अर्जुन सिंह चंदेल
वर्ष 2023 से प्रारंभ हुआ केडी गेट से इमली तिराहे तक के मार्ग का चौड़ीकरण कार्य अंतिम सोपान पर है। बीते सप्ताह गुरुवार से इस मार्ग के चौड़ीकरण कार्य में बाधा बन रहे धार्मिक स्थलों को हटाने का कार्य शुरू किया गया था। उज्जैन के युवा, लगनशील, मेहनती, ऊर्जावान जिलाधीश ने अपनी पूरी कार्य क्षमता धार्मिक स्थलों को स्वेच्छा से हटाने की कार्ययोजना को मूर्तरूप देने में झोंक दी।
शहर के धार्मिक रसूखदार लोगों को चाहे वह शहर काजी हो या प्रभावित होने वाले मंदिरों के पुजारी सभी को विश्वास में लिया गया। असंभव जैसा दिखने वाला कार्य शांतिपूर्ण ढंग से काफी हद तक निपटा लिया गया। प्रशासन की सूझबूझ और नगर सरकार के अधिकारियों, कर्मचारियों ने जी तोड़ मेहनत करके मार्ग चौड़ीकरण में बाधा बन रहे 15 मंदिरों, 2 मस्जिदों और 1 मजार को अन्यत्र स्थानान्तरित कर दिया।
अपने राम नेपाल यात्रा पर थे। सोश्यल मीडिया के माध्यम से जब इस बात की जानकारी लगी तो अपना भी सीना चौड़ा होना स्वाभाविक था। हमारे शहर में पदस्थ प्रशासनिक एवं नगर सरकार के अधिकारियों ने मीडिया में खूब वाहवाही लूटी ‘साम्प्रदायिक सौहाद्र् की मिसाल बना उज्जैन’ आदि आदि शीर्षकों से तीन-चार दिन सुर्खियां चलती रही।
अपने राम का 25 मई को उज्जैन आगमन हो गया। सोचा चलो चलकर देखा जाए कि विक्रमादित्य की न्यायप्रिय नगरी में हमारे साहब बहादुरों ने भी न्याय किया है या नहीं? पूरे मार्ग से हिंदू मुस्लिम भाइयों के धार्मिक स्थल तो स्वेच्छा से हटा दिये गये परंतु मार्ग में दिगम्बर जैन समाज का धार्मिक स्थल अभी भी अडिग होकर प्रशासन की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा था। हमने आसपास के रहवासियों से पूछ लिया कि भाइयों विक्रमादित्य की नगरी में यह कैसा न्याय? दूसरे धर्म समुदायों के लोगों ने प्रशासन को सहयोग करके अच्छे संस्कारवान नागरिक होने का परिचय दिया तो फिर इसे क्यों बख्शा गया? क्या जिला प्रशासन के प्रयासों में कमी रही? क्या जैन बंधुओं को विश्वास में नहीं लिया गया? क्या प्रशासन की तरफ से कोई चूक हुई है? इस तरह के अनेकानेक प्रश्न अनुत्तरित थे।
नागरिकों ने बताया कि प्रशासन ने अनेक मर्तबा इस मंदिर की दीवारों को हटाने का प्रयास किया परंतु असफलता ही हाथ लगी है। कुछ अदृश्य शक्तियां प्रशासन के कार्य में हर बार बाधा बनकर खड़ी हो जाती है और टीम वापस लौट जाती है।
28 मई को भी ऐसे ही सीन की पुनरावृत्ति हुयी। जिलाधीश के निर्देश पर निगमायुक्त आशीष पाठक ने पूरी निगम की टीम को सुबह 7:30 बजे स्थल पर मय संसाधनों की तैनाती के आदेश दे दिये थे। पूरी निगम की टीम सुबह से ही मुस्तैदी के साथ मौजूद थी प्रशासनिक अधिकारी के आदेश के इंतजार में।
जिला प्रशासन के एक उच्च अधिकारी आये भी सही परंतु अपने ही समाज का मंदिर होने के कारण उसे पीछे हटाने का फरमान जारी नहीं कर पाये, नतीजतन पूरा दिन इंतजार करने के बाद निगम का अमला वापस लौट आया। हाँ इतना जरूर रहा कि प्रशासन के वह अधिकारी निगम और पुलिस अधिकारियों को इंदौर रोड स्थिति तपोभूमि का नमक जरूर भोजन के साथ प्रसाद के रूप में ग्रहण करवा लाये।
खैर वह अदृश्य ताकतें कौन हैं? राजनीति से या प्रशासन से यह तो पता चल ही जायेगा परंतु नागरिकों की तीखी प्रतिक्रिया आना शुरू हो गयी है। वह पूछ रहे हैं कि प्रशासन का यह कैसा न्याय? जब मंदिर-मस्जिद जनहित में पीछे हट गये हैं तो एक धर्म विशेष पर मेहरबानी क्यों? अब यदि एक दो दिन में ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो विरोध के स्वर मुखर होकर सडक़ों पर भी आ सकते हैं जो प्रशासनिक अधिकारियों की कड़ी मेहनत पर पानी तो फेरेंगे ही साथ ही भविष्य में चौड़े किये जाने वाले मार्गों में भी बाधा उत्पन्न करेंगे।