अर्जुन सिंह चंदेल
19वीं लोकसभा के लिये 7 चरणों में हुए मतदान के नतीजे पूरी तरह से आ चुके हैं। देश के राजनैतिक दल के नेताओं ने एक-दूसरे पर कितना कीचड़ उछाला और कितनी अमर्यादित भाषा का उपयोग किया है यह देश की 140 करोड़ जनता देख चुकी है। इस बार के हुए चुनावों में देश के 64 करोड़ से ज्यादा लोगों ने मतदान किया जो एक विश्व रिकार्ड है। यह संख्या 27 यूरोपीय देशों के मतदाताओं की संख्या से ढ़ाई गुना से अधिक है।
प्रजातंत्र के इस चुनावी यज्ञ में 68000 से अधिक निगरानी दल और 1.5 करोड़ मतदान और सुरक्षाकर्मी शामिल थे। लगभग चार लाख वाहनों, 135 टे्रनों और 1692 हवाई उड़ानों का इस्तेमाल किया गया। इन चुनावों के परिणामों पर मैं इस कॉलम में चर्चा करना नहीं चाहूँगा मैं सिर्फ आज चर्चा करना चाहता हूँ प्रजातंत्र के स्वयं भू चौथे स्तंभ मीडिया के बारे में। संविधान की एक भी लाईन में किसी भी प्रकार का अधिकार प्राप्त ना होने के बाद भी स्वयं को प्रजातंत्र का चौथा खंभा मानने वाले मीडिया की कलई इस बार के लोकसभा चुनावों के एग्जिट पोल से खुल गयी है।
अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा कुकृत्य करके अपनी ही साख और प्रतिष्ठा जनता-जनार्दन की नजरों में गिरा ली है। कहते हैं ना बंद मु_ी लाख की खुल जाए तो राख की ऐसा ही कुछ इस बार के 1 जून को मतदान बाद शाम 6 बजे आये एग्जिट पोल और 4 जून को हुयी मतगणना के बाद हुआ है। जिस मीडिया पर देश की जनता आँख बंद करके भरोसा किया करती थी वह भरोसा टूट चुका है।
देश की आजादी को प्राप्त करने और आजादी के बाद देश के नव निर्माण में मीडिया की भूमिका का देशवासी सदैव गुणगान करते आ रहे हैं। परंतु बीते दिनों मीडिया पर औद्योगिक घरानों के कब्जे के बाद और इस पेशे में आये मूल्यहीन पत्रकारों के कारण मीडिया लगातार कलंकित हो रही है।
19वीं लोकसभा के एग्जिट पोल में भी ऐसा ही हुआ राग-दरबारी मीडिया संस्थानों में सत्ता की नजदीकी प्राप्त करने के लिये होड़ मच गयी है। टी.आर.पी. बढ़ाने के चक्कर में नैतिकता को ताक पर रख दिया गया। सत्य से परे, सच्चाई से कोसों दूर काल्पनिक आँकड़े देश भर के करोड़ों दर्शकों के सामने पेश कर दिये गये। नेताओं की तरह अधिक आत्मविश्वास में सराबोर अनेक मीडिया संस्थानों ने तो हद पार कर दी और एन.डी.ए. गठबंधन को 400 से भी अधिक सीटों पर विजयी बता दिया।
इलेक्ट्रानिक मीडिया में ऐसी होड़ मची थी कि कौन सत्तारूढ़ दल को ज्यादा सीटें बता सकता है। मीडिया की बातों पर यकीन करने के कारण देश में शेयर बाजार ने सोमवार को ऊँची छलाँग लगा दी। इस कहते हैं ना काठ की हांडी ज्यादा देर तक आग पर नहीं रहती। 72 घंटे बीतते-बीतते सारी हकीकत देश की जनता के सामने आ गयी और इन चुनाव परिणामों से मीडिया का वास्तविक चेहरा भी बेनकाब हो गया, शेयर मार्केट भी भरभरा कर गिर पड़ा।
अविवेकपूर्ण एग्जिट पोल जारी करने से बचना चाहिये
कतिपय मीडिया संस्थानों के इस कृत्य के कारण देश के सभी नारदवंशी शर्मसार और लज्जित हुए हैं। वैसे ही इस समय प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया के सामने सोश्यल मीडिया बहुत बड़ी चुनौती है। पाठकों और दर्शकों का लगाव समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों से तेजी से कम होता जा रहा है। संकट और चुनौती की इस घड़ी में यदि मीडिया द्वारा इस तरह की गैर जिम्मेदाराना हरकत की जायेगी तो देशवासियों का विश्वास और टूटेगा। उम्मीद की जानी चाहिये मीडिया से जुड़े संस्थानों को ऐसे अतिशयोक्तिपूर्ण और अविवेकपूर्ण एग्जिट पोल जारी करने से बचना चाहिये ताकि दुनिया भर में भारतीय पत्रकारिता की जग हंसायी ना हो।
जय महाकाल