अर्जुन सिंह चंदेल
काफी लम्बे अर्से से मन में भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन और नेपाल यात्रा की इच्छा थी। साथ ही एक दर्जन से अधिक विदेश यात्राओं की माला में एक और मोती जोडऩे की। एक मित्र ने बीते दिनों इच्छा जाहिर की इस अपन राम को मनमाफिक मुराद मिल गयी। छह मित्रों की टोली तैयार की और यात्रा को सफल बनाने की कार्ययोजना पर काम चालू हो गया।
टीम के प्रत्येक सदस्य को अलग-अलग जवाबदारी दे दी गयी। एक साथी को परिवहन का, एक को होटल बुकिंग का तो तीसरे को रेलवे आरक्षण का। काफी विचार-विमर्श के बाद टीम ने तय किया कि उज्जैन से लखनऊ तक टे्रन से सफर किया जाए तथा वहाँ से इनोवा गाड़ी किराये पर ले ली जाए जो नेपाल घुमाकर बनारस छोड़ दे।
गाड़ी वाले ब्राह्मण देवता से चर्चा हुई तय हुआ कि 18/- रुपये प्रति किलोमीटर, 250 किलोमीटर न्यूनतम प्रतिदिन, 300/- रुपये चालक का रात्रि भत्ता, टोल, पार्किंग, नेपाल का प्रतिदिन का भंसार (स्थानीय टैक्स) के मान से देना होगा। साथ ही चालक को प्रतिदिन भोजन या 200/- रुपये का भुगतान। तय हो गया गाड़ी का फोटो आ गया चालक के मोबाइल नंबर सहित।
यात्रा का मुहुर्त 14 मई का निकला। टीम के सभी सदस्यों की तैयारियां शुरू हो गयी। टी-शर्ट और बरमुडा ज्यादा खरीदे गये। हाँ, उज्जैन का प्रसिद्ध नमकीन भी रास्ते के लिए 3 किलो खरीद लिया गया। 14 मई को मालवा एक्सप्रेस से भोपाल पहुँची टीम और भोपाल से एक और साथी को लेकर भोपाल-प्रतापगढ़ टे्रन से शाम 7.15 पर रवाना होकर यात्रा में घर से लाये रात्रि के खाने का आनंद लेते हुए सुबह 5.30 पर उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुँच गये।
गाड़ी का चालक पहले से ही हमारा इंतजार कर रहा था उससे मोबाइल पर निरंतर बातें हो रही थी। गाड़ी पर सारा सामान करीने से रखने के बाद हम लोग निकल पड़े लखनऊ से 155 किलोमीटर दूर अयोध्या में विराजित रामलला के दर्शन करने, लगभग ढाई घंटे की यात्रा थी। रास्ते में नाश्ता करने के बाद सडक़ के दोनों और आम के बागों को निहारते हुयी अयोध्या का सफर पता ही नहीं चला।
सरयू का निर्मल जल देख मन ललचाने लगा
नितिन गडक़री का जादू यहाँ भी नजर आया। चालक यादव समाज से था तो सूझबूझ वाला होना स्वाभाविक है। उसने सरयू नदी के घाट के बिलकुल नजदीक तक गाड़ी पहुँचा दी। सामने ही पैदल दूरी पर सरयू नदी दिखायी दे रही थी। अपने राम नदियों में स्नान करने से बहुत घबराते हैं परंतु सरयू का साफ और निर्मल जल देखकर मन ललचाने लगा उसमें डुबकी लगाने के लिए।
तभी आकाशवाणी भी हुई तुझे रामलला के दर्शन करने हैं, हे सनातनी! स्नान तो करना ही होगा। हम नयी अयोध्या बनाने वाले योजनाकारों की नदी को कैसे स्नान के लिये सहज व सरल कैसे घाटों को सुरक्षित और सुविधाजनक बनया जा सकता है देखकर मंत्रमुग्ध हो रहे थे। विश्वकर्मा वंशजों ने सरयू नदी की एक धारा को मोडक़र नहर का रस दे दिया है।
उस नहर पर ही घाट बना दिये गये हैं जो नीचे से भी पक्के हैं। जल तक पहुँचने के लिये अनेक मार्ग बना दिये गये हैं ताकि मार्ग पर भीड़ ना हो। सरयू नदी के जल को स्टाप डेम के माध्यम से लगभग 10 से 15 फुट नीचे गिराया जाता है जिससे जल प्रवाहमान हो जाता है। नहर में लगभग 4 फीट ही जलस्तर रहता है ताकि कोई डूबना भी चाहे तो नहीं डूब पाये। पवित्र सरयू के जल में 40-45 मिनट तक अठखेलियां करने के बाद सभी साथी बाहर निकले और नये वस्त्र धारण करके निकल पड़े रामलला के दर्शन करने….
(शेष अगले अंक में)