अर्जुन सिंह चंदेल
काठमांडू तक का 100 किलोमीटर का रास्ता अभी और तय करना था सूर्यास्त होने को था मुश्किल से मुख्य मार्ग पर आये 15 मिनट ही हुए होंगे कि गाड़ी ने धोखा दे दिया। 2017 माडल इनोवा (क्रिस्टा) थी जैसे ही गाड़ी की हेड लाईट चालू करी गाड़ी के पिकअप का दम घुटने लगा। अंधेरा हो चला था मार्ग पर चौड़ीकरण का कार्य चल रहा था, पहाड़ी रास्ता, अंजान जगह। बदकिस्मती से गाड़ी का चालक भी हमारी तरह पहली बार नेपाल आया था, उसके लिये भी सारे रास्ते नये थे। इलेक्ट्रानिक गाड़ी थी, ड्रायवर ने बहुत सूझबूझ दिखाने की कोशिश करी परंतु नाकाम रहा।
हमारे साथियों ने भी अपने पूरे अनुभव दाँव पर लगा दिये पर सफलता हाथ नहीं लगी। गाड़ी हेडलाईट की जगह डीपर पर चलाओ तो पिकअप पकड़ रही थी। चालक हिम्मत वाला था वह डीपर पर ही आगे चलने वाली गाडिय़ों की लाईट के सहारे आगे बढ़ रहा था और हम सबको हिम्मत भी दिला रहा था कि मैं आपको काठमांडू तक ले चलूँगा।
सारी परिस्थितियां प्रतिकूल थी, घना अंधेरा, पहाड़ों पर नीचे एक ओर गहरी खाई थी। रास्ते में तीन-चार जगह मैकेनिकों को गाड़ी दिखायी भी सही पर सबने हाथ ऊँचे कर दिये। कोशिश भी की पर नाकाम रहे सबका एक ही जवाब काठमांडू में कंपनी के सर्विस सेंटर पर ही ठीक होगी। रास्ते में रुकने के लिये होटल भी देखे पर कहीं ए.सी. नहीं, कहीं पर टायलेट सीट यूरेपियन नहीं मिली इसी ऊहापोह में 50-60 किलोमीटर का रास्ता पार हो गया. घड़ी की सूइयों ने रात के 10.30 बजा दिये अभी भी मंजिल 30-40 किलोमीटर दूर थी।
तभी एक रिजार्ट नजर आया, मालिक से मुलाकात हुयी उसे अपनी व्यथा सुनायी वह स्थान काठमांडू से लगभग 40 किलोमीटर दूर था। उसने हमारे बजट में दो ए.सी. रूम उपलब्ध करा दिये। नीचे स्वीमिंग पूल भी था जिसमें नवयुगल या प्रेमी-प्रेमिकाएं जल क्रीड़ा का आनंद ले रहे थे।
रिजार्ट बहुत खूबसूरत था और काफी बड़े क्षेत्र में था। खूबसूरत डायनिंग हाल भी था कर्मचारियों ने हमें हिदायत दी कि 11 बजे रेस्टोरेंट बंद हो जायेगा आप लोग खाने का आर्डर दे दीजिये। रूम में जाकर जल्दी से हाथ-मुँह धोकर रेस्टोरेंट में आ गये जहाँ हमारा इंतजार ही हो रहा था। रिजार्ट का मुख्य गेट बंद कर दिया गया था। पेट में चूहे कूद रहे थे सभी ने जमकर खाना खाया और रूम में आ गये। दिन भर के थकाने वाले सफर और रास्ते के कारण बिस्तर पर लेटते ही नींद लग गयी।
सुबह सभी साथी आराम से उठे जमकर नाश्ता किया। नेपाल में नाश्ते में हमारे यहाँ जैसी कचोरी, समोसे, पोहा-जलेबी नहीं मिलती वहाँ तो पराठे-पूड़ी से ही पेट भरना होता है। हमारी मंजिल काठमांडू अब ज्यादा दूर नहीं थी मुश्किल से एक-डेढ़ घंटे का ही सफर बचा था। गाड़ी में समस्या लाईट की थी दिन में कोई दिक्कत नहीं थी। रिजार्ट के ही एक कर्मचारी ने काठमांडू में हमारे रूकने की समस्या हल कर दी मंदिर से 100 मीटर की दूरी पर स्थित होटल पशुपतिनाथ इन में।
लगभग 12 बजे हमने नेपाल की राजधानी काठमांडू में प्रवेश कर लिया। जिसकी विलासिता नजर आ रही थी। सबसे पहले पशुपतिनाथ के दर्शन किये और मंदिर के पास स्थित होटल पशुपतिनाथ इन में चेक इन किया। गाड़ी इनोवा के सर्विस सेंटर गयी और आधे घंटे में सुधरकर आ गयी कम्प्युटर पर लगाते ही बीमारी पकड़ में आ गयी पार्किंग लाइट का बल्ब खराब होने से उसने पूरा सर्किट ब्रेक कर दिया था। काठमांडू में ज्यादा कुछ घूमने लायक नहीं है। मंदिर परिसर पहले से बेहतर है। बताते हैं कि पहले तो परिसर में ही बलि होती थी और खून बिखरा रहता था जिस पर मक्खियां भिनभिनाती रहती थी पर अब ऐसा कुछ नहीं है। शाम को चलिये बूढ़ा नीलकंठ मंदिर।
(शेष अगले अंक में)