मोक्षदायिनी का शुद्घिकरण न होने से वैष्णव अखाड़ों के साधु-संत नाराज
उज्जैन, अग्निपथ। मोक्षदायिनी शिप्रा का शुद्धिकरण नहीं होने पर वैष्णव अखाड़ों के साधु संत नाराज हैं। उन्होंने शिप्रा नदी में मिल रहे खान नदी के दूषित पानी और शहर के गंदे नालों के पानी पर आपत्ति जताते हुए शीघ्र राज्य सरकार और जिला प्रशासन से कार्रवाई करने को कहा है। उन्होंने कार्रवाई नहीं किए जाने पर आंदोलन की धमकी दी है। साथ ही मठ मंदिर की जमीनों पर किए जा रहे कब्जे पर भी आपत्ति जताई।
अंकपात स्थित राम मंदिर निर्माण समिति अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास के आश्रम हनुमंत वाटिका में शुक्रवार को वैष्णव साधु संत मीडिया से रूबरू हुए। महंत रामेश्वरदास ने आक्रोश जताते हुए कहा कि उज्जैन में सोमवती, शनिश्चरी और अलग-अलग पर्वों पर शिप्रा में स्नान होता है।
खान नदी का दूषित पानी इंदौर से होता हुआ शिप्रा के त्रिवेणी स्थान पर मिलता है। 2004 के सिंहस्थ से पूर्व शासन प्रशासन के प्रतिनिधियों को इस बारे में बताया था। त्रिवेणी से कालियादेह तक खुली नहर बनाकर दूषित पानी को बाहर निकालने को कहा गया था। केवल 13 किमी की खुली नजर बनाई जाना थी। इसको लेकर काम तो हुआ, लेकिन इसको खुली की जगह पाइप डाल दिए गए, जिसके चलते गंदा पानी शहर से बाहर नहीं निकल पाया। इसमें 90 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए।
13 किमी खुली नहर बनाकर गंदा पानी बाहर करें
महंत रामेश्वरदास ने कहा कि शिप्रा का महत्व गंगा से भी ज्यादा है। गंगा को पाप धोने के लिए शिप्रा में आना पड़ा था। नीलगंगा स्थान पर गंगा नदी का पाप धोया गया था। शिप्रा नदी मोक्षदायिनी है तो गंगा नदी पापनाशिनी है। उन्होंने राज्य और जिला प्रशासन से मांग करते हुए 13 किमी की खुली नहर बनाने की मांग की है। साथ ही शहर के कवेलू कारखाने से शिप्रा में मिल रहे गंदे नालों और देवास की नागदाह जगह मिल रहे कारखानों के दूषित पानी को शिप्रा में नहीं मिलने देने के लिए उज्जैन कमिश्नर से कार्रवाई करने को कहा है। इसके लिए तालाब बनाकर गंदे पानी को संग्रहित कर सिंचाई करने की बात भी कही।
इस अवसर पर महंत रामेश्वरदास, दिग्विजयदास, मुनिशरणदास, रामचंदरदास, काशीदास, महामंडलेश्वर ज्ञानदास, हनुमत वाटिका के महंत राघवेन्द्रदास, स्थिर मन गणेश मंदिर के महंत राघवेन्द्रदास सहित अन्य साधु संत उपस्थित थे।
घाटों पर ट्यूबवेल लगाकर शिप्रा में छोडेें
उन्होंने कहा कि शिप्रा का जलस्तर बढ़ाने के लिए त्रिवेणी, गऊघाट, नृसिंह धाट और रामघाट पर दो-दो ट्यूबवेल लगाने चाहिएं। इनको चलाकर निरंतर पानी शिप्रा में छोड़ा जाना चाहिए। नर्मदा का पानी शिप्रा में लाने के लिए भारीभरकम खर्च आता है। शिप्रा को शुद्ध रखना है तो यह सब प्रक्रिया अपनाई जाना चाहिएं। उन्होंने उक्त मांगें नहीं माने जाने पर आंदोलन की चेतावनी दी है।