अर्जुन सिंह चंदेल
जनकपुर जाते समय हम जिस मार्ग पर जा रहे थे उस पर काठमांडू से 28 किलोमीटर दूर नौविसे नाम का एक छोटा सा गाँव आता है। नौविसे से जनकपुर जाने के दो रास्ते हैं पहला मुगलिंग होकर जिस पर फोरलेन का कार्य चल रहा है दूसरा रास्ता त्रिभुवन राजपथ कहलाता है। जनकपुर 291 किलोमीटर पड़ता है।
हमने हमारी गाड़ी का मुँह त्रिभुवन राजपथ की ओर मोड़ दिया। इस राजपथ का नाम 1906 से 1955 तक नेपाल के राजा रहे त्रिभुवन की याद को बनाये रखने के लिये रखा गया है। सन् 1956 में भारत सरकार की सहायता से इस राजपथ का निर्माण हुआ। चलिये चलते हैं सफर पर। बेहद शालीन, शांत, खूबसूरत इस मार्ग पर आगे बढ़ते ही हरियाली मन मोहने लगी। सुंदर पहाड़ देखते ही बन रहे थे। बला सा खूबसूरत रास्ता था।
जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे प्रकृति का सौंदर्य वैसे-वैसे हमें अपनी ओर खींच रहा था। भारतीय होने के कारण हमें तो हमारे कश्मीर की सुंदरता पर ही नाज और गर्व है परंतु इस रास्ते पर आकर लगा ईश्वर ने नेपाल को भी अपनी सुंदरता से नवाजा है। कभी हमारी गाड़ी ऊपर पहाड़ की ओर चढ़ जाती कभी ढलान पर उतर जाती। मौसम की गर्माहट छू मंतर होने लगी थी, कार की खिड़कियां खुल गयी बाहर की हवा का आनंद लिया जा रहा था।
सचमुच जन्नत सा वातावरण था। नौविसे से 90 किलोमीटर बाद पहाड़ी की चोटी पर एक छोटी से जगह आयी जिसका नाम टिस्टुड देउराली था आठ-दस ढाबे बने हुए थे गजब का नजारा था उस समय शायद शाम के 4 बज रहे होंगे। ढाबे पर ही रुकने के लिये रूम बने हुए थे। ढाबे पर बैठकर पूरे पहाड़ों के मनमोहक दृश्यों का नजारा लिया जा सकता था। वहीं हमारी मुलाकात मुजफ्फरपुर से आयी 4 नवजवानों की टोली से हुयी जिन्होंने बताया कि हम हर साल 250 किलोमीटर दूर से आते हैं 2-3 दिनों तक रूककर प्रकृति का आनंद लेते हैं जीवन को फिर से ऊॅर्जा से भरते हैं।
ढाबे का संचालन महिलाएं कर रही थी जिनसे रूकने के लिये किराये की बात भी हो गयी थी। सडक़ पर ही जानदार शानदार देशी मुर्गे चहलकदमी कर रहे थे। टीम के शौकीन सदस्यों ने ढाबे की संचालिका से बात करी तो उसने कहा 4 हजार नेपाली रुपये में मुर्गा बना कर दे दूँगी शायद भारतीय रुपयों में 2500 का परंतु उसने एक शर्त रखी, भुगतान नेपाली मुद्रा में ही करना होगा जो हमारे पास थी नहीं और इस तरह सौदा नहीं जम पाया।
अपने राम की बहुत इच्छा थी एक रात वहाँ गुजारने की परंतु बाकी साथी सहमत नहीं थे। मुजफ्फरपुर से आये मित्रों ने बताया कि शाम 5 बजे के बाद मई के महीनों में भी यहाँ पर आपको गर्म कपड़े पहनने पड़ेंगे तभी आप यहाँ रात रूक पाओगे। खैर कारवॉ उस बेहद सुंदर स्थान से आगे बढ़ गया। रास्ते में दस-बारह हेयर पिन मोड़ भी थे। हम नेपाल को नेमत में मिली शिवालिक पहाडिय़ों पर से गुजर रहे थे। सुबह के नाश्ते की क्षमता अब समाप्ति की ओर थी। भोजन अब 30 किलोमीटर दूर नेपाल के औद्योगिक शहर जिसकी जनसंख्या 92 हजार है हेतौड़ा में ही मिलने की संभावना थी।
3-4 किलोमीटर ही आगे बढ़े थे कि काठमांडू से 77 किलोमीटर दूर समुद्र तल से 7620 फीट की ऊँचाई पर नेपाल के सबसे बड़े और पुराने पर्वतीय वनस्पति उद्यान का बोर्ड नजर आया जो इस राजमार्ग का प्रमुख आकर्षण है। हम सब उतर पड़े गाड़ी से अद्भुत नजारा था पश्चिम में धौलागिरी से लेकर पूर्व में माउंट एवरेस्ट तक फैले पहाड़ों को यहाँ से निहारा जा सकता है। हिमालय के सबसे बेहतरीन दृश्यों को कैमरे में कैद कर सकते हैं।
सर्दी के दिनों में बर्फबारी से सुंदरता में और चार चाँद लग जाते हैं नजदीक ही एवरेस्ट पैनोरमा रिजॉर्ट है जिसमें हेलीपेड भी है।
उद्यान के नजदीक ही ऋषिशोर महादेव का मंदिर भी है। धार्मिक मान्यता अनुसार भगवान शिव जब पत्नी सती के शव को लेकर विचरण कर रहे थे तो इस स्थान पर विश्राम किया था। शिव जी को प्यास लगने पर उन्होंने त्रिशुल से बड़ी चट्टान पर प्रहार किया था जिस पर पानी निकल आया जो आज भी बदस्त्तूर जारी है। वनस्पति उद्यान में प्रवेश के लिये शुल्क भी है यहाँ 290 तरह की वनस्पति प्रजाति है। जिसमें चिरायतों, सतुवा, लौंथ साला, मरीजो, बोदोओखासी के साथ ही लाली गुरांस (रोडोडेड्रोन एस पी) भी है। सचमुच वातावरण इतना मदमस्त था कि भागदौड़ भरे जीवन में गहरी सॉस और शुद्ध ऑक्सीजन की जरूरत हो तो यहाँ चले आइये।
(शेष अगले अंक में)