प्रशासन के दावों की हकीकत कुछ और ही
धार, अग्निपथ। पलायन और उससे उपजी स्वास्थ्य सेवाओं की समस्या का एक ज्वलंत उदाहरण सामने आया है। सरदारपुर विकासखंड के ग्राम सुल्तानपुर के नीम फलिया की एक महिला ने बेटे की चाह में छह बेटियों को जन्म दे दिया। आमतौर पर गर्भवती माता की जानकारी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से लेकर स्वास्थ्य विभाग को रहती है। लेकिन यहां से गर्भवती महिला पलायन कर गुजरात चली गई और जब गुजरात से यहां लौटी तो मालूम हुआ कि उसके गर्भधारण करने से लेकर नौ माह तक कोई भी जानकारी विभाग के पास नहीं है।
ऐसे में उसकी जिंदगी खतरे में पड़ गई। गनीमत रही कि जिला अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञों की टीम ने विषम परिस्थिति में महिला को मौत के मुंह से खींचकर उसकी जिंदगी बचाई। लेकिन सिस्टम की एक बड़ी लापरवाही इसमें सामने आई है।
सरदारपुर विकासखंड के सुल्तानपुर के नीम फलिया की रुखमा पत्नी मनोज दीपावली पर्व मना कर अपने पति के साथ गुजरात चली गई थी। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग को महिला के गर्भवती होने की जानकारी नहीं दी गई। जब गुजरात में उचित उपचार नहीं हुआ तो होली के बाद मनोज पत्नी को लेकर अपने गांव पहुंचा। परंतु इसके बाद भी प्रसूता को जांच के लिए जिला अस्पताल नहीं लाया गया।
बुधवार को प्रसव पीड़ा बढऩे के साथ जब प्रसूता की जान पर बन आई तो ताबड़तोड़ स्वजन प्रसूता को जिला अस्पताल लेकर पहुंचे। जहां स्त्री रोग विशेषज्ञ छह डाक्टरों की टीम ने मिलकर प्रसूता की जान बचाई। फिलहाल महिला व शिशु दोनों स्वस्थ है।
ब्लड ग्रुप की नहीं थी जानकारी
स्वजन प्रसूता को जिला अस्पताल लेकर आ गए परंतु पूरे नौ माह तक प्रसूता की कोई जांच नहीं होने के चलते डाक्टरों को प्रसूता के ब्लड ग्रुप की जानकारी नहीं थी। वहीं प्रसूता की स्थिति काफी गंभीर थी। तुरंत ही स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र अगलेचा व डॉ. नंदिता निगम ने पूरी टीम के साथ प्रसूता का उपचार शुरू किया। हीमोग्लोबिन का पता नहीं होने के चलते पहले सैंपल लिया। वहीं नार्मल प्रसूति शुरू की जैसे ही महिला ने शिशु को जन्म दिया इसके बाद बेहोशी की स्थिति में पहुंच गई।
45 मिनट बाद आया होश
स्त्री रोग सीनियर डॉ ननिता निगम व विशेषज्ञ डा राजेंद्र अगलेचा ने बताया कि हमारे लिए यह केस गंभीर था। प्रसूता के अस्पताल आते ही 15 मिनट में उसका उपचार शुरू कर दिया। प्रसूता की पल्स कम होने के साथ ही आक्सीजन लेवल कम हो गया था। वहीं हीमोग्लोबीन चार ग्राम था। इस तरह के केस में प्रसूता की मौत हो जाती है। हमारी टीम के सामने प्रसूता की जान बचना बड़ा टास्क था। हीमोग्लोबीन काफी कम होने के चलते 10 मिनट में हमने ए पाजिटिव ब्लड की व्यवस्था की।
इसमें प्रेशर से महिला को ब्लड चढ़ाया करीब 45 मिनट तक उपचार देने के बाद प्रसूता होश में आई। तीन घंटे के अंतराल में तीन बोतल ब्लड चढ़ाया गया। इसके बाद पूरे दिन टीम ने प्रसूता पर विशेष नजर रखी अब मां व बेटा पूरी तरह स्वस्थ्य है। प्रस्तुति के दौरान डा वर्षा सोलंकी, डा शर्मिला पाटीदार, सिविल सर्जन डा साजी जोसेफ, ब्लड बैंकिंग इंचार्ज डा अनिल वर्मा मौजूद थे।
बेटे के मोह में जीवन खतरे में
अंचल में आज भी बेटियों की तुलना में बेटे को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। बेटे का मोह कुछ इस तरह सवार हो रहा है की महिलाओं की जिंदगी को खतरे में डाला जा रहा है। जबकि प्रशासन द्वारा जागरूकता के बड़े दावे किए जा रहे हैं पर उनकी हकीकत कुछ और ही बया कर रही है। आज भी अंचल में जागरूकता का अभाव है। नीम फलिया में रुखमा के स्वजनों को बेटे का मोह ऐसा सर पर चढ़ा की रूखमा के जीवन को ही खतरे में डाल दिया। पति मनोज ने बताया कि 14 साल पहले शादी हुई थी। शादी के बाद रूखमा 24 अप्रैल 2013 को पहली बेटी का जन्म दिया। परंतु स्वजनों को बेटा का मोह था।
इसके बाद 11 साल के अंतराल में रूखमा छह बार गर्भवती हो गई। इसमें रूखमा ने छह बेटियों को जन्म दिया। इसमें एक बेटी के जन्म के बाद ही बेटी की मौत गई। वहीं बुधवार को रूखमा की सातवी बार प्रसूती हुई। इसमें बेटे का जन्म हुआ। बेटे के जन्म से परिवार के सदस्यों का बेटे का मोह तो पूरा हो गया परंतु रूखमा जिंदगी खतरे में आ गई। गनीमत रही जिला अस्पताल के डाक्टरों की टीम रूखमा को मौत के मुंह से खींच लाई।