही सीट क्यों न मिले वह फायदे में ही कहलायेगी नुकसान में नहीं। कम मतदान प्रतिशत से हताशा और निराश में डूबे काँग्रेसियों को भी अपने चेहरों पर चमक लाना जायज दिखता है।
काँग्रेस तो वैसे भी ‘करो या मरो’ की स्थिति में है इसी कारण उसने प्रत्याशी चयन में सावधानी रखते हुए पूरे प्रदेश में अपने सर्वश्रेष्ठ प्रत्याशी रण में उतार दिये हैं। उदाहरण के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह जो कि वर्तमान में राज्यसभा सांसद है उन्हें भी चुनावी समर में उतार दिया है जिनकी जीत की संभावनाएं प्रबल है।
काँग्रेस ऐसी विपरीत परिस्थितियों में मध्यप्रदेश से तीन या चार सीटें भी भाजपा से छीन लेती है तो उसे अपनी इस छोटी किंतु महत्वपूर्ण जीत पर इतराने का पूरा अधिकार है। भारतीय जनता पार्टी को अपनी साख बचाने के लिये चुनाव लडऩा है। मोदी जी के भरोसे बैठे पार्टी कार्यकर्ताओं में वह जोश खरोश दिखायी नहीं दे रहा है जैसा कि हर चुनावों में दिखायी देता था।
खैर, आत्मविश्वास होना जायज है परंतु अति आत्मविश्वास नुकसानदायक होता है। उज्जैन में भाजपा और काँग्रेस के बीच लड़ायी हार-जीत की ना होकर विजयी मतों के अंतर को कम-ज्यादा करने की दिखायी दे रही है। मुख्यमंत्री माननीय मोहन यादव जी का गृहनगर होने के कारण पूरे प्रदेश की निगाहें उज्जैन लोकसभा सीट के चुनाव परिणामों पर है।
वर्तमान सांसद अनिल फिरोजिया पिछले बार से अधिक मतों से विजयश्री प्राप्त करना चाह रहे हैं तो काँग्रेस पार्टी में लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचे विधायक महेश परमार अपनी मिलनसारिता और जुझारू प्रवृत्ति के दम पर गत चुनावों की तुलना में हार के अंतर को कम करना चाह रहे हैं।