दुनिया के सबसे मनोहारी सूर्योदय और सूर्यास्त देखना हो तो चले आइये पोखरा

अर्जुन सिंह चंदेल

पोखरा में शांति स्तूप के बाद हमारी टीम पहुँच गयी पोखरा शहर के मध्य में स्थित माता विन्ध्यवासिनी के दर्शन करने। ऊँचाई पर होने के कारण वहाँ से पोखरा शहर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। मंदिर परिसर में ही इस्कॉन के भक्तों द्वारा भजन-कीर्तन करने के कारण वातावरण धार्मिक था। मंदिर में स्थित माँ विन्ध्यवासिनी की जागृत मूर्ति है। पोखरवासियों की आराध्य देवी होने के कारण श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

ऐसी मान्यता है कि माँ पोखरा की रक्षा तो करती ही है साथ ही माँ से माँगी गयी हर मुराद भी पूरी होती है। मंदिर परिसर में और भी देवी-देवताओं के मंदिर हैं, तीन विशालकाय घंटियां भी लगी हुई है। दर्शन पश्चात होटल मुक्तिनाव इन आ गये। होटल के संचालक से दोस्ती गाढ़ी हो चली थी जो अपना रंग दिखाने लगी थी। उसने रात्रि का भोजन उसकी होटल में ही करने का आग्रह किया।

अपने राम ने पूछा क्या खिलाओगे उसने बताया पोखरा की मछलियां बहुत स्वादिष्ट होती है, आप कहेंगे तो मैं स्वयं बाजार जाकर खरीद कर लाऊँगा। हमारे द्वारा सहमति देने पर वह रात्रि के भोजन की तैयारी में जुट गया और हम निकल पड़े शाम को 5 बजे पोखरा या नेपाल के पर्यटकों के सबसे महत्वपूर्ण स्थान फेवा झील की सैर करने। पहुँचकर टिकट खरीदा, बोट की क्षमता आठ लोगों की थी पर हम तो छह ही थे।

कहते हैं दुनिया का सबसे हसीन सूर्यास्त फेवा झील में बोटिंग करते हुए देखा जा सकता है और हम सौभाग्यशाली थे कि आज हम उस दृश्य के साक्षी बनने वाले थे। चारों ओर हरियाली से भरे हुए पहाड़ों के बीच है फेवा झील, घूमने के लिये एक घंटे का समय रहता है और टिकट शायद 800 रुपये का था। झील के बीचों बीच एक द्वीप पर बना दो मंजिल वराही माता का मंदिर है जो कि लकड़ी ईंट व पत्थर का बना है। झील में घूमने जाने वाला हर पर्यटक उस मंदिर के दर्शन करने जाता है परंतु चूँकि हम मंदिरों के शहर के ही रहने वाले हैं इसलिये हमने बोट चालक को मना कर दिया क्योंकि हम झील का ज्यादा से ज्यादा आनंद लेना चाहते थे।

झील में ही कुछ बच्चे पानी में चलने वाली सायकल का आनंद ले रहे थे तो कहीं प्रेमी और नवयुगल स्वयं बोट को चलाकर आनंद ले रहे थे। पक्षियों की कलवल शुरू हो चुकी थी वह अपने चीड़ (घोंसले) की ओर लौट रहे थे। मन को प्रफुल्लित करने वाला दृश्य था, ऐसा लग रहा था घड़ी की सुइयां रूक जाये, समय यहीं थम जाये, अद्भुत नजारा था और हम उसके साक्षी थे।

दूर सुदूर सूर्य देवता पहाड़ों के पीछे आस्ताचल हो रहे थे और शांत जल में हमारी नौका के चप्पू छप-छप की आवाज करके नीरवता को भंग कर रहे थे। नाव घाट पर लग चुकी थी। घाट पर नेपाल के ब्राह्मण देवता गंगा और क्षिप्रा आरती की तरह फेवा झील पर आरती के लिये अपने शो रूम सजा रहे थे। उस दिन का यजमान दक्षिण भारत का कोई भारतीय ही था जिसका माइक पर गुणगान-बखान कर बाकी मौजूद सैकड़ों धर्मालुओं को दान देने के लिये प्रेरित किया जा रहा था।

अपने राम को ऐसी दुकानदारी नहीं सुहाती। थोड़ी मटरगस्ती के बाद हम सब भी लौट चले अपने नीड़ (होटल) की तरह क्योंकि रात्रि भोज का आनंद जो लेना था। होटल पहुँचकर लजीज भोजन का शानदार आनंद लिया। पोखरा में चौराहे-चौराहे पर बिक रहे सूअर, गाय, भैंस के माँस को देखकर मछली को छोडक़र बाकी कुछ खाने का तो सोचा भी नहीं जा सकता। खानशामा ने बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाया था आत्मा तृप्त हो गयी।

पोखरा में आखिरी रात

हमें बताया गया कि पोखरा का सूर्योदय भी बहुत मनोहारी होता है परंतु उसके लिये सुबह 4.30 बजे आपको पोखरा से 15-16 किलोमीटर दूर सारंगकोट गाँव पहुँचना होगा। पोखरा में आज हमारी आखिरी रात थी, कल हमें मनोकामनेश्वर माता मंदिर होते हुए काठमांडू पहुँचना था। ड्रायवर को सुबह 3.30 बजे उठने का कहकर हम सभी लोग सोने चले गये क्योंकि सुबह जल्दी उठना था।

सुबह स्नान वगैरह से निवृत्त होकर हम लोग निकल पड़े सारंगकोट गाँव की ओर। गूगल देवता से मदद लेनी पड़ी। 1600 मीटर अर्थात 50 हजार फुट की ऊँचाई पर बसे सारंगकोट गाँव में हम पहुँच ही गये 18 मई की अलसुबह। पोखरा घूमने आने वाला हर पर्यटक दुनिया में दिखायी देने सुंदर सूर्योदय में से एक सारंगकोट के सूर्योदय को देखने जरूर आता है।

इस गाँव में भी धंधेबाजों ने सूर्योदय पाइंट बना रखे हैं जिसका बकायदा शुल्क वसूलते हैं ऊपर शंकर जी का मंदिर भी बना है जहाँ से आप नि:शुल्क देख सकते हैं। सूर्योदय के नजारे को अपनी आँखों में कैद करने के लिये बहुत भारी संख्या में पर्यटक जमा हो गये थे। आँखे दीदार करना चाह रही थी और सूरज देवता आज कुछ नाराज थे, बादल हो रहे थे दुर्भाग्यवश दुनिया के मनोहारी सूर्योदय को हम नहीं देख पाये।

5 बज गये, 6 बज गये, 7 बज गये तब कहीं जाकर सूर्य ने बादलों के बीच में से अपनी थोड़ी झलक दिखायी। निराश होकर लौटना पड़ा। होटल आकर सामान पैक किया, गाड़ी पर लोड किया और नाश्ते के लिये निकल पड़े लेक साइट पर प्रसिद्ध रजवाड़ी भोजनालय में जहाँ भरपेट नाश्ता किया पराठों का, ताकि भोजन की जरूरत न पड़े। नाश्ते के बाद पोखरा के अंतिम पाईंट गोरखा म्यूजियम को देखना था जो दस बजे खुलता है वहाँ गोरखाओं के साहस भरे अनेक दृश्यों को देखने के बाद निकल पड़े काठमांडू की ओर…
(शेष अगले अंक में)

Next Post

मकान का ताला टूटे बिना चोरी हुए साढ़े तीन लाख रुपये

Wed Jun 5 , 2024
पड़ोसी पर जताई शंका, पुलिस ने शुरू की जांच उज्जैन, अग्निपथ। रिश्तेदारी में हुई गमी के चलते परिवार पड़ोसी को मकान की चाबी देकर चला गया। दूसरे दिन वापस लौटा तो अलमारी में रखे साढ़े तीन लाख रूपये नहीं मिले। मकान का ताला टूटे बिना हुई चोरी की शिकायत पुलिस […]