प्रत्याशियों के चेहरे भी लगातार बदलते रहे, जनसंघ से लेकर भाजपा और कांग्रेस में रहा है अब तक बराबरी का आंकड़ा
धार, अग्निपथ। लोकसभा चुनाव में मतदान के लिए अब चार दिन शेष रह गए है वही दोनों पार्टी के प्रत्याशी चुनाव प्रचार में जी जान से लगे हुए है। दोनों ही पार्टी अपने अपने प्रयाशीयो को जीतने के होड़ में लगे हुई है। बता देकि धार लोकसभा सीट का इतिहास भी पुराना है यह सीट अपने आप मे अलग पेट रखने वाली सीट है।
मध्य प्रदेश की धार लोकसभा सीट 1962 में गठन के बाद से कांग्रेस और भाजपा के बीच सत्ता संघर्ष का केंद्र रही है.पहले चार चुनावों में, भारतीय जनसंघ ने धार पर अपना दबदबा बनाया. 1980 से 1991 तक, कांग्रेस ने लगातार चार चुनाव जीते. 1996 में भाजपा ने वापसी की, लेकिन 1998 और 1999 में कांग्रेस ने फिर से जीत हासिल की 2004 में, भाजपा ने धार पर अपना कब्जा जमा लिया, लेकिन 2009 में कांग्रेस ने फिर से जीत हासिल की 2014 और 2019 में, भाजपा ने लगातार दो बार जीत हासिल करते हुए अपनी पकड़ मजबूत कर ली। इस सीट पर आदिवासी मतदाताओं की संख्या अधिक होने के कारण चुनावों में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
जनसंघ का गढ़ और सियासी उलटफेर का इतिहास
धार, मध्य प्रदेश की एक महत्वपूर्ण लोकसभा सीट है, जो अपनी राजनीतिक उथल-पुथल के लिए प्रसिद्ध है. यह क्षेत्र जनसंघ के संस्थापक सदस्य, स्व. कुशाभाऊ ठाकरे की जन्म और शिक्षास्थली रहा है. 1967 में,धार केमतदाताओं ने कांग्रेस नेता जमुना देवी को हराकर भारतीय जनसंघ के भारत सिंह को जीत दिलाई। यह घटना उस समय राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बनी थी. जमुना देवी 1962 से 1967 तक रतलाम-झाबुआ संसदीय क्षेत्र की सांसद रह चुकी थीं, और धार में कांग्रेस की जड़ें गहरी थीं।
काका-भतीजा का चुनावी मुकाबला और नारों की जंग
1971 के धार लोकसभा चुनाव में, भारत सिंह और फतेह सिंह, जो सगे काका-भतीजा थे, एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे थे. यह चुनाव न केवल अपने राजनीतिक महत्व के लिए, बल्कि चुनावी नारों के लिए भी यादगार रहा। भारतीय जनसंघ के समर्थक “फत्तू (फतेह सिंह) ढोल बजाएगा, भारत दिल्ली जाएगा” का नारा लगाते थे, जो फतेह सिंह को कमजोर और अनुभवहीन दर्शाता था. वहीं, कांग्रेस समर्थकों का नारा था “भारत ढोल बजाएगा, फत्तू दिल्ली जाएगा”, जो भारत सिंह की अनुभवी और मजबूत छवि को उभारता था। यह चुनावी मुकाबला काफी रोमांचक रहा और अंत में भारत सिंह ने जीत हासिल की।
धार: इतिहास, भूगोल और संस्कृति का संगम:
धार लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र मध्य प्रदेश का महत्वपूर्ण संसदीय क्षेत्र है. इस प्राचीन शहर परमार राजा भोज ने बसाया था. बेरन पहाडिय़ों से घिरे इस इस क्षेत्र को झीलों और हरे-भरे वृक्षों ने खूबसूरत बना रखा है. यहां अनेक हिन्दू और मुस्लिम स्मारक आज भी मौजूद हैं। एक जमाने में मालवा की राजधानी रहे इस क्षेत्र में धार किला और भोजशाला मंदिर यहां के पर्यटन का प्रमुख केंद्र है। मालवा क्षेत्र में आने वाला यह शहर विंध्यांचल पहाडिय़ों और नर्मदा घाटी से घिरा है. बाग नदी के किनारे स्थित गुफाएं ऐतिहासिक हैं।
यहां पर 5वीं और 6वीं शताब्दी की चित्रकला है. यहां की बौद्धकला भारत ही नहीं एशिया में भी प्रसिद्ध है इसका इतिहास हजारों वर्षों से जुड़ा हुआ है. धार तीन भौगोलिक खंडों में फैला हुआ है: उत्तर में मालवा, मध्य में विंध्यांचल रेंज और दक्षिण में नर्मदा घाटी. यह जिला भारत के सांस्कृतिक मानचित्र में प्रारंभ से ही रहा है. यहां के कई ख्यातिनाम कलाकार ललित कला, चित्रकारी, नक्काशी, संगीत और नृत्य की विधा में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं।
परिसीमन के बाद क्या बदलाव हुआ
2009 में परिसीमन के बाद इस लोकसभा सीट में कुछ बदलाव हुआ. बड़वानी अलग जिला बनने से यह क्षेत्र खरगोन लोकसभा सीट में जुड़ गया. जबकि धार सीट में इंदौर की महू तहसील को जोड़ लिया गया। अब तक जनसंघ के प्रत्याशी 4, कांग्रेस 7 और भाजपा के प्रत्याशी 4 बार जीते हैं। इसमें रोचक यह रहा कि चार बार के सांसद रहे काका को भतीजे ने हराया तो बुआ-भतीजे को मिली हार के बाद वे दोबारा मैदान में नहीं उतरे।
वहीं जिन प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की उनकी पत्नी व बेटे को भी जनता ने पसंद नहीं किया। सबसे अधिक मतों से 1984 में चुनाव जीतने का रिकॉर्ड प्रतापसिंह बघेल के नाम दर्ज है। इस साल भाजपा से सावित्री ठाकुर पुराना चेहरा है तो कांग्रेस से राधेश्याम मुवेल नया चेहरा बनकर जनता के बीच पहुंचे है।
तीन बार महिलाओ को मौका
राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की बात प्रमुख राजनीतिक दल करते हैं, लेकिन आम चुनाव में महिलाओं को टिकट देने में पार्टियां हमेशा ही संकोच करती है खासकर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में, जहां कई महिलाएं राजनीति के मैदान में उतरकर अपनी छाप छोड़ चुकी है। बावजूद इसके अभी तक हुए 17 वी लोकसभा चुनाव में महज तीन बार ही महिलाओं को टिकट मिला है राजनीतिक दलों ने महिलाओं पर भरोसा कम दिखाया है।
कांग्रेस के टिकट पर अभी तक एकमात्र चुनाव स्व. जमुनादेवी ने लड़ा था, जिन्हें अपने पहले ही चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद पार्टी ने किसी दूसरी महिला को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया। वहीं भाजपा ने मौजूदा सांसद छतरसिंह दरबार की पत्नी हेमलता दरबार (1998) और सावित्री ठाकुर (2014) को दूसरी बार यानी 2024 में भी पार्टी प्रत्याशी घोषित किया है। सावित्री ठाकुर अपना पहला चुनाव जीत चुकी है, वहीं हेमलता को चुनाव में कांग्रेस के गजेंद्रसिंह राजूखेड़ी से शिकस्त मिली थी
कौन कितनी बार बना सांसद
1-भारतसिंह चौहान (चार बार भारतीय जनसंघ)
2-फतेह भानुस्सिंह (एक बार कहीस)
3-प्रतापसिंह बरेल (एक बार काग्रेस)
4-सूरज भानु सोलंकी (दो बार कांग्रेस)
5-छतरसिंह दरबार (तीन बार भाजपा)
6-गजेंद्रसिंह राजूखेड़ी (तीन बार काग्रेस
7- सावित्री ठाकुर एक बार भाजपा (अब फिर प्रत्याशी)
2009 में जीत का अंतर 0.4%
2009 में कांग्रेस के राजूखेड़ी को 46.21% व भाजपा के मुकामसिंह किराड़े को 45.81त्न बोट मिले थे, यानि जीत का अंतर 0.4% था। 2014 में भाजपा की सावित्री ने कांग्रेस के उमंग को 9.68 % वोट तो 2019 के चुनाव में दरबार ने काग्रेस के दिनेश गिरवाल से 11.61% वोट से जीत दर्ज की। वही 2024 की जनगणना में 16 लाख 70 हजार वोटर है। पुरुषों की सख्या 8 लाख 35 हजार है तो महिलाओ की 8 लाख 34 हजार है। व 1879 पोलिंग बूथ है।