उज्जैन में भी हुई टीबी के दवाइयों की कमी महीने की जगह हफ्तेभर का दे रहे डोज

जिले में 1500 टीबी के मरीज, सोमवार को फिर से मंगाई जायेगी दवाई

उज्जैन, अग्निपथ। केंद्र सरकार से पिछले तीन माह से टीबी की दवाओं की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। बताया गया कि कंपनियों के पास दवाएं बनाने के लिए कच्चा माल उपलब्ध नहीं हैं, जिसके चलते यह समस्या आ रही है। इसके कारण उज्जैन में भी टीबी की दवाहयों की कमी हो गई है। हालांकि अस्पताल प्रबंधन ने डोज कम कर इस पर काबू तो पा लिया, लेकिन अब फिर से दवाइयों के लिये भोपाल की ओर मुंह देखना पड़ेगा।

उज्जैन सहित प्रदेश के लगभग 70 हजार टीबी रोगियों पर दवाओं का असर कम होने से ड्रग रजिस्टेंट होने का खतरा बढ़ गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के नेशनल टीबी डिवीजन से टीवी की दवाओं की आपूर्ति पिछले तीन माह से नहीं हो रही है। बताया जा रहा है कि यह दवाएं मात्र तीन कंपनियां ही बनाती हैं लेकिन उनके पास कच्चा माल दवाएं बनाने का पाउडर उपलब्ध नहीं होने के कारण दवाएं नहीं बन पा रही हैं।

पिछले वर्ष सितंबर से ही दवाओं की कमी हो रही थी, पर इस वर्ष फरवरी से पुराना स्टॉक खत्म होने के कारण उज्जैन सहित मध्य प्रदेश और देशभर में दवाइयों की कमी और बढ़ गई है। हालांकि उज्जैन में दवाहयों की कमी अलग ही तोड़ ढूंढ लिया गया। टीबी के मरीज को पूरे महीने की गोलियां सेवन के लिये दी जाती हैं। लेकिन मरीज को पूरे महीने की जगह हफ्तेभर का डोज दिया गया, जिसके चलते दवाइयों की कमी नहीं हो पाई। हालांकि आज सोमवार को फिर से भोपाल से दवाइयां मंगाई जायेंगी।

फिर से शुरू की दवाइयां बनाना

अब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्य सरकारों के दवाव के बाद कंपनियों ने दवाएं बनाना फिर से शुरू की है, पर यह जरूरत का 10 प्रतिशत भी नहीं हैं। प्रदेश में बच्चों के लिए उपयोग होने वाली टीबी की दवाओं को मात्रा बढ़ाकर बड़ों को दी जा रही है, वह भी मात्र एक-एक सप्ताह के लिए। फिक्स डोज कॉबिनेशन (एफडीसी) तीन और चार दवाओं की आपूर्ति नहीं हो रही है।

यह टीबी की प्रारंभिक दवाएं हैं जो कुल रोगियों में लगभग 92 प्रतिशत को दी जाती है। बाकी 8 प्रतिशत टीबी रोगियों के लगभग 7 प्रतिशत मल्टी इगोसिस्टेंट (एमडीआर) और एक प्रतिशत के आसपास एक्सट्रीम ड्रग रेजिस्टेंट (एक्सडीआर) वाले होते हैं। इन्हें एफडीसी 3 और एफडीसी-4 के स्थान पर दूसरी दवाएँ दी जाती हैं।

केंद्र से आपूर्ति नहीं होने पर मध्य प्रदेश पब्लिक हेल्थ सप्लाई कॉरपोरेशन ने भी दवाओं की आपूर्ति के लिए कंपनियों से दर अनुबंध किया। इसमें भी उन्हीं कंपनियों ने भाग लिया जो केंद्र को दवाएं आपूर्ति करती हैं, पर उत्पादन कम होने के कारण अभी तक आपूर्ति नहीं की। कंपनियों ने कहा है कि पहले केंद्र सरकार को आपूर्ति की जाएगी।

एमडीआर में बदलने का खतरा

चिकित्सकों के अनुसार टीबी के मरीजों को शुरू से एफडीसी-4 या एफडीसी-3 दवा दी जाती है। एफडीसी-चार में आइसोनियाजिड, रिफैम्पिसिन, एथमब्यूटील और पाइराजिनामाइड दवाएँ मिश्रित रहती हैं। एफडीसी-3 में आइसोनियाजिड, रिफैम्पिसिन, एथमब्यूटोल का मिश्रण (काँबिनेशन) दिया जाता है।

शुरू के छह माह तक लगातार यह दवाएँ चलती हैं। इसमें एक दिन का भी अंतर होने पर मरीज की बीमारी एमडीआर में बदलने का खतरा रहता है। एमडीआर टीबी को ठीक करने के लिए फिर उसे लंबे समय तक 7 दवाओं के मिश्रण वाली दवा दी जाती है।

इनका कहना

दवाइयो की कमी को किसी तरह से मैनेज कर लिया गया। सोमवार को फिर से भोपाल से दवाइयों का स्टॉक मंगवाया जायेगा। – रेनुका मरमट, जिला क्षय अधिकारी उज्जैन

Next Post

गंभीर डेम में 1 महीने 22 दिन का पानी शेष

Sun May 19 , 2024
सोमवार तक 439 एमसीएफटी  डेड स्टोरेज का 50 एमसीएफटी पानी कम करें तो 390 एमसीएफटी पानी बाकी बचेगा, जो कि 1 महीने 22 दिन चलेगा उज्जैन, अग्निपथ। गंभीर डेम में तेजी से जल स्तर काम होता जा रहा है। अगर समय पर बारिश नहीं हुई तो शहर में जल संकट […]